05:09 PM (IST) Feb 21
बेंच ने कहा - आप जाएं और टीवी चैनलों के सामने बहस करें

एक अन्य वकील ने कहा - लड़कियों को लोगों के सामने हिजाब उतारने के लिए कहा जा रहा है। उन्हें कम से कम एक अलग निजी जगह दी जानी चाहिए। टीवी चैनल जा रहे हैं और इसकी शूटिंग कर रहे हैं। यह बाल अधिकारों का हनन है।
बेंच : आप जाएं और और सिर्फ टीवी चैनल के सामने बहस करें। 

वकीलों ने कहा- क्या महाधिवक्ता इस पर गौर कर सकते हैं। हम ख्याल रखेंगे। निश्चिंत रहें: एजी नवदगी। कल भी सुनवाई जारी रहेगी। 
 

05:07 PM (IST) Feb 21
यह कोई सार्वजनिक मंच नहीं, जहां कोई भी खड़े होकर बोलने लगे : सीजे

वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम डार ने अनुरोध किया कि हमें यह दिखाने देना चाहिए कि हिजाब कैसे आवश्यक धार्मिक अभ्यास है। इस पर सीजे अवस्थी ने कहा यह कोई सार्वजनिक मंच नहीं है जहां कोई भी खड़े होकर बोलना शुरू कर सकता है। 

05:05 PM (IST) Feb 21
निश्चिंत रहें, किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होगी : एजी

मैंने इसे मुख्य सचिव को बता दिया है और मैंने उनसे इसे संबोधित करने के लिए या तो आज या कल सुबह सभी संबंधितों की बैठक बुलाने के लिए कहा है। एडवोकेट ताहिर ने अधिकारियों द्वारा ज्यादती पर कुछ शिकायतें की थीं। उन्होंने मुझे यह बताते हुए एक पत्र दिया। हम इसका समाधान कैसे करेंगे, मैं उन्हें इस बारे में बताऊंगा। निश्चिंत रहें, मैंने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव से बात की है और उन्होंने आश्वासन दिया है कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। सभी जानकारी अदालत के साथ ही दूसरे पक्ष को भी दी जाएगी। वे निश्चिंत रहें। कोई परेशानी नहीं होगी। 

05:00 PM (IST) Feb 21
एजी ने बताया, कहां-कहां नकारी गईं कुरान को लेकर दी गईं दलीलें

नवदगी : हिजाब आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, अदालत को यह बताने के लिए राज्य भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितना याचिकाकर्ता। हमने इसकी जांच की है, जिससे पता चलता है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। 

नवदगी ने चार उदाहरण बताए, जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने कुरान के हवाले से दिए गए उदाहरणों को नकारा दिया था। 

1- पहला मामला 1959 में कुरैशी का था, जब उन्होंने कुरान का हवाला देते हुए कहा था कि जानवरों की कुर्बानी अनिवार्य धार्मिक प्रथा है। कोर्ट ने इसे नकारा।

2- दूसरा हरियाणा के जावेद का मामला था। उन्होंने कहा कि इस्लाम में कई विवाहों की अनुमति है। इसे चुनौती देने वाले कानून को खत्म करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना। 

3- तीसरा इस्माइल फारुकी मामला, जहां सरकार ने एक मस्जिद का अधिग्रहण किया था। उन्होंने इसे यह कहते हुए चुनौती दी कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का मूल सिद्धांत है। कोर्ट ने इसे नकारा। 

4- चौथा शायरा बानो कांड, जिसमें एक बार में ही तीन तलाक को खत्म कर दिया गया। 

पांचवां मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में सामने आया, जहां वक्फ की जमीन एक विशेष होटल को पट्टे पर दी गई थी। इसे इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि होटल में शराब और सूअर का मांस परोसा जाएगा, जो इस्लाम में हराम है। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को भी नकार दिया। 

04:51 PM (IST) Feb 21
उन्होंने कुरान का हवाला दिया है, मैं उसकी भी बात करूंगा

 

