सार

चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर द्वारा भेजे गए आंकड़ों से पता चलता है कि जिस जगह पर यान उतरा है वह चंद्रमा के सबसे पुराने गड्ढों में से एक हो सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह गड्ढा लगभग 385 करोड़ वर्ष पहले बना होगा।

नई दिल्ली: पिछले साल 23 अगस्त को इसरो का चंद्रयान 3 अंतरिक्ष यान जिस दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरा था, वह चंद्रमा के सबसे पुराने गड्ढे में से एक हो सकता है। ऐसा वैज्ञानिकों का अनुमान है। चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर द्वारा भेजे गए आंकड़ों के अनुसार, जिस जगह पर यान उतरा है उसे नेक्टेरियन काल का माना जा सकता है। इसका मतलब है कि यह गड्ढा लगभग 385 करोड़ वर्ष पहले बना होगा। अहमदाबाद में इसरो के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अनुमान लगाया है कि यह चंद्रमा के इतिहास के सबसे पुराने गड्ढों में से एक है। वैज्ञानिकों की टीम ने बताया है कि क्षुद्रग्रहों के टकराने से 300 किलोमीटर परिधि का यह गड्ढा बना होगा।

 

2040 तक लॉन्च । ₹2104 करोड़ लागत

चंद्रमा पर मानवों को उतारने, अध्ययन करने और फिर उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-4 मिशन को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मंजूरी दे दी है। सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो यह साहसिक अभियान 2040 में अंजाम दिया जाएगा। इसरो को चंद्रमा पर मानवों को उतारने और उन्हें वापस लाने की तकनीक विकसित करनी होगी। इस परियोजना पर 2104.06 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

2008 में, इसरो ने चंद्रमा के अध्ययन के लिए एक अंतरिक्ष यान भेजा था। चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए अध्ययन करने वाले इस यान का नाम 'चंद्रयान-1' रखा गया था। 2019 में, इसरो ने चंद्रमा पर लैंडर और रोवर उतारने के लिए चंद्रयान-2 मिशन शुरू किया था। सॉफ्टवेयर की खराबी के कारण यह मिशन विफल हो गया था। 2023 में, इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन के माध्यम से चंद्रमा पर लैंडर और रोवर को सफलतापूर्वक उतारा।