MalayalamNewsableKannadaKannadaPrabhaTeluguTamilBanglaHindiMarathiMyNation
  • Facebook
  • Twitter
  • whatsapp
  • YT video
  • insta
  • ताज़ा खबर
  • राष्ट्रीय
  • वेब स्टोरी
  • राज्य
  • मनोरंजन
  • लाइफस्टाइल
  • बिज़नेस
  • सरकारी योजनाएं
  • खेल
  • धर्म
  • ज्योतिष
  • फोटो
  • Home
  • National News
  • कोलकाता ट्रॉम: 151 साल का सफर खत्म ! जानें एशिया के एकमात्र ट्रॉमवे का इतिहास

कोलकाता ट्रॉम: 151 साल का सफर खत्म ! जानें एशिया के एकमात्र ट्रॉमवे का इतिहास

कोलकाता में ट्राम सेवा बंद करने के सरकार के फैसले से शहर की विरासत प्रेमियों में निराशा है। 1873 में शुरू हुआ यह ट्राम नेटवर्क एशिया का सबसे पुराना है और शहर की पहचान रहा है। हालांकि, सरकार का दावा है कि एक रूट चालू रहेगा।

3 Min read
Dheerendra Gopal
Published : Sep 26 2024, 04:36 PM IST| Updated : Sep 26 2024, 04:37 PM IST
Share this Photo Gallery
  • FB
  • TW
  • Linkdin
  • Whatsapp
  • GNFollow Us
17
Image Credit : Getty

लकड़ी की बेंचों पर सवारी करने और धीमी गति से बढ़ती ट्रेन का अनुभव महसूस करने दुनिया से लोग आते हैं। ट्राम कारें बंगालियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती हैं जो कोलकाता शहर को एक अलग पहचान दिलाती है। पश्चिम बंगाल सरकार ने राजधानी की यातायात चुनौतियों को देखते हुए ट्रॉम का बंद करने का फैसला लिया है। हालांकि, इस हेरिटेज के शौकीन लोगों में इस फैसले को लेकर निराशा है। वैसे सरकार ने यह भी दावा किया है कि ट्रॉम के एक रूट को जारी रखा जाएगा।

27
Image Credit : Getty

कब चलाई गई थी पहली ट्रॉम?

कोलकाता में ट्रॉम सिस्टम को 24 फरवरी 1873 में शुरू किया गया था। सबसे पहले इसे सियालदह और अर्मेनियाई घाट स्ट्रीट के बीच 3.9 किमी की दूरी के लिए चलाया गया। तब इसे घोड़ों से चलाया जाता था। कोलकाता, भारत का एकमात्र शहर है जहां ट्राम सिस्टम काम करता है। ट्रॉम शहर के प्रमुख स्थलों को कनेक्ट करती थी। ट्रॉम पर बैठने का नॉस्टैलजिक अनुभव किसी भी व्यक्ति के लिए नायाब होता है। हालांकि, यह कोलकातावासियों की तो लाइफलाइन थी।

37
Image Credit : Getty

एशिया का सबसे पुराना इलेक्ट्रिक ट्रॉम सिस्टम

कोलकाता का ट्रॉम सिस्टम एशिया का सबसे पुराना इलेक्ट्रिक ट्रॉमवे है। यह देश का एकमात्र ट्रॉम नेटवर्क है जोकि अभी भी चालू है। 19वीं सदी की यह यातायात सुविधा आज भी कोलकाता में देखी जाती है। इसे देखने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों के पर्यटक भी आते हैं।

47
Image Credit : Getty

1880 से ट्रॉमवे को रेगुलर किया

1880 में कलकत्ता ट्रामवे कंपनी का गठन करते हुए इसे लंदन में रजिस्टर्ड किया गया। फिर इसे स्ट्रक्चर्ड तरीके से नेटवर्क को विस्तारित किया गया। सियालदह से अर्मेनियाई घाट तक घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम पटरियां बिछाई गईं। लेकिन दो साल बाद 1882 में ट्राम कारों को खींचने के लिए भाप इंजनों का प्रयोग शुरू किया गया।

