सार
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद है। चीन की इस हरकत के पीछे कई वजह हैं। इनमें से एक वजह वैश्विक स्तर पर भारत चीन के तौर पर विकल्प बनना है। चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है।
नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद है। चीन की इस हरकत के पीछे कई वजह हैं। इनमें से एक वजह वैश्विक स्तर पर भारत चीन के तौर पर विकल्प बनना है। चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है। उधर, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों से चीन के रिश्ते भी ठीक नहीं हैं। ऐसे में इन देशों की कंपनियों के लिए भारत विकल्प बनकर उभरा है। यह चीन को रास नहीं आ रहा। लेकिन कोरोना और सीमा विवाद भारत के लिए कई मौके लेकर आया है। आइए जानते हैं कि कैसै चीन की जगह भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है?
2010 में चीन ने अमेरिका को दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से हटा कर उसका ओहदा छीन लिया था। लेकिन इसकी शुरुआत 1980 में ही हो गई थी, जब चीन ने ड्रग्स से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स के घटिया उत्पादन लेकिन सस्ते दामों पर करना शुरू कर दिया था। चीन के यूएन स्टेटिस्टिक्स डिविसजन के मुताबिक, 2018 में चीन ने ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में 28 प्रतिशत की हिस्सेदारी ली थी। लेकिन अब कोरोना की वजह से चीजें तेजी से बदल रही हैं। कोरोना के कारण चीन में हुए फैक्ट्री शट डाउन के कारण अब अन्य देश प्रोडक्ट्स के लिए नए ऑप्शन देखे जा रहे हैं। इसमें अब स्वदेशी प्रोडक्शन पर जोर डाला जा रहा है। कई देशों को इस बात का अहसास हुआ कि वो चीन पर काफी ज्यादा निर्भर हैं। इस कारण अब वो अपने ही देश में चीजों के प्रोडक्शन पर जोर डालने की सोच रहे हैं।
भारत उठा सकता है स्थिति का फायदा
भारत इसका जबरदस्त फायदा उठा सकता है। अगर भारत में कई यूनिट्स खोले जाएं तो यहां चीजों की प्रोडक्शन बढ़ेगी। भारत ना सिर्फ अपने देश के लिए प्रोडक्शन कर सकता है, बल्कि अन्य देशों में भी प्रोडक्ट्स भेज सकता है। बात अगर आ रही खबरों की करें, तो ऐसा कहा जा रहा है कि कई कंपनियां भारत के साथ टाइअप करने के लिए बातचीत कर रही है। इनका मुख्य ध्यान इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल इक्विपमेंट्स और की फैक्ट्रीज को इस्टैब्लिश करना है। भारत को इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहिए।
वर्ल्ड क्लास मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम कैसे बनाएं?
अगर इतिहास की करें, तो दुनिया लम्बे समय चीन-अमेरिका के टैरिफ की लड़ाई के कारण परेशान थी। COVID 19 के कारण अब अन्य देशों को चीन पर अपनी निर्भरता समझ आ रही है। इस कारण अब सभी देश नए ऑप्शंस की तलाश कर रहे हैं। इस स्थिति में दुनिया के उभर कर सामने आए हैं। इसमें भारत के अलावा वियतनाम, इंडोनेशिया, कंबोडिया और सिंगापुर प्रमुख ऑप्शंस हैं।
कोरोना के इस काल में भारत को कोशिश करनी चाहिए कि वो दुनिया में इस समय एक विश्वसनीय सप्लाई चेन बना ले। ताकि जब कोरोना खत्म हो, तब तक दुनिया को भारत पर विश्वास हो जाए। इसके लिए जरुरी है कि भारत अभी विश्व स्तरीय मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम बना ले। नए इंडस्ट्रीज सेट अप करें। मैन पावर को ट्रेन करे और कई तरह की क्रिएटिविटी दिखाए। साथ ही दुनिया के साथ अपने व्यापार को भी स्मूथ करे।
