सार
तीन कृषि कानून वापस होने के बाद से आंदोलनों की ताकत पर बात हो रही है। लोगों का कहा है कि सरकारें कितनी भी मजबूत क्यों न हों, आंदोलन की दिशा सही है तो उन्हें झुकना पड़ेगा।
नई दिल्ली। तीन कृषि बिल वापस होने के बाद आज किसानों की जीत का दिन है। 2020 में सिंघु और टीकरी बॉर्डर से शुरू हुआ आंदोलन बेहद कठिन रहा, लेकिन आखिर में जीत किसानों की हुई। किसान भले इसे आधी जीत बता रहे हैं, लेकिन इस कानून वापसी ने साफ कर दिया है कि सरकारें झुकती हैं, भले ही वो कितनी ही मजबूत क्यों न हों। आजादी के बाद यह पहला आंदोलन नहीं है, जिसने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। जानें इससे पहले हुए आंदोलन और उनका इतिहास...
2021 बक्सवाहा आंदोलन : मध्यप्रदेश के बक्सवाहा के जंगलों में हीरा निकालने के लिए निजी कंपनी को लीज देने के विरोध में स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू किया। धीरे-धीरे आंदोलन पूरे देश के साथ विदेशों में फैल गया। पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग से लेकर कई देशों के सेलिब्रिटीज ने भी इस आंदोलन के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड सहित देशभर से लोग जुटकर प्रदर्शनों में शामिल हुए।
असर : 27 अक्टूबर 2021 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने यहां बिना अनुमति के पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है।
2020 किसान आंदोलन : देश में तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने दिल्ली के टीकरी बॉर्डर से प्रदर्शन शुरू किया। इसने आंदोलन का रूप लिया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में यह आंदोलन फैल गय। टीकरी बॉर्डर पर किसान साल भर से ज्यादा समय तक डटे रहे। मोदी सरकार से कई चरण की वार्ता हुई, लेकिन किसानों ने इसे स्वीकार नहीं किया।
असर : 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने कानून वापस लेने की घोषणा कर दी।
2012 निर्भया आंदोलन : दिल्ली में चलती बस में फिजियोथेरेपिस्ट के गैंगरेप के बाद यह आंदोलन खड़ा हुआ। महिलओं की सुरक्षा के लिए लाखों लोग अलग-अलग शहरों की सड़कों पर उतर आए। सोशल मीडिया पर भी आंदोलन हर जगह दिखा। यहां तक कि लोगों ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर की जगह एक ब्लैक डॉट की इमेज लगायी। इसके बाद पूरे देश की विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने महिला सुरक्षा को लेकर विभिन्न कदम उठाए।
असर : 21 मार्च 2013 को महिलाओं की सुरक्षा के लिए संसद से कानून पास हुआ। निर्भया फंड जैसी तमाम चीजें बनीं। कानूनों में भी सुधार हुआ।
2011 अन्ना आंदोलन : प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनलोकपाल बिल के लिए भूख हड़ताल शुरू की। उनके समर्थन में पूरा देश एकजुट हुआ। इस आंदोलन को इतनी सफलता मिली कि यह पिछले 2 दशक का सबसे लोकप्रिय आंदोलन बना। अरिवंद केजरीवाल की सरकार भी अन्ना के आंदोलन की ही देन है।
असर : 2014 में कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार को चुनावों में बड़ी हार मिली। हालांकि, देश में सशक्त जनलोकपाल बिल का सपना अभी भी अधूरा ही है।
1985 नर्मदा बचाओ आंदोलन : नर्मदा नदी पर बन रहे बांधों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया। इसमें आदिवासी, किसान, पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार के फैसले के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू किया। बाद में इस आंदोलन में बड़े और नामचीन लोग जुड़ते हुए चले गए और अपना विरोध जताने के लिए भूख हड़ताल भी की।
असर : 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि पहले प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाए तभी काम आगे बढाया जाए और बाद में कोर्ट ने बांधों के निर्माण को भी मंजूरी दी। हालांकि, अभी भी पुनर्वास का मुद्दा समय-समय पर उठता रहता है।
1980 जंगल बचाओ आंदोलन : 1980 में सरकार ने सिंहभूम जिले के जंगलों को सागौन के पेड़ों के जंगल में तब्दील करने की योजना पेश की। इसी योजना के विरुद्ध बिहार के सभी आदिवासी काबिले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने यह आंदोलन चलाया। यह बेहद लंबा चला।
असर : 2006 में वन अधिकार विधेयक के रूप में इस आंदोलन को बड़ी सफलता मिली। हालांकि, इस पर भी कई पेंच है, जिनको लेकर अभी भी यह आंदोलन कई जगह पर जारी है।
1974 जेपी आंदोलन : बिहार सरकार में मौजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार के छात्रों ने ये आंदोलन शुरू किया। अगुवाई प्रसिद्ध गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्त्ता जयप्रकाश नारायण ने की थी। मांग थी कि बिहार के तत्कालीन सीएम अब्दुल गफूर को हटाएं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐसा करने से मना कर दिया। आंदोलन सत्याग्रह में बदल गया। गिरफ्तारियां शुरू हो गईं।
असर : आंदोलन का असर ये हुआ कि केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी, जो आजाद भारत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसने इंदिरा गांधी जैसी दिग्गज नेता को चुनाव हरा दिया।
1973 सेव साइलेंट वैली आंदोलन : 1970 में केरल राज्य विद्युत बोर्ड ने एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक डैम बनाने का प्रस्ताव रखा था। यह जिस इलाके के लिए था वहां वर्षा बन थे। यहां जैसे ही बांध बनने की घोषणा हुई वहां के लोग उग्र हो गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
असर : 1980 में केरल हाईकोर्ट ने सीधे पेड़ काटने पर रोक लगा दी थी।
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