एजी नवदगी ने कहा- संवैधानिक न्यायालय को उस सामग्री की जांच करनी चाहिए, जो उन्होंने आवश्यक धार्मिक अभ्यास पर कानून के संबंध में रखी है। उन्होंने कुरान का हवाला दिया है। मैं उसपर भी बात करूंगा।  

04:49 PM (IST) Feb 21
हर महिला को हिजाब के लिए बाध्य करने के लिए किया गया दावा : एजी

महाधिवक्ता ने कहा कि दावे की गंभीरता ये हे कि याचिकाकर्ता धार्मिक प्रथा का हिस्सा बनने के लिए एक विशेष पोशाक की घोषणा की मांग कर रहे हैं, ताकि इस्लामी आस्था का पालन करने वाली प्रत्येक महिला को इसके लि बाध्य किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार हिजाब की प्रथा धर्म में बाध्यकारी है। फैसला आपके हाथ में है। मेरा निवेदन है कि याचिकाकर्ताओं ने हिजाब पहनने को आवश्यक धार्मिक प्रथा का दावा किया है, लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कुछ भी नहीं है। 

04:40 PM (IST) Feb 21
सबरीमाला के फैसले के आधार पर बताया धर्म के लिए क्या आवश्यक

एजी : सबरीमाला फैसले के मुताबिक यदि कोई प्रथा वैकल्पिक है, तो यह माना गया है कि इसे किसी धर्म के लिए 'आवश्यक' नहीं कहा जा सकता है। आवश्यक होने का दावा किया जाने वाला अभ्यास ऐसा होना चाहिए कि उसके न होने से धर्म की प्रकृति बदल जाए।

नवदगी ने सबरीमाला के फैसले के आधार पर हाईकोर्ट को बताया - प्रथा तभी नहीं खत्म की जा सकती है, जब वह धर्म के लिए मौलिक हो। यदि उस प्रथा का पालन नहीं किया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप धर्म में परिवर्तन हो जाएगा। अभ्यास धर्म के जन्म से पहले ही होना चाहिए। धर्म की नींव उसी पर आधारित होनी चाहिए या धर्म के जन्म के साथ-साथ होनी चाहिए। कोर्ट को याचिकाकर्ताओं के दावों की जांच इसी आधार पर करनी चाहिए। 

04:36 PM (IST) Feb 21
तांडव नृत्य और सबरीमाला पर हुए फैसलों का जिक्र

एजी ने तांडव नृत्य पर सबरीमाला का हवाला दिया। इसके मुताबिक अनिवार्यता परीक्षण को धर्म के मौलिक चरित्र से जोड़ा जाने लगा। यदि किसी प्रथा को खत्म करना धर्म की मौलिक प्रकृति को नहीं बदलता है, तो अभ्यास स्वयं आवश्यक नहीं है। सबरीमाला फैसले के मुताबिक यदि कोई प्रथा वैकल्पिक है, तो यह माना गया है कि इसे किसी धर्म के लिए 'आवश्यक' नहीं कहा जा सकता है। आवश्यक होने का दावा किया जाने वाला अभ्यास ऐसा होना चाहिए कि उस अभ्यास के अभाव में धर्म की प्रकृति बदल जाए। सबरीमाला का फैसला अंतिम फैसला है और इसे आज के मामले में भी कानून के तौर पर लिया जा सकता है।

04:25 PM (IST) Feb 21
देश को बांटने वाली धार्मिक प्रथाओं को कुचलने की जरूरत : एजी

एजी नवदगी: क्या आवश्यक धार्मिक प्रथा है और क्या नहीं, इस पर पूरा कानून सबरीमाला मामले में समेकित है। उस पर जाने से पहले, केएम मुंशी ने संविधान सभा की बहस में इस बारे में बात की थी, जिसे शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदन के साथ कोट किया गया था। उन्होंने कहा कि हमें देश को बांटने वाली सभी धार्मिक प्रथाओं को कुचलने की जरूरत है। पहले सवाल यह था कि अनिवार्य रूप से धार्मिक क्या है। फिर न्यायिक दृष्टिकोण में बदलाव आया और अब यह न्यायालय को यह निर्धारित करने का आदेश देता है कि भले ही यह अनिवार्य रूप से धार्मिक हो, यह दिखाया जाना चाहिए कि यह धर्म के लिए आवश्यक है। इस प्रकार, यह दिखाना होगा कि हिजाब पहनना इस्लाम के लिए आवश्यक है। 

