पुलिस स्टेशन में वीडियो बनाना क्या क्राइम है? जानें क्या कहता है कानून
Shooting video in police station : बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था - आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923 के अनुसार, पुलिस स्टेशनों में वीडियो और तस्वीरें लेना अपराध नहीं है। कानूनी तौर पर पुलिस स्टेशनों के अंदर वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिए।
- FB
- TW
- Linkdin
Shooting video in police station : देश में नागरिकों की सुरक्षा और समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस व्यवस्था है। लोगों के लिए भारत सरकार द्वारा लाई गई व्यवस्थाओं में से एक है। पुलिस और पुलिस व्यवस्था से आज भी बहुत से लोगों में डर बना रहता है। सिर्फ़ प्रजा रक्षक नाम से ही नहीं, बल्कि अब तक हुई कई घटनाओं के कारण पुलिस के प्रति एक तरह का भय लोगों में पैदा हो गया है। वहीं, पुलिस स्टेशन का नाम सुनते ही बहुत से लोग भाग खड़े होते हैं। कोई भी समस्या आने पर भी न जाने की स्थिति कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
हालांकि, पुलिस स्टेशन और पुलिस कानून से ऊपर नहीं हैं, ये बातें अभी भी जमीनी स्तर पर लोगों तक पहुँचनी बाकी हैं। पुलिस और पुलिस व्यवस्था लोगों की सुरक्षा के लिए ही है, यह जानने के लिए पहले आम जनता को भारत के कानूनों के बारे में भी कुछ बातें पता होनी चाहिए। ऐसा करने की ज़िम्मेदारी सरकार, सरकारी तंत्र और नेताओं पर होती है।
पुलिस स्टेशन में ही वहाँ आने वालों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ अब तक बहुत हो चुकी हैं। ऐसे में फ़ोन में फ़ोटो, वीडियो लेने पर पीड़ितों पर भी मामले दर्ज किए जाने की घटनाएँ भी सामने आई हैं। क्या वाकई पुलिस स्टेशन में फ़ोटो, वीडियो लिए जा सकते हैं? क्या पुलिस इसकी इजाज़त देती है? क्या ऐसा करने के लिए कोई क़ानूनी वैधता है? अगर वीडियो बनाया जाए तो क्या पुलिस वापस केस दर्ज कर सकती है? आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ बातें।
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923
पुलिस और पुलिस स्टेशन से डरने की ज़रूरत नहीं है, यह बात कई बार खुद पुलिस के आला अधिकारियों ने कही है। यह सच है कि पुलिस से डरने की ज़रूरत नहीं है। क़ानून के सामने सभी बराबर हैं। पुलिस स्टेशन में भी फ़ोटो, वीडियो लिए जा सकते हैं। यह कोई अपराध नहीं है। यह हम नहीं कह रहे हैं.. अदालतें भी इस बात का उल्लेख कर चुकी हैं। इसके लिए अलग से क़ानून भी है। पहले भी ऐसे मामलों पर अदालतें फ़ैसले सुना चुकी हैं। आज भी न्यायपालिका इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम-1923 (Penalties and Prosecutions Under Official Secrets Act, 1923) के तहत पुलिस स्टेशनों में फ़ोटो, वीडियो लेना कोई अपराध नहीं है, बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है। इसलिए, क़ानूनी तौर पर, पुलिस स्टेशनों के अंदर पुलिसकर्मियों की वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिए।
क्या पुलिस से बातचीत भी रिकॉर्ड की जा सकती है?
साथ ही, पुलिस स्टेशन में बातचीत को रिकॉर्ड भी किया जा सकता है। आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत पुलिस स्टेशन 'प्रतिबंधित क्षेत्र' नहीं है, इसलिए पुलिस स्टेशन के अंदर वीडियो रिकॉर्डिंग क़ानूनन अपराध नहीं है। वहाँ पुलिस से की जाने वाली बातचीत को भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। हालाँकि, यह ध्यान रखना होगा कि यह उनके कर्तव्य में बाधा डालने वाला न हो।
अगर पुलिस गोपनीयता का अधिकार उठाए तो..
