सार

कश्मीर के बारे में हमने कई कहानियां सुनी हैं, लेकिन भारत में कश्मीर के विलय में परम पूजनीय गोलवलकर गुरुजी का जो योगदान रहा है, वह कोई साधारण बात नहीं है। इसका बहुत ही ज्यादा महत्व है।

यूरोप जाने के पहले और वहां के कई मेट्रोपॉलिटन शहरों लंदन, पेरिस, ज्यूरिख, म्यूनिख और मिलान में घूमने और डिग्रियां हासिल करने के पहले सिर्फ 7 साल की उम्र में ही मेरा परम पूजनीय श्री गोलवलकर गुरु जी से परिचय हुआ था। गुरुजी से मेरी पहली मुलाकात भोपाल में शाखा के मुख्य शिक्षक के उद्बोधन के दौरान सुबह 5.30 बजे हुई थी। इसके बाद जब भी मैंने गुरु शब्द सुना, मुझे एक ही व्यक्ति की याद आई और वे हैं श्री माधव सदाशिव गोलवलकर। जो भी लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से किसी भी रूप में जुड़े रहे हैं, उनके लिए गुरुजी का मतलब ही गोलवलकर हैं। वे डॉक्टर जी केबी हेडगेवार के बाद दूसरे सरसंघचालक थे और 33 साल तक उनके नेतृत्व में आरएसएस को एक संगठन के रूप में बहुत मजबूती मिली। 19 फरवरी, 2020 को उनका 114वां जन्मदिवस था।

गुरुजी का जन्म 19 फरवरी, 1906 को नागपुर के नजदीक रामटेक गांव में हुआ था। वे अपने परिवार के 9 बच्चों में मात्र एक थे जो जीवित रह सके। उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से एमएससी की डिग्री हासिल की। वे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्थापक और महान राष्ट्रवादी नेता मदन मोहन मालवीय से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने बीएचयू में ही जूलॉजी पढ़ाना शुरू किया। वहीं विद्यार्थियों ने उन्हें प्यार और आदर से गुरुजी कहना शुरू किया। डॉक्टर जी केशव बलिराम हेडगेवार ने बीएचयू के एक छात्र से गुरुजी के बारे में सुना और साल 1932 में उनसे मिले। उन्होंने गुरुजी को बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया। 1936 में गुरुजी आध्यात्मिक चिंतन के लिए बंगाल के सरगाछी गए और रामकृष्ण मठ में स्वामी अखंडानंद की सेवा में दो वर्षों तक रहे। जब वे वापस लौटे तो डॉक्टर जी ने उन्हें संघ के लिए अपना जीवन समर्पित करने को कहा। इसके बाद 1940 में डॉक्टर जी के निधन के बाद 34 वर्ष की उम्र में वे सरसंघचालक बने। 

सरसंघचालक बनने के बाद गुरुजी के सामने कई चुनौतियां थीं। सबसे पहले उन्हें आरएसएस को एक कैडर आधारित मजबूत संगठन बनाना था और पूरे देश में संगठन को फैलाना था। दूसरा जो महत्वपूर्ण काम उनके सामने था, वह इसके लिए स्वयं को तैयार और प्रशिक्षित करना था। कई लोगों ने उनका विरोध भी किया, क्योंकि वे संघ में हाल ही में आए थे। लेकिन गुरुजी ने एक नेता के तैर पर अपनी क्षमताओं को साबित किया। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कठिन परिश्रम किया।

अक्सर वामपंथी गुरुजी पर हिटलर के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगाते हैं। वे आरएसएस को एक फासीवादी संगठन बताते हैं, जो कि हास्यास्पद है। लेकिन इस सच को भुलाया नहीं जा सकता कि गुरुजी के प्रयासों से ही कश्मीर को भारत का हिस्सा बना पाना संभव हो सका। 