57
Image Credit : Getty

1900 में इलेक्ट्रिक ट्रॉम को मिला विस्तार

साल 1900 में ट्रॉमवे का इलेक्ट्रिफिकेशन शुरू किया गया। भाप से बिजली में इसे तब्दील किया गया। 1902 में 27 मार्च को एशिया में पहली इलेक्ट्रिक ट्रॉमकार एस्प्लेनेड से किडरपोर तक चली। 1903-1904 में कालीघाट और बागबाजार के कनेक्शन सहित नए रूट्स पर इसे चलाया जाने लगा। इसी के साथ ट्रॉमवे नेटवर्क कोलकाता के लोगों की लाइफलाइन बन गई।

20वीं सदी हावड़ा ब्रिज बनने के बाद ट्रॉम नेटवर्क और बढ़ा

1943 में हावड़ा ब्रिज का निर्माण पूरा हुआ तो ट्राम नेटवर्क के कलकत्ता और हावड़ा खंडों को जोड़ा जिससे कुल ट्रैक की लंबाई लगभग 67.59 किमी हो गई।

67
Image Credit : Getty

आजादी के बाद इसका राष्ट्रीयकरण

भारत को आजादी मिलने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने ट्रामवे के मैनेजमेंट में अधिक सक्रिय भूमिका निभायी। 1951 में सरकारी निगरानी के लिए कलकत्ता ट्रामवेज कंपनी के साथ एक समझौता किया गया। 1976 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। हालांकि, मेट्रो युग के शुभारंभ के साथ ट्रॉमवे के विस्तार को लगाम लगने के साथ इसकी लोकप्रियता में कमी आई। हेरिटेज ट्रॉम वे की बजाय मेट्रो ट्रेन को कोलकाता में प्राथमिकता के बाद कई लोग इसे अव्यवहारिक मानने लगे। लेकिन ट्रॉम कोलकाता की पहचान बनी रही।

77
Image Credit : Getty

शहर विकास के रास्ते पर दौड़ा तो ट्रॉमवे के दिन लदने लगे

कोलकाता शहर जब विकास की ओर तेज गति से दौड़ा तो ट्रॉमवे पीछे छूटता नजर आया। इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रॉम लाइनें और डिपो वगैरह धीरे-धीरे अपनी अवस्था पर आंसू बहाने लगे। हालांकि, कोलकाता के तमाम जागरूक लोग इसको संरक्षित करने और इस हेरिटेज को बचाने के लिए आगे आए। लेकिन कोई खास फायदा नहीं दिखा।

यह भी पढ़ें:

DEMU और MEMU Train में क्या अंतर है? कितनी होती है स्पीड

About the Author

DG
Dheerendra Gopal
धीरेंद्र गोपाल। 2007 से पत्रकारिता कर रहे हैं, 18 साल से ज्यादा का अनुभव। मौजूदा समय में ये एशियानेट न्यूज हिंदी में काम कर रहे हैं। पूर्व में अमर उजाला से करियर की शुरुआत करने के बाद हिंदुस्तान टाइम्स और राजस्थान पत्रिका में रिपोर्टिंग हेड व ब्यूरोचीफ सहित विभिन्न पदों पर इन्होंने सेवाएं दी हैं। राजनीतिक रिपोर्टिंग, क्राइम व एजुकेशन बीट के अलावा स्पेशल कैंपेन, ग्राउंड रिपोर्टिंग व पॉलिटिकल इंटरव्यू का अनुभव व विशेष रूचि है। डिजिटल मीडिया, प्रिंट और टीवी तीनों फार्मेट में काम करने का डेढ़ दशक का अनुभव।

Latest Videos
Recommended Stories
Related Stories
Asianet
Follow us on
  • Facebook
  • Twitter
  • whatsapp
  • YT video
  • insta
  • Download on Android
  • Download on IOS
  • About Website
  • Terms of Use
  • Privacy Policy
  • CSAM Policy
  • Complaint Redressal - Website
  • Compliance Report Digital
  • Investors
© Copyright 2025 Asianxt Digital Technologies Private Limited (Formerly known as Asianet News Media & Entertainment Private Limited) | All Rights Reserved