मैन्युफैक्चरिंग की दुनिया में बादशाह बनने के लिए भारत को 30 साल पीछे इतिहास में जाना होगा। जहां वो ये देख पाएगा कि चीन ने कैसे ये ओहदा पाया। चीन का मुख्य फोकस विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने, लॉजिस्टिक्स, फैक्ट्रीज के लिए परफेक्ट पॉलिसीस बनाने पर था। साथ ही चीन ने लो लेबर वेज पर भी फोकस किया था। यदि भारत उस अनुभव से सीखता है और खरीदारों, विक्रेताओं, प्रौद्योगिकी और स्किलड लेबर के बीच बिलकुल बैलेंस्ड रिश्ता बनाता है तो अवश्य ही चीन को पछाड़ सकता है।
नई तकनीकों और स्किल्स पर ध्यान देना
अगर भारत अधिक से अधिक विदेशी निवेश की सुविधा चाहता है तो उसके लिए हमें सबसे पहले अपनी इनोवेशन और क्रिएटिविटी से दुनिया का विश्वास जीतना। होगा साथ ही प्रोडक्ट के निर्माण में तेजी लाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना। निर्माण की क्षमता भारत में अला-अलग है। इसलिए सबसे पहले खनन, कच्चे माल का उत्पादन और कृषि से संबंधित वस्तुओं पर भारत को फोकस करना होगा।
दूसरी तरफ टेक्सटाइल इंडस्ट्री सेटअप है। जिसमें ज्यादा तो नहीं, लेकिन ख़ास स्किल्स की जरुरत होती है। साथ ही कुछ एक्स्ट्रा लेवल भी होते हैं, जिसमें केमिकल्स के प्रोडक्शन आते हैं। भारत अभी इन मामलों में पीछे है। लेकिन अगर भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनना है, तो उसे इनमें एक्सपर्ट बनना ही होगा।
भारत सरकार ने कोरोना से काफी पहले ही मेक इन इण्डिया और स्किल्स इन इंडिया के जरिये लाखों लोगों को रोजगार देने की पहल कर दी थी। ह्यूमन रिसोर्स का बेहतरीन इस्तेमाल कर भारत इस क्षेत्र में अपने पैर जमा सकता है। आज से बीस साल पहले जब दुनिया खुद को एडवांस बना रही थी, उसी समय भारत के पास आईटी विशेषज्ञों और अंग्रेजी बोलने वाले स्नातकों का एक पूरा ग्रुप था जो उस अवसर को पा सकते थे और भारत को उसी समय दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान मिल चुका होता।
ठीक इसी तरह, अगर आज हम मैन्युफैक्चरिंग की दुनिया में टॉप पर आना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें ह्यूमन रिसोर्स पर काम करना होगा। वक्त के साथ अब हर काम का तरीका और उसकी जरुरत बदल चुकी है। जबसे इंडस्ट्री में आईटी सेक्टर आया है, तबसे 3 डी प्रिंटिंग विशेषज्ञ, ऑटोमोबाइल एनालिटिक्स इंजीनियर, परिधान डेटा विश्लेषक, ई-कपड़ा विशेषज्ञ आदि जैसे एक्सपर्ट्स की मांग बढ़ गई है। भारत को इन सभी क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
भविष्य को ध्यान में रखकर बनाएं प्लान
भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को भी अवसर की ओर बढ़ना चाहिए और शिफ्टिंग विनिर्माण व्यवसाय की एक प्रमुख पाई को कैसे हड़पने के लिए भविष्य के दृष्टिकोण के साथ योजना बनानी चाहिए। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भारतीय बाजार और विनिर्माण क्षेत्र का विकास हमें वैश्विक उद्योगों की कई विनिर्माण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विनिर्माण हॉटस्पॉट को स्केल करने की अनुमति दे सकता है।
भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को को अब भविष्य को ध्यान में रखकर प्लान बनाना चाहिए। कोशिश ये करनी चाहिए कि कैसे मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में ज्यादा से ज्यादा इनोवेशन कैसे लेकर आया जाए। हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में भारतीय मार्केट आगे बढ़ेगा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर हमें इस बात की इजाजत देगा कि हम एक साथ कई इंडस्ट्रीज को चला पाएं और बेहतर प्रोडक्शन कर पाएं।