यहाँ पुलिस अपनी निजता के अधिकार का भी हवाला दे सकती है। यानी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हमें जीने का अधिकार और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसमें निजता का अधिकार भी शामिल है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि जब कोई पुलिस अधिकारी अपनी निजता का आनंद ले रहा हो, तो लोक सेवक के रूप में ड्यूटी पर रहते हुए उसके कार्यों को ऐसे अधिकार द्वारा संरक्षित नहीं किया जाता है। इसलिए किसी पुलिस अधिकारी की वीडियो रिकॉर्डिंग करना अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
पुलिस स्टेशन में वीडियो- बॉम्बे हाईकोर्ट का सनसनीखेज फैसला
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (Penalties and Prosecutions Under Official Secrets Act, 1923) के तहत पुलिस स्टेशन को 'प्रतिबंधित क्षेत्र' के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी बात का उल्लेख करते हुए 2018 में दो आपसी विवादों को सुलझाने के लिए वर्धा में हुई बातचीत का गुप्त रूप से वीडियो बनाने वाले एक व्यक्ति पर वर्धा में 'जासूसी' का आपराधिक मामला बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा सुनाए गए इस मामले के विवरण पर गौर करें तो.. जस्टिस मनीष पिताले, जस्टिस वाल्मीकि की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों की सूची में पुलिस स्टेशन शामिल नहीं है। इसलिए वहां वीडियो बनाना कोई अपराध नहीं है।
पुलिस स्टेशन में वीडियो.. कोर्ट में नहीं टिका पुलिस का केस
महाराष्ट्र के वर्धा निवासी रवींद्र उपाध्याय और उनके पड़ोसी के बीच झड़प हो गई। इसके बाद मामला पुलिस स्टेशन पहुँचा। दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ मामले भी दर्ज कराए। हालाँकि, जब दोनों को बिठाकर पुलिस स्टेशन में बातचीत चल रही थी, तो शिक्षक ने अपने सेल फ़ोन में उसे रिकॉर्ड कर लिया। इसके बाद आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत उनके ख़िलाफ़ पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया। मामला कोर्ट पहुँचने पर सनसनीखेज फैसला आया। सिर्फ़ जासूसी को रोकने के उद्देश्य से कुछ स्थानों को प्रतिबंधित क्षेत्रों के रूप में इस अधिनियम (Penalties and Prosecutions Under Official Secrets Act, 1923) में मान्यता दी गई है। इसलिए वहाँ फ़ोटो, वीडियो बनाना प्रतिबंधित है। इस अधिनियम की धारा 2(8), धारा 3 में इससे संबंधित विवरण हैं। लेकिन, इस सूची में पुलिस स्टेशन शामिल नहीं हैं। इसलिए वहाँ वीडियो बनाना अपराध नहीं है, ऐसा कोर्ट ने फैसला सुनाया। केस को रद्द कर दिया गया।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता क्या कहती है?
भारतीय न्याय व्यवस्था में नई लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSSS) के अनुसार, पुलिस स्टेशनों में तलाशी, ज़ब्ती के दौरान उन दृश्यों को मोबाइल फ़ोन में वीडियो बनाना अनिवार्य है। इस प्रावधान का उद्देश्य पुलिस अत्याचार पर अंकुश लगाना है। हालाँकि, यह वीडियो बनाने के लिए अपनाई जाने वाली मानक प्रक्रियाओं का उल्लेख क़ानून में स्पष्ट रूप से नहीं किया गया है। यह नया क़ानून लागू होने के बाद, गवाहों की सुरक्षा और उनके सहयोग को ध्यान में रखते हुए गवाह सुरक्षा योजना को सभी राज्य सरकