सार

मुस्लिम धर्म की मान्यताओं के अनुसार हज (Hajj pilgrimage) इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हर सक्षम मुसलमान के लिए हज यात्रा जरूरी है। इस साल बीस लाख से अधिक मुस्लिम हज यात्रा के लिए मक्का पहुंचे हैं।

नई दिल्ली। मुस्लिम धर्मावलंबियों की सबसे पवित्र तीर्थ यात्रा हज (Hajj pilgrimage) चल रही है। हज यात्रा पर दुनियाभर के मुस्लिम निकलते हैं। इनकी मंजील सऊदी अरब का पवित्र शहर मक्का होती है। इस साल बीस लाख से अधिक मुस्लिम हज यात्रा के लिए मक्का पहुंचे हैं। यह धार्मिक कार्यक्रम के लिए जुटने वाली दुनिया की सबसे बड़ी भीड़ में से एक है। कोरोना महामारी के चलते हज यात्रा को लेकर पाबंदी थी, लेकिन अब सभी पाबंदियां हटा दी गईं हैं।

मुस्लिम धर्म की मान्यताओं के अनुसार हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। जो मुसलमान शारीरिक और आर्थिक रूप से हज यात्रा करने में सक्षम हैं उन्हें अपने जीवन में कम से कम एक बार इसे करना आवश्यक है। माना जाता है कि हज यात्रा से पापों का नाश होता है। यात्री खुदा के करीब जाता है। हज यात्रा का आयोजन सऊदी अरब के शाही परिवार के लिए बेहद अहम होता है। हज यात्रियों की सुविधा के लिए सऊदी अरब ने आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है। इसपर अरबों डॉलर का निवेश किया है।

क्या है इस्लाम में हज यात्रा का इतिहास?

हज यात्रा के लिए दुनिया भर से मुसलमान सऊदी अरब के मक्का में पहुंचते हैं। वे पैगंबर मुहम्मद के नक्शेकदम पर चलते हैं और इब्राहिम और इस्माइल की यात्रा को दोहराते हैं। कुरान के अनुसार इब्राहिम को विश्वास की परीक्षा के रूप में अपने बेटे इस्माइल की बलि देने के लिए कहा जाता है। वह जैसे ही बलि देने जाता है खुद अंतिम पल में उनका हाथ रोक देते हैं। कहा गया है कि बाद में इब्राहिम और इस्माइल ने मिलकर काबा का निर्माण किया था।

7वीं शताब्दी में पैगंबर मुहम्मद ने काबा को पवित्र किया था और हज का उद्घाटन किया था। काबा को मुसलमान सबसे पवित्र स्थान मानते हैं। मुसलमान दुनिया में चाहे कहीं भी हों वे काबा की ओर मुंह कर नमाज अदा करते हैं। युद्धों, विपत्तियों और अन्य उथल-पुथल के बावजूद पैगंबर के समय से हज हर साल आयोजित किया जाता रहा है। 2020 में कोरोना महामारी के चलते सऊदी अरब ने हज तीर्थयात्रा को कुछ हजार नागरिकों और स्थानीय निवासियों तक सीमित कर दिया था। इसके बाद से 2023 पहला वर्ष है जब यह पूरी क्षमता पर लौट आया है।

मुसलमान कैसे करते हैं हज की तैयारी?

हज यात्रा सिर्फ पैसे होने से नहीं हो जाती। इसके लिए मुसलमान कई वर्षों से तैयारी करते हैं। गरीब लोगों को तो अपने पूरे जीवन इसकी तैयारी करनी होती है। हज यात्रा में बहुत अधिक पैसा लगता है, जिसके चलते इसे जुटाना बहुत से लोगों के लिए कठिन होता है। सऊदी अरब प्रशासन हर साल हर देश से कितने हज यात्री आ सकते हैं इसके लिए कोटा तय करता है। सभी देशों को बता दिया जाता है कि वहां से कितने लोग हज के लिए आ सकते हैं। इसके बाद संबंधित देश के लोग हज यात्रा के लिए आवेदन करते हैं। आवेदन स्वीकार होने पर हज यात्रा की अनुमति मिलती है।

हज यात्रा से पहले यात्री खुद को शुद्ध बनाने के लिए जतन करता है। इसे "इहराम" कहा जाता है। महिलाएं मेकअप और परफ्यूम लगाना छोड़ देती हैं और अपने बालों को ढककर रखती हैं। पुरुष ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनमें कोई सिलाई नहीं हो सकती। इस नियम का उद्देश्य अमीर और गरीब के बीच एकता को बढ़ावा देना है। तीर्थयात्रियों को इहराम की स्थिति में अपने बाल काटने, नाखून काटने या संबंध बनाने से मना किया जाता है। तीर्थयात्रियों को दूसरों से झगड़ा नहीं करना होता है। कई मुसलमान मक्का जाने से पहले मदीना जाते हैं। यहां पैगंबर मुहम्मद को दफनाया गया था। मदीना में उन्होंने पहली मस्जिद बनाई थी।

हज के दौरान क्या होता है?

हज की शुरुआत मुसलमानों द्वारा नमाज पढ़ते हुए मक्का में काबा की परिक्रमा करने से होती है। फिर वे दो पहाड़ियों के बीच चलते हैं। यह सब मक्का की ग्रैंड मस्जिद के अंदर होता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसमें काबा और दो पहाड़ियां शामिल हैं।

अगले दिन तीर्थयात्री मक्का से लगभग 20 किलोमीटर पूर्व में माउंट अराफात की ओर जाते हैं। यहां पैगंबर मुहम्मद ने अपना अंतिम उपदेश दिया था। वे पूरे दिन प्रार्थना में खड़े होकर खुदा से अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। सूर्यास्त के आसपास तीर्थयात्री अराफात से 9 किलोमीटर पश्चिम मुजदलिफा नामक क्षेत्र में पैदल या बस से जाते हैं। वे अगले दिन मीना की घाटी में शैतान को प्रतीकात्मक रूप से पत्थर मारने के लिए कंकड़-पत्थर उठाते हैं।

तीर्थयात्रा काबा की अंतिम परिक्रमा के साथ समाप्त होती है। पुरुष अक्सर अपना सिर मुंडवाते हैं और महिलाएं बालों का एक गुच्छा काटती हैं। हज के अंतिम दिन ईद अल-अधा या बलिदान का त्योहार मनाया जाता है। यह इब्राहिम के विश्वास की परीक्षा की याद में दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला खुशी का अवसर है। तीन दिवसीय ईद के दौरान मुसलमान पशुओं का वध करते हैं और उनका मांस गरीबों में बांटते हैं।