05:19 PM (IST) Feb 22

धर्म के लिए हर प्रथा अति आवश्यक नहीं


नागानंद ने कहा : अगर मैं स्कूटर पर हूं और अजान शुरू हो जाती है, और मैं उसी के लिए सड़क के बीच में रुक जाता हूं, तो क्या मैं कह सकता हूं कि मुझे अपने धर्म के कारण ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए? अगर पुलिसकर्मी मुझे रोकता है, तो क्या मैं कह सकता हूं कि आप मुझे मेरे धर्म का पालन करने से रोक रहे हैं? कुछ प्रथाएं ऐसी हैं जो धर्म के लिए नितांत आवश्यक हैं। जो नितांत अनिवार्य और आवश्यक हैं, उन्हें ही आवश्यक माना जा सकता है। इस्लाम के तहत आपको इबादत करनी होती है। आप प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन अगर आप सुबह 5 बजे लाउडस्पीकर लगाते हैं और तेज आवाज में बजाते हैं, तो मैं कह सकता हूं कि मैं सुबह नहीं उठना चाहता। तो, यदि आप अपने धर्म का पालन करते हुए अन्य लोगों की शांति के रास्ते में आ रहे हैं, तो लाइन कहां लिखी है? 

इस मामले में ठीक ऐसा ही हुआ है। 

इसके बाद कोर्ट ने एक रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि सरकार अल्पसंख्यक गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं कर रही है। सुनवाई कल दोपहर 2:30 बजे फिर शुरू होगी। 

05:11 PM (IST) Feb 22

धर्म और संस्कृति में बहुत बारीक अंतर : नागानंद

नागानंद : दक्षिण भारत में कुछ हिंदू समुदायों में कुछ स्थानों पर मंगलसूत्र या थाली नहीं बांधी जाती है। बाकी कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में थाली शादी के लिए जरूरी है। यह सांस्कृतिक चीज है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ समारोहों में शादी के बाद महिला के पैर की अंगुली में अंगूठी डाल दी जाती है। रोमन कैथोलिक विवाह में लड़की अपने कंधे के ऊपर कोई कपड़ा नहीं पहनती है। यानी आवश्यक धार्मिक प्रथा और सांस्कृतिक आवश्यकता के बीच अंतर है। राजस्थानी परिवारों में, राजघरानों में पर्दा प्रथा है। ससुर के सामने नहीं आते। बहू का चेहरा घूंघट से ढका होता है। सिर पर हिजाब पहनना क्या एक धार्मिक प्रथा है? इस्लाम धर्म की उत्पत्ति सऊदी अरब में हुई, वहां परिस्थितियां कठोर थीं। उन्हें दिन में 5 बार प्रार्थना करनी पड़ती थी, जो कि उनके धर्म का हिस्सा है, लेकिन आधुनिक समय में हर मुसलमान हमेशा ऐसा नहीं कर सकता। 
हिंदुओं में उपनयन के ठीक बाद, हमें दिन में तीन बार संध्या वंदनम करना चाहिए। लेकिन यह शारीरिक रूप से संभव नहीं है। जब मैं कोर्ट में बहस कर रहा होता हूं तो मैं दूर जाकर ऐसा नहीं कर सकता। क्या मैं यह तर्क दे सकता हूं कि आप मेरे अधिकार में कटौती कर रहे हैं?