04:17 PM (IST) Feb 21
खाने-पीने या कपड़े पहनने के तरीके को धार्मिक प्रथा नहीं मान सकते : एजी

एजी : किसी व्यक्ति के खाने-पीने के तरीके या कपड़े पहनने के तरीके को धार्मिक गतिविधि नहीं माना जा सकता है। कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। यह ऐसी गतिविधि नहीं है, जिसे आवश्यक धार्मिक प्रथाघोषित किया जा सकता है। न्यायालय को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। मैं इसे अदालत के संज्ञान में लाना चाहता था क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने शिरूर मठ को इस तरह पढ़ा जैसे कि इस मामले में कहा गया हो कि पोशाक अपने आप में धार्मिक प्रथा हो जाएगी।  

03:40 PM (IST) Feb 21
भोजन और पोशाक को आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं मान सकते : एजी

एजी : कोई भी धार्मिक अभ्यास आवश्यक है या नहीं, इस इससे तय होता है कि कि क्या यह मूल विश्वास है जिस पर धर्म की स्थापना की गई है। क्या अभ्यास धर्म के लिए मौलिक है। और यदि अभ्यास का पालन नहीं किया गया तो क्या धर्म गायब हो जाएगा? 

एजी ने वेंकट स्वामी मामले का जिक्र करते हुए तर्क दिया, जिसमें गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों को पूजा करने का अधिकार है और दूसरों को उन मंदिरों में पूजा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने वंश का पता लगाया कि कैसे उनके पूर्वजों द्वारा कश्मीर से मूर्तियों को लाया गया था।
एजी : सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक हिजाब के मामले में भोजन और पोशाक को आवश्यक धार्मिक प्रथाएं  नहीं माना जा सकता। 

03:35 PM (IST) Feb 21
परिवर्तनीय भाग या प्रभाएं धर्म का मूल नहीं : नवदगी

एजी नवदगी ने अनुच्छेद 25 से जुड़े पहले कोर्ट के पांच फैसले पढ़कर सुनाए। इनके मुताबिक परिवर्तनीय भाग या प्रथाएं निश्चित रूप से धर्म का 'मूल' नहीं हैं, जहां यह विश्वास आधारित हैं, और इनके आधार पर धर्म की स्थापना की जाती है। इसे केवल गैर-आवश्यक भाग या प्रथाओं के लिए अलंकरण के रूप में माना जा सकता है। 

03:27 PM (IST) Feb 21
जिस प्रथा को संरक्षित करना चाहते हैं, उसका धर्म के जरूरी होना आवश्यक : एजी नवदगी

एजी नवदगी : स्वतंत्रता वह है जो आपके भीतर है। जब आप इसका अभ्यास करते हैं, तो यह एक अधिकार बन जाता है। आवश्यक धार्मिक प्रथा के संबंध में कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिकृत रूप से तय किया गया है। अनुच्छेद 25 इसे 'आवश्यक' नहीं कहता है, यह केवल धार्मिक अभ्यास है। अनुच्छेद 25 धार्मिक प्रथाओं के संरक्षण की बात करता है न कि धार्मिक अभ्यास के बारे में। धर्म वास्तव में क्या है यह परिभाषित करना असंभव है। 
शिरूर मठ में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्टैंड लिया कि जो अनिवार्य रूप से धार्मिक है वह संरक्षित है। अंत में, सबरीमाला में उन्होंने कहा कि आपको यह दिखाना होगा कि जिस प्रथा को आप संरक्षित करना चाहते हैं वह धर्म के लिए आवश्यक है। 

