सार
Delhi-Gurugram Pollution keyfactors: दिल्ली और गुरुग्राम में दशकों से खराब आबोहवा की वजह लाखों लोगों का जीवन दुश्वार हो चुका है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास की हवा खराब होने सबसे बड़ी वजह यहां की गाड़ियां हैं। सड़कों पर फर्राटा भरती गाड़ियां एयर पॉल्युशन की सबसे बड़ी वजह हैं। रियल अर्बन एमिशन (TRUE) इनिशिएटिव के रिसर्च में चौका देने वाले आंकड़े सामने आए हैं। ICCT के टेक्निकल एक्स्पर्ट्स ने अपने रिसर्च में यह दावा किया है कि सीएनजी गाड़ियां भी प्रदूषण बड़े पैमाने पर कर रही हैं।
एक लाख से अधिक गाड़ियों का तैयार किया रिपोर्ट
ICCT ने रियल अर्बन एमिशन (TRUE) इनिशिएटिव के तहत यह रिसर्च प्रदूषण कारकों को चिंहित करने और वाहन प्रदूषण को कम करने की नीति बनाने में सहायता के लिए किया गया है। इस रिसर्च में दो पहिया वाहन, तीन पहिया वाहनों, सभी प्रकार की चार पहिया गाड़ियां-प्राइवेट कार व टैक्सी, हल्के माल वाहन (LGV), और बसों को शामिल किया गया। इन गाड़ियों का नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोकार्बन (HC), और पराबैंगनी (UV) धुएं के एमिशन, पार्टिकुलेट मैटर का डेटा तैयार किया गया। रिसर्च के दौरान 20 जगहों पर एक लाख से अधिक गाड़ियों की रिपोर्ट तैयार की गई।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों क्या थे?
- भारत स्टेज (बीएस) VI की गाड़ियों में पॉल्युशन कम हो रहा। बीएस IV की तुलना भारत स्टेज (बीएस) VI में निजी कारों से वास्तविक दुनिया में NOx उत्सर्जन में 81% और बसों में लगभग 95% की कमी देखी गई।
- कमर्शियल वाहनों में अधिक नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) का एमिशन होता है जबकि प्राइवेट या निजी वाहनों में काफी कम है। बीएस VI टैक्सी और हल्के मालवाहन बेड़े, निजी कारों की तुलना में 2.4 और 5.0 गुना अधिक NOx उत्सर्जन करते हैं।
- सीएनजी वाहनों की भी प्रदूषण बढ़ाने में अधिक भूमिका है। सीएनजी गाड़ियों से भी हाईलेवल पर नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित हो रहा। इस रिपोर्ट से यह धारणा खत्म होगी कि सीएनजी एक 'स्वच्छ' वैकल्पिक ईंधन है। क्लास II लाइट गुड्स वाहन अपनी लैब लिमिट से 14.2 गुना अधिक और टैक्सियां 4.0 गुना अधिक उत्सर्जन कर रही हैं।
लैब के दावे और वास्तविक दावों में काफी अंतर
इस रिसर्च के बाद यह साफ है कि वाहनों के प्रदूषण लेवल के मामले में किए गए लैब रिपोर्ट्स के दावे धरातल से काफी विपरीत हैं। लैब में कम प्रदूषण का दावा करने वाले रिपोर्ट्स से सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों के वास्तविक रिपोर्ट काफी अलग है।
आईसीसीटी इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित भट्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि परिवहन वाहनों से वास्तविक दुनिया में होने वाला उत्सर्जन उनके प्रयोगशाला मूल्यों से काफी भिन्न है। भारत में पहली बार, हमने सड़क पर चलने वाले मोटर वाहनों से महत्वपूर्ण उत्सर्जन डेटा एकत्र किया है और यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हमारी वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला कारक प्रयोगशाला उत्सर्जन नहीं है बल्कि इन वाहनों द्वारा संचालन के दौरान छोड़े जाने वाले प्रदूषक हैं।
सीएनजी भी फैला रहा वायु प्रदूषण
FIA फाउंडेशन की उप निदेशक शीला वॉटसन ने कहा कि यह महत्वपूर्ण शोध भारत और बाकी दुनिया को स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सीएनजी वह स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन नहीं है जिसका वादा किया गया था। दिल्ली गंदी हवा से जूझ रही है, जो शहर पर मंडरा रहा एक स्पष्ट हत्यारा है, TRUE ने दिखाया है कि यह कम दिखाई देने वाला लेकिन फिर भी घातक ईंधन इसका समाधान नहीं है। स्वास्थ्य और जलवायु के लिए, गंदी हवा का समाधान पैदल चलना, साइकिल चलाना और साझा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी अपनाना है। इस रिपोर्ट का प्रकाशन समय पर किया गया है क्योंकि हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऑटोमोटिव उद्योग मानक (एआईएस) 170 को अंतिम रूप देने और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग को लागू करने का निर्देश दिया है।
रिमोट सेंसिंग से बड़े पैमाने पर वाहनों का प्रदूषण लेवल पता लगेगा
आईसीसीटी इंडिया के शोधकर्ता अनिरुद्ध नरला ने कहा कि रिमोट सेंसिंग तकनीक में वास्तविक दुनिया में बड़े पैमाने पर वाहनों से निकलने वाले टेलपाइप उत्सर्जन को स्क्रीन करने और अत्यधिक प्रदूषणकारी वाहनों की पहचान करने में सहायता करने की क्षमता है। यह देखना उत्साहजनक है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय अब इस अध्ययन के निष्कर्षों के संदर्भ में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से शुरू होने वाली इस तकनीक के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ने पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड रिसर्च में रिसर्च एंड एडवोकेसी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा कि ऑन-रोड सर्विलांस विधि के रूप में रिमोट सेंसिंग न केवल सबसे खराब उत्सर्जकों की पहचान करने और उन्हें हटाने में मदद कर सकती है बल्कि विभिन्न तकनीकों और ईंधनों के उत्सर्जन प्रदर्शन को समझने में भी मदद कर सकती है। इससे पता चलता है कि सीएनजी ने शुरुआती वर्षों के दौरान डीजल वाहनों से विषाक्त कण उत्सर्जन को कम करने में मदद की है लेकिन पर्याप्त नियंत्रण के बिना ऑन-रोड सीएनजी वाहनों से नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन अधिक हो सकता है।
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