सार
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सोशल मीडिया को लेकर एक नई पॉलिसी पर विचार कर रही है। इसमें ब्लॉकचेन, बिटकॉइन और डार्क नेट सहित उन सभी तकनीकी पहलुओं को शामिल किया जाएगा, जो यूजर की निजता और साइबर क्राइम रोकने में सक्षम हों।
नई दिल्ली. बढ़ते साइबर क्राइम, निजता का उल्लंघन और बच्चों को इंटरनेट के काले मायाजाल से बचाने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सोशल मीडिया को लेकर एक नई पॉलिसी पर विचार कर रही है। नई पॉलिसी में पुराने IT एक्ट भी मर्ज हो जाएंगे। 'इंडियन एक्सप्रेस' ने इस बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस मीडिया हाउस ने मंत्रालय से जुड़े एक सीनियर अधिकारी के हवाले से यह खबर दी है। बता दें कि फरवरी में मौजूदा आईटी एक्ट 2000 (IT ACT 2000) में कुछ सख्त बदलाव किए गए थे, जो सोशल मीडिया कंपनियों को रास नहीं आए थे। मामला कोर्ट तक पहुंचा था। हालांकि कोर्ट ने भी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। नई पॉलिसी में ब्लॉकचेन, बिटकॉइन और डार्क नेट सहित उन सभी तकनीकी पहलुओं को शामिल किया जाएगा, जो यूजर की निजता और साइबर क्राइम रोकने में सक्षम हों।
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क्या है ब्लॉकचेन
यह एक टेक्नोलॉजी है। एक प्लेटफॉर्म हैं, जहां न डिजिटल करेंसी के साथ किसी डॉक्यूमेंट्स आदि को डिजिटल बनाकर उसका रिकॉर्ड रखा जा सकता है। यानी ब्लॉकचैन एक डिजिटल लेजर हैं।
क्या है बिटक्वॉइन
यह एक डिजिटल माध्यम है। इसके जरिये कुछ चीजें बेची या खरीदी जा सकती हैं।
क्या है डार्क नेट
यह इंटरनेट की एक ऐसी दुनिया है, जिसमें प्रोटॉकाल का पालन करके ही एंटर हुआ जा सकता है। यह एक स्पेशल साफ्टवेयर, कॉन्फिगरेशन या अथॉरिटी के साथ ही एक्सेस होता है।
साइबर क्राइम के बदलते स्वरूप का रखा जाएगा ध्यान
मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक सरकार ऐसी पॉलिसी पर विचार कर रही है, ताकि बिना कोर्ट में जाएं सोशल मीडिया उसका पालन कर सकें। इस दिशा में विषय विशेषज्ञों से चर्चा हो रही है। हालांकि पुराने IT नियमों में भी साइबर क्राइम, पोर्न या गलत कंटेट को ब्लॉक करने को लेकर गाइडलाइन दी गई थी, लेकिन जितनी तेजी से साइबर क्राइम की दुनिया बदल रही है, उसे देखते हुए नियमों में कुछ संशोधन जरूरी हैं।
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बच्चों की सिक्योरिटी पर भी फोकस
मान जा रहा है कि नई पॉलिस में बच्चों की सुरक्षा पर भी विशेष फोकस किया जा रहा है। नए डेटा प्रोटेक्टशन लॉ में कड़ी एज-गेटिंग(edge-gating) नीति को भी शामिल किया जा सकता है। यानी अंडर 18 बच्चे किसी साइट को ओपन करना चाहते हैं, तो उन्हें पैरेंट की परमिशन जरूरी होगी। हालांकि कई सोशल मीडिया कंपनियां इसके पक्ष में नहीं हैं। लेकिन सरकार का इरादा बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाना है।
25 फरवरी को जारी की थी गाइडलाइन
केंद्र सरकार ने 25 फरवरी को यह गाइडलाइन जारी की थी। इसे 3 महीने में लागू करना था। लेकिन वॉट्सऐप, ट्विटर और इंस्टाग्राम इसे लेकर कोर्ट में चली गई थी। हालांकि कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया था।
सरकार ने यह जारी की थी गाइडलाइन
- सोशल मीडिया कंपनियां भारत में अपने 3 अधिकारियों, चीफ कॉम्प्लियांस अफसर, नोडल कॉन्टेक्ट पर्सन और रेसिडेंट ग्रेवांस अफसर नियुक्त करेंगी। इनका आफिस भारत में ही होना चाहिए। ये अपना संपर्क नंबर वेबसाइट पर पब्लिश करेंगी।
- सभी कंपनियां शिकायत के लिए एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराएंगी। शिकायतों पर 24 घंटे के अंदर संज्ञान लिया जाएगा। वहीं, संबंधित अधिकारी 15 दिनों के अंदर शिकायतकर्ता को जांच की प्रगति रिपोर्ट देगा।
- सभी कंपनियां ऑटोमेटेड टूल्स और तकनीक के जरिए कोई ऐसा सिस्टम बनाएंगी, जिससे रेप, बाल यौन शोषण से संबंधित कंटेंट को पहचाना जा सके। साथ ही यह किसने पोस्ट किया, वो भी पता चल सके। इस पर सतत निगरानी होनी चाहिए।
- सभी कंपनियां हर महीने एक रिपोर्ट पब्लिश करेंगी, जिसमें शिकायतों के निवारण और एक्शन की जानकारी होगी। जो कंटेंट हटाया गया, वो भी बताना होगा।