03:22 PM (IST) Feb 21
काल मार्क्स ने कहा- धर्म जनता की अफीम है, लेकिन यह हमारे यहां लागू नहीं : जस्टिस दीक्षित

एजी नवदगी ने डॉ. अम्बेडकर द्वारा 'धर्म को संस्था में आने की अनुमति न दें' कहने वाले कथन का संदर्भ दिया। भगवद गीता, बाइबिल, कुरान सभी में नेक विचार हैं, लेकिन वे इसे शिक्षण संस्थानों से बाहर रखना चाहते थे, क्योंकि कलह या टकराव की संभावना थी। इसलिए वे (संविधान निर्माता) जानबूझकर इसे बाहर रखना चाहते हैं।

जस्टिस दीक्षित : कार्ल मार्क्स ने जो कहा था, वह हमारे संविधान ने लागू नहीं किया है कि धर्म जनता की अफीम है।

03:17 PM (IST) Feb 21
धर्मनिरपेक्ष राज्य बनना है तो धर्म का अधिकार क्यों ?

नवदगी : डॉ अम्बेडकर को कोट करते हुए- मैं कहता हूं कि अनुच्छेद 22 (1) में राज्य संस्थानों में कोई धार्मिक निर्देश नहीं होगा। केएन मुंशी जैसे कुछ लोगों ने कहा कि अगर हमें खुद को धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में अपनाना है तो धर्म का अधिकार क्यों है? इससे किसी धर्म का दूसरों पर आधिपत्य हो सकता है। वे अंततः सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य जैसी आम सहमति पर पहुंचे। 
उन्होंने ही कहा था कि सभी धर्मों में सामाजिक सुधार की अवधारणा पेश की जानी चाहिए। सामाजिक सुधारों का पहला पैरा सभी धर्मों के लिए है, (लेकिन) हिंदू मंदिरों को केवल हिंदू मंदिरों के लिए खोलना - उस समय की मौजूदा परिस्थितियां थीं। 

जस्टिस दीक्षित : हमारे संविधान निर्माताओं की धर्मनिरपेक्षता अमेरिका संविधान के समान नहीं है। यह चर्च और सरकार के बीच की दीवार नहीं है। हम एक ओर सर्व धर्म समभाव और दूसरी ओर धर्म निरापेक्षता के बीच झूलते रहते हैं।

03:13 PM (IST) Feb 21
धर्म असामाजिक नहीं, उनके बीच आपसी संबंध असामाजिक : नवदगी

नवदगी : मैं उल्लेख करना चाहूंगा दुर्भाग्य से इस देश में जो धर्म प्रचलित हैं, वे असामाजिक नहीं हैं। लेकिन ​​उनके आपसी संबंध असामाजिक हैं। मुसलमानों का मानना ​​​​है कि जो कोई इस्लाम की हठधर्मिता में विश्वास नहीं करता है वह एक फकीर है। वह मुसलमानों के साथ भाईचारे का व्यवहार करने का हकदार नहीं है। ईसाइयों की भी ऐसी ही मान्यता है। मुझे लगता है कि किसी संस्था में अगर किसी धर्म के सच्चे चरित्र और दूसरे के गलत चरित्र के संबंध में इन विवादों को स्कूल में ही जोड़ दिया जाता है, तो हमें मामले को देखना चाहिए। 

03:09 PM (IST) Feb 21
राज्य के धन से धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती : नवदगी

जस्टिस दीक्षित : केटी शाह और केएम मुंशी अंतरात्मा को शामिल करने के खिलाफ थे। तब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने यह सुझाव दिया कि ऐसे लोग हैं जो चार्वाकों की तरह ईश्वर या धर्म के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं। 
एजी नवदगी ने संविधान सभा वाद-विवाद के हवाले से कहा-  घनश्याम सिंह गुप्ता ने कहा, अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अर्थ है कि एक व्यक्ति धर्म रखने या धर्म न रखने के लिए स्वतंत्र है। यदि उसका कोई धर्म है तो वह उसे मानने के लिए स्वतंत्र है और अपने धर्म के आदेशों का पालन करने के लिए स्वतंत्र है। सुझाव देने का मतलब यह है कि लोगों का धर्म हो सकता है या कोई धर्म नहीं हो सकता। जब किसी का धर्म नहीं होता तब इसके अभ्यास का सवाल ही नहीं उठता। डॉ. अम्बेडकर ने धर्म के प्रचार के अधिकार पर जोर क्यों दिया? यह अनुच्छेद 28 के संदर्भ में था -इसके मुताबिक  किसी भी शैक्षणिक संस्थान में पूरी तरह से राज्य के धन से किसी धर्म की शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।