05:00 PM (IST) Feb 22

कॉलेज के अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करना गलत : नागानंद

नागानंद ने कहा: इस याचिका की मांग असामान्य है। दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के लिए कॉलेज के खिलाफ जांच शुरू करने और शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण के लिए कॉलेज के अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने की बात कही गई है। लेकिन याचिका कॉलेज में वास्तविक स्थिति के बारे में कुछ नहीं बताती। जैसे कि वे हिजाब पहनती हैं! उन छात्राओं ने कब कॉलेज जॉइन किया। यह सब कब हुआ, कुछ भी नहीं बताया गया।

उन्होंने कहा कि छात्राओं ने पहले कभी हिजाब नहीं पहना। कभी-कभी लड़कियों के पैरेंट्स इस बारे में पूछते थे। उन्होंने टीचरों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि लड़कियां सिंगिंग, डांस और ऐसी गतिविधियों में शामिल न हों। मुझे नहीं पता कि क्या उनका क्या मतलब है। क्या मुस्लिम लड़कियों को गाना नहीं चाहिए? अगर राष्ट्रगान गाया जाता है, तो क्या उन्हें नहीं गाना चाहिए? क्या यह इस्लाम के खिलाफ है? अगर उन्हें देश भक्ति गीत सिखाया जाता है, तो क्या उन्हें नहीं गाना चाहिए। इनमें से किसी का भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। धर्म संस्कृति के बीच बहुत बारीक अंतर है। 

04:56 PM (IST) Feb 22

विदेशी फैसला गलत तरह से बताकर गलत कानून लागू हो सकता है

वेंकटरमाणी ने कहा कि हम विदेशी फैसलों के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन अगर तुलना के अभाव में कोई विदेशी फैसला सुनाया जाता है, तो कानून को गलत तरीके से लागू किया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता वेंकटरमाणी ने अपनी बात खत्म की। वरिष्ठ अधिवक्ता एसएस नागानंद एसएस ने अपनी बात शुरू की। वे तीन याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए हैं।

04:51 PM (IST) Feb 22

सार्वजनिक व्यवस्था के मुद्दे पर सरकारी आदेश प्रभावी नहीं : वेंकटरमाणी

वेंकटरमाणी : राज्य को आगे देखना चाहिए कि व्यवस्था, अनुशासन को क्या बढ़ावा देता है और क्या समुदाय की बेहतरी को बढ़ावा देता है। सिर्फ उडुपी में ही नहीं, कई जगहों पर आंदोलन हो रहे हैं। इन कार्यवाही को कई लोग देख रहे हैं। कामत द्वारा रखे गए दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट के फैसले के संबंध में सार्वजनिक व्यवस्था के मुद्दे पर इसका कोई असर नहीं है। उस फैसले में सांस्कृतिक अधिकार पर जोर है न कि धार्मिक आयाम पर। हमारे देश में, विभिन्न धर्मों के लोग हैं और शांति से रहते हैं। मैं केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी से हूं। हमने कभी भी धर्मों के बीच किसी टकराव को नहीं जाना है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हम अधिकारों के दावे के लिए संघर्ष देखते हैं।

04:46 PM (IST) Feb 22

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि अंधकार युग में वापस जाएं

वेंकटरमाणी : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि हमें अंधकार युग में वापस जाना है। हम आगे बढ़ना चाहते हैं और अंधकार युग में वापस नहीं जाना चाहते। लोगों को पवित्र कुरान को फॉलो करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। लेकिन जब आप किसी सार्वजनिक स्थान में प्रवेश करते हैं - वह भी एक योग्य सार्वजनिक स्थान जैसे कि एक स्कूल, तो उसके अपने आयाम होते हैं। 
आदेश में सार्वजनिक व्यवस्था को सामान्य अर्थों या अमूर्त अर्थों में नहीं देखा जा सकता है। यहां संदर्भ एक स्कूल का सार्वजनिक स्थान है। हम एक राष्ट्र के रूप में बहुलवादी रहे हैं। लेकिन दुनिया भर के अनुभवों को देखते हुए, संविधान निर्माताओं ने सोचा कि हमें यहां वे अनुभव नहीं होने चाहिए। इसलिए, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के लिए दिशा निर्देश हैं। 

