सार
तीन कृषि कानूनों ( Three farm law) वापस लेने की घोषणा का सभी पार्टियों ने स्वागत किया है, लेकिन यूपी चुनाव (UP Election 2020) से ठीक पहले इस निर्णय का पूरा फायदा सिर्फ BJP को होगा। यूपी की एक चौथाई सीटों पर किसान ही चुनावी नतीजे तय करते हैं। पंजाब में भी पार्टी को अमरिंदर का साथ मिल सकता है।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra modi) ने गुरुवार को गुरुपर्व और कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर तीनों कृषि कानूनों (Three farm law) को वापस लेने का ऐलान कर दिया। इसके बाद से यूपी (Uttar pradesh) और पंजाब (Punjab) के चुनावों (Election) की चर्चा तेज हो गई है। राजनीतक के जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और भाजपा (BJP) का यह फैसला चुनावों में बड़ा प्रभाव डालेगा। इस एक मास्टरस्ट्रोक (Masterstroke) से किसान और भाजपा दोनों फायदे में रहेंगे। भारतीय किसान यूनियन उगराहां धड़े के नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि गुरुपरब पर कृषि कानून निरस्त करने का निर्णय अच्छा कदम है। वहीं, किसान संयुक्त मोर्चा के नेता शिवकुमार कक्काजी का कहते हैं कि किसानों का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया था। संघ भी नाराज था। उपचुनाव, पंचायत चुनावों के नतीजे देखते हुए 2024 के लिए मोदी सरकार पर बहुत दबाव था। इसलिए यूपी चुनाव से पहले ये कानून वापस लेने का फैसला किया गया। इसके राजनीतिक मायने क्या हैं, पढ़ें...
पश्चिमी यूपी की 110 सीटों में प्रभाव
किसान आंदोलन का पश्चिमी यूपी में ज्यादा असर रहा। यूपी विधानसभा की कुल 404 में से 110 सीटों पर किसान वोटर चुनावों में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। 2012 के चुनाव में भाजपा को इनमें से 38 सीटें मिली थीं, जो 2017 में बढ़कर 88 हो गई थीं। साफ है कि भाजपा इन सीटों पर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।
पंजाब में अमरिंदर का मिल सकता है साथ
23 अक्टूबर को पंजाब पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह (Amrinder Singh) ने कहा था कि यदि भाजपा कृषि कानूनों पर अपने कदम पीछे लेती है तो वे पार्टी के साथ जा सकते हैं। तीन कृषि कानूनों की वापसी में अमरिंदर की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। पंजाब की 117 सीटों पर किसानों की बड़ी भूमिका है। पिछले चुनावों में यहां कांग्रेस ने अमरिंदर के नेतृत्व में 77 सीटें जीती थीं, भाजपा को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा था। यहां अमरिंदर साथ आते हैं तो भाजपा का बड़ी सफलता मिल सकती है।
चुनावी सभाओं में नहीं झेलना पड़ेगा विरोध
पिछले कुछ महीनों में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय गृह मंत्री अजय मिश्रा टेनी और केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान को भी किसानों को विरोध झेलना पड़ा था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के विरोध के दौरान लखीमपुर खीरी की घटना ने भाजपा को बड़ा झटका दिया। इसमें 8 लोगों की मौत हो गई थी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इन कानूनों के समाप्त होने से इन घटनाओं का चुनावों में प्रभाव कम होगा।
अंदरूनी विरोध भी होगा खत्म
पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी किसानों के समर्थन में कई बार खड़े हुए। लखीमपुर खीरी की घटना पर भी उन्होंने सवाल उठाए थे। मेघालय के राज्यपाल और पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता रहे सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों पर सवाल उठाए थे। माना जा रहा है कि इन कानूनों के रद्द होने से पार्टी के अंदर भी पनप रहा विरोध खत्म हो जाएगा।
किसान बोले - 700 मौतें, अरबों का नुकसान, जिम्मेदारी किसकी
मुजफ्फरपुर के किसानों का कहना है आंदोलन में 700 किसानों की मौत हुई। अरबों रुपए का नुकसान हुआ। मोदी सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। वहीं पीएम मोदी के ऐलान के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने खुशी जताई है। हालांकि, किसान नेता राकेश टिकैत का कहना कि संसद में कानून वापस होने के बाद ही आंदोलन खत्म होगा।
पहला इम्पैक्ट :
कृषि कानून रद्द करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद पंजाब में सियासी माहौल तैयार होने लगा। पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस फैसले के बाद कहा - मैं भाजपा के साथ काम करने को उत्सुक हूं। यानी, साफ है कि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा और कैप्टन मिलकर लड़ेंगे।
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