03:04 PM (IST) Feb 21
आप जो मानते हैं या नहीं मानते, वह अंतरात्मा की आजादी के दायरे में नहीं : सरकार

जस्टिस खाजी : क्या आवश्यक धार्मिक आचरण अंतरात्मा पर भी लागू होता है?
नवदगी : अंतरात्मा की स्वतंत्रता की अवधारणा कुछ ऐसी है जो विश्वास या अविश्वास से संबंधित है। आप अपनी अंतरात्मा को जो प्रकट करते हैं उसका परिणाम धार्मिक आचरण में होता है। संविधान सभा वाद-विवाद में अंतःकरण की स्वतंत्रता की व्याख्या कैसे की जाए, इसी प्रश्न को उठाया गया था। यह वही है जो आप मानते हैं या नहीं मानते हैं। आप जो अभ्यास करते हैं वह धार्मिक अभ्यास है। इसलिए जरूरी धार्मिक अभ्यास अंतरात्मा की आजादी के दायरे में नहीं आता। 
 

03:02 PM (IST) Feb 21
क्या कोर्ट को अनुच्छेद 25 के उल्लंघन में जाना चाहिए : सीजे

चीफ जस्टिस : तो क्या कोर्ट को अब अनुच्छेद 25 के उल्लंघन आदि में जाना चाहिए, अगर यह राज्य सरकार का रुख है?  चूंकि वे वैधानिक निकाय नहीं हैं, क्या उन्हें कोर्ट के आदेश से विनियमित किया जा सकता है? आप कह रहे हैं कि कॉलेज कमेटी तय करेगी। तो क्या हमें देखना चाहिए कि उन्होंने क्या किया है?

नवदगी : जहां परेशानी आएगी, उनमें से एक प्रश्न (व्यक्तिगत मामले में) यह होगा कि क्या हिजाब पहनने वाले व्यक्ति को कॉलेज के अंदर जाने की अनुमति दी जा सकती है? छात्र तब तर्क देंगे कि यह अनुच्छेद 25 के तहत उनका मौलिक अधिकार है। संस्थान एक स्टैंड लेगा कि यह एकरूपता और अनुशासन के लिए है। इसलिए कोर्ट को इस मामले में जाना चाहिए। सबरीमाला फैसले में, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत ऐसे मामलों में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है और अंततः अदालत को यह तय करना होगा कि अनुच्छेद 25 के तहत लागू की जाने वाली धार्मिक प्रथा को लागू किया जा सकता है या नहीं।याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं कहा है कि उन्हें यूनिफॉर्म के रूप में हिजाब पहनने की अनुमति दें। उन्होंने कहा है कि धार्मिक अभ्यास के रूप में हिजाब पहनने की अनुमति दें। 

 

02:58 PM (IST) Feb 21
सीजे ने पूछा- आपका स्टैंड क्या है? क्या इसे संस्थान पर छोड़ा

नवदगी : हमने कुछ भी निर्धारित नहीं किया है। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर इसका उत्तर कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की प्रस्तावना में है, जो धर्मनिरपेक्ष वातावरण को बढ़ावा देने के लिए है। इसलिए राज्य का स्टैंड यह है कि जो कुछ भी धार्मिक पहलू का परिचय देता है वह नहीं होना चाहिए। 

चीफ जस्टिस : तो आपका स्टैंड है कि राज्य ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन इसे संस्था पर छोड़ दिया है। 

नवदगी : हां, मेरा निवेदन है कि इसे संस्था पर छोड़ दें।