04:41 PM (IST) Feb 22

प्रथा जो भी, राज्य की व्यवस्था से टकराएगी तो उसे रोक सकते हैं

वेंकटरमाणी : आपकी जो भी प्रथा हो, अगर वह सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता के साथ टकराती है , तो राज्य इसे रोक सकता है। अनुच्छेद 25 (2) के तहत राज्य आर्थिक, सामाजिक, वित्तीय या राजनीतिक गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है। जब वह नियामक शक्ति आती है, तो इस तरह की अनिवार्यताएं आती हैं। शासन के व्यापक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट को ऐसे मामलों में कम हस्तक्षेप करना चाहिए। 

04:36 PM (IST) Feb 22

व्यवस्था और अनुशासन पर जोर देना जरूरी

वेंकटरमाणी : मैं कहता हूं कि व्यवस्था और अनुशासन पर बहुत जोर दिया जाता है। हमारा एक लंबा इतिहास रहा है। यूरोप आज बहुलवाद और विलय के दौर से गुजर रहा है। वे एक साथ भी नहीं रह सकते। यूरोपीय संघ टूट रहा है। इसलिए किसी देश के उदाहरण को लेना और उसे भारत में संवैधानिक अनुशासन के रूप में तैयार करना समस्या पैदा कर सकता है। जब तक संस्था में व्यवस्था की मूलभूत आवश्यकता अनिवार्य है, तो सिर्फ कमियों से ऐसे निर्णय को रद्द नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में कम से कम जांच की गुंजाइश तय की जाएगी। 

अनुच्छेद 25(1) के मुताबिक सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान रूप से अधिकार है। राज्य को उन मामलों में नहीं जाना चाहिए कि धर्म के गठन के लिए क्या आवश्यक है और क्या नहीं है। राज्य को तब आना चाहिए जब मामला सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य से जुड़ा हो। 

04:28 PM (IST) Feb 22

समुदाय में अनुशासन लाने सार्वजनिक व्यवस्था की जरूरत : वेंकटरमाणी

आर वेंकटरमाणी ने एक शिक्षक की तरफ से दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा- एक शिक्षक के रूप में मैं कक्षा में एक स्वतंत्र दिमाग रखना पसंद करूंगा। समुदाय में अनुशासन लाने के लिए राज्य और स्कूल की ओर से सार्वजनिक व्यवस्था की आवश्यकता है। 

अलग-अलग सार्वजनिक स्थान अलग-अलग पायदान पर हैं। स्कूलों का स्थान बहुत ऊंचा है। यह एक ऐसी जगह है, जहां लोग सीखने के लिए एक साथ आते हैं, अपने दिमाग और आत्मा को समृद्ध करते हैं। शासन एक बहुत बड़ा विषय है। बुनियादी संवैधानिक बुनियादी बातों पर शासन का उल्लंघन होने पर ही अदालतें हस्तक्षेप करेंगी।

04:23 PM (IST) Feb 22

हम निजी अल्पसंख्यक संसथानों में भी कोई कानून नहीं थोप रहे : एजी

एजी : हम निजी अल्पसंख्यक संस्थानों पर कुछ भी लागू नहीं कर रहे हैं। हमने यह उन पर छोड़ दिया है। महिलाओं की गरिमा को ध्यान में रखना चाहिए। आज सुबह जब मैं कोर्ट आ रहा था तो मैंने हिंदी गीत का एक सुंदर गीत सुना - ना मुंह छुपा के जियो, और ना सर झुका के जियो। हर महिला को यही प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उससे अपेक्षा की जानी चाहिए। 

04:17 PM (IST) Feb 22

सेना में भी दाढ़ी बढ़ाने के अधिकार को नकारा गया : एजी

एजी : हम इनकार करते हैं कि धार्मिक भेदभाव है। एक समुदाय के किसी भी व्यक्ति को दूसरे समुदाय से अधिक पसंद नहीं किया गया है। ऐसे उदाहरण हैं जब सेना में दाढ़ी बढ़ाने के अधिकार को इस आधार पर नकार दिया गया था कि संस्थागत अनुशासन के लिए व्यक्तिगत विकल्पों को प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं है। 