जम्मू-कश्मीर का मुद्दा तब खड़ा हुआ, जब देश के विभाजन की घोषणा हुई। पाकिस्तान कश्मीर को एक रत्न मानता था और इसे हर हाल में अपने साथ मिलाना चाहता था, क्योंकि कश्मीर को 'धरती का स्वर्ग' कहा गया है। लौहपुरुष कहे जाने वाले देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सेक्रेटरी वीपी मेनन के अथक प्रयासों से 500 से भी ज्यादा रजवाड़े भारत में मिलाए गए। जवाहरलाल नेहरू कश्मीर की समस्या को खुद सुलझाना चाहते थे, लेकिन सुलझाने की जगह उन्होंने इसे और भी जटिल बना दिया। 

जिन्ना जम्मू-कश्मीर के राजा पर पाकिस्तान से मिलने का दबाव बना रहे थे। इधर, शेख अब्दुल्ला अलग से उन पर दबाव डाल रहे थे, जिन्हें जवाहरलाल नेहरू का समर्थन हासिल था। वास्तव में, कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में आंदोलन जोर पकड़ रहा था और बड़े पैमाने पर हथियार तस्करी के जरिए राज्य में लाए जा रहे थे, ताकि सशस्त्र विद्रोह किया जा सके। यहां तक कि लॉर्ड माउंटेबटन भी कश्मीर गए और उन्होंने राजा हरि सिंह से पाकिस्तान में कश्मीर को मिलाने के लिए कहा। लेकिन कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री आरसी काक ने हरि सिंह से राज्य की स्वतंत्रता कायम रखने को कहा। इस सबसे हरि सिंह बहुत उलझन की स्थिति में पड़ गए। उनके सामने तीन विकल्प थे। पहला पाकिस्तान से मिल जाना, दूसरा भारत का हिस्सा बनना और तीसरा स्वतंत्र रहना। 

हरि सिंह कश्मीर को पाकिस्तान में नहीं मिलाना चाहते थे। वे राज्य को भारत का हिस्सा भी नहीं बनाना चाहते थे। उन्हें नेहरू और शेख अब्दुल्ला पर भरोसा नहीं था। लेकिन वे स्वतंत्र भी नहीं रह सकते थे, क्योंकि उन्हें पाकिस्तान के हमले का डर था। उनके पास राज्य की सुरक्षा के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। 

जब हरि सिंह के समझाने के नेताओं के सारे प्रयास विफल हो गए तो सरदार पटेल ने गुरुजी को एक जरूरी संदेश भेज कर उनसे हरि सिंह को समझाने का आग्रह किया। यह संदेश मिलते ही गुरुजी ने दूसरे सारे काम छोड़ दिए और तत्काल कश्मीर के लिए निकल पड़े। वहां जाकर उन्होंने हरि सिंह से मुलाकात की और उन्हें कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने के लिए राजी किया। इस मीटिंग के बाद हरि सिंह ने तुरंत राज्य को भारत में मिलाने का प्रस्ताव दिल्ली भेजा। लेकिन गुरुजी को यह एहसास हो गया था कि कश्मीर को भारत का हिस्सा बना पाना बहुत आसान नहीं होगा। इसलिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर के सभी आरएसएस कार्यकर्ताओं से कहा कि वे कश्मीर की सुरक्षा के लिए तब तक लड़ने को तैयार रहें, जब तक उनके शरीर में खून की आखिरी बूंद बचे। 

बाद में गुरुजी ने विश्व हिंदू परिषद् और भारतीय मजदूर संघ की स्थापना कर संघ परिवार का और भी विस्तार किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि आरएसएस की मूल भावना इसके सभी संगठनों में हो और सभी एक ही उद्देश्य को लेकर चलें। यह है मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण और प्रेम। गुरुजी संघ के सभी सरसंघचालकों में सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली रहे। आज भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। स्वयंसेवकों की कई पीढ़ियों ने उनसे प्रेरणा हासिल की है। गुरुजी एक महान नेता, संगठनकर्ता और विचारक थे।       

कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीइओ हैं और 'डीप डाइव विद एके' नाम के डेली शो के होस्ट भी हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का बेहतरीन कलेक्शन है। उन्होंने दुनिया के करीब 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा की है। वे एक टेक आंत्रप्रेन्योर हैं और पॉलिसी, टेक्नोलॉजी. इकोनॉमी और प्राचीन भारतीय दर्शन में गहरी रुचि रखते हैं। उन्होंने ज्यूरिख से इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की है और लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए हैं।