04:12 PM (IST) Feb 22

हिजाब पर कोई रोक नहीं, लेकिन इसे पहनना है नहीं, महिला की मर्जी हो : एजी

जस्टिस दीक्षित : लोकाचार में इस पैरा को मान्यता मिलती है, इस देश की सदियों पुरानी कहावत- जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं। 
एजी : हां। मैं दोहराता हूं। हिजाब पर कोई रोक नहीं है लेकिन यह अनिवार्य नहीं हो सकता। इसे संबंधित महिला पर छोड़ देना चाहिए।

04:10 PM (IST) Feb 22

हिजाब को अनिवार्य बनाना संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ

एजी नवदगी : महिलाओं को ड्रेस की किसी भी मजबूरी के अधीन नहीं किया जा सकता। 

एजी ने सबरीमाला फैसला पढ़ते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का पूरा दावा इसे अनिवार्य बनाने का है और यह संवैधानिक व्याख्या के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। 

04:07 PM (IST) Feb 22

जब मामला बड़ी बेंच में तो इसका कानूनी अधिकार क्या : जस्टिस दीक्षित

एजी : भले ही फैसले को बड़ी बेंच को भेजा गया हो, लेकिन कानून बनाने वाला फैसला सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों को बाध्य करता है।
सीजे : यह सही है, लेकिन हमारे सामने भी ऐसे मुद्दे हैं जो सबरीमाला में बड़ी पीठ को भेजे गए सवालों को छुएंगे। 
जस्टिस दीक्षित: जब किसी फैसले को बड़ी बेंच के पास भेजा जाता है तो उसका कानूनी अधिकार क्या होता है?
इस पर महाधिवक्ता नवदगी ने भाटी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी केस का हवाला दिया। उन्होंने कहा - मुझे इस सवाल का अनुमान था। इस संबंध में तीन फैसले हैं। लेकिन सबरीमाला में इसका संदर्भ क्यों दिया गया, यह सवाल थोड़ा अलग है। 
एजी नवदगी : महिलाओं को ड्रेस की किसी भी मजबूरी के अधीन नहीं किया जा सकता। सबरीमाला फैसला पढ़ते हुए। 

03:57 PM (IST) Feb 22

न्यायिक घोषणा से धर्म की स्वीकृति नहीं हो सकती : एजी

सीजे अवस्थी : आपके कहने का मतलब है कि अगर कोर्ट मान ले कि यह (हिजाब) एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा है, तो जो मुस्लिम महिलाएं इसे नहीं पहनती हैं, यह उनकी गरिमा को कम करने वाला हो सकता है। 

एजी : हां बेशक। ऐसा होने पर उन्हें कोई भी फटकार सकता है। यह उस व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करता है। हम जो चाहते हैं उसे पहनने का विकल्प और जो हम नहीं चाहते उसे न पहनने का विकल्प। हर धर्म की हर महिला के पास यह विकल्प होता है। न्यायिक घोषणा के जरिये धर्म की स्वीकृति नहीं हो सकती। 7 सवालों पर मामला बड़ी बेंच को भेजा गया है। लेकिन सबरीमाला का फैसला आज भी कानून है। नवदगी।

03:49 PM (IST) Feb 22

क्या संविधानिक नैतिकता के आधार पर हिजाब स्वीकार कर सकते हैं : एजी

जस्टिस दीक्षित : क्या किसी उच्च न्यायालय ने इस पर भरोसा किया है और इसे आधिकारिक स्रोत माना है? 

एजी : मेरी जानकारी के हिसाब से नहीं! सबरीमाला और अन्य में न्यायालयों द्वारा बनाए गए कानून के आधार पर क्या संवैधानिक नैतिकता के आधार पर स्कूलों में हिजाब स्वीकार किया जा सकता है? अगर कोई कोर्ट में यह कहता है कि एक विशेष धर्म की हर महिला इसे पहने, तो क्या यह उस व्यक्ति की गरिमा का उल्लंघन नहीं करेगा, जिसे हम सब अधीन कर रहे हैं। हम एक पोशाक एक व्यक्ति पर थोपना चाहते हैं जो इस समय नाजायज है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी व्याख्या की गई है। 

जस्टिस दीक्षित : 
हिंदू विवाह में हम मानते हैं कि मंगलसूत्र बांधना आवश्यक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देश में सभी हिंदुओं को अनिवार्य रूप से मंगलसूत्र पहनना चाहिए। हम कानूनी स्थिति के आधार पर इसे छोड़ देते हैं।

एजी : इस मामले में कठिनाई यह है कि जैसे ही यह एक धार्मिक स्वीकृति बन जाती है, संबंधित महिला उस विशेष पोशाक को पहनने के लिए बाध्य हो जाती है। उसकी पसंद मायने नहीं रखती।

03:45 PM (IST) Feb 22

कुरान डॉट कॉम क्या आधिकारिक वेबसाइट है : सीजे

जस्टिस दीक्षित : कामत ने जिस स्रोत पर भरोसा किया, क्या वह आधिकारिक है? 
एजी : नहीं, ऐसा नहीं है। वेबसाइट quran.com कुछ स्वयंसेवकों द्वारा बनाई गई थी और इसे ओपन सोर्स मुस्लिम समुदाय ऑनलाइन की मदद से संभव बनाया गया था। वेबसाइट पर इसका उल्लेख है। 

03:42 PM (IST) Feb 22

शायरा बानो और सबरीमाला के बाद इसे लेकर नया कानून आया

सीजे अवस्थी : लेकिन केरल हाई कोर्ट

एजी : यह शायरा बानो मामले के पहले का है। शायरा बानो और सबरीमाला मामले ने इस संबंध में कानून बनाया है। इन मामलों से पहले केरल हाई कोर्ट का फैसला आया था।

एजी : शायरा बानो और सबरीमाला के बाद यह सब बदल गया। quran.com एक ऐसी वेबसाइट है, जिस पर याचिकाकर्ता भरोसा करते हैं। एडवोकेट कामत भी सहमत हैं कि उन्होंने कुरान डॉट कॉम पर भरोसा किया।

03:39 PM (IST) Feb 22

यानी, कुरान भी हिजाब के बारे में नहीं कहता : सीजे

एजी : याचिकाकर्ताओं ने सूरा 24, पद 31 पर भरोसा किया।
एजी ने पद्य से कोट किया - इस्लाम पर विश्वास करने महिलाओं को अपनी निगाहें नीची करने, अपनी शुद्धता की रक्षा करने के लिए कहें, और सामान्य रूप से दिखने वाले अपनी खूबसूरती को प्रकट न करें।

सीजे अवस्थी : यह बात बाहरी परिधान, लंबे गाउन की है। यह केवल हिजाब के बारे में नहीं है। आपके कहने का मतलब है कि उन्होंने कुरान के जिस हिस्से पर भरोसा किया है, वह भी हिजाब के बारे में नहीं बोलता। 
एजी: हां। 

03:25 PM (IST) Feb 22

मैं कुरान का विशेषज्ञ नहीं, अंग्रेजी अनुवाद भी कर सकते हैं : एजी

एजी : मैं पवित्र कुरान का विशेषज्ञ नहीं हूं। मैंने जो अभी दिखाया वह इस मामले का सबसे कठिन हिस्सा है। हम कुरान का अंग्रेजी अनुवाद भी कर सकते हैं। मैं जिस किताब का जिक्र कर रहा हूं, वह पाकिस्‍तान के वकील अब्दुल्ला युसूफ अली द्वारा अनुवाद की गई कुरान है। शायरा बानो मामले में सभी पक्षों की सहमति से सुप्रीम कोर्ट ने इसका संदर्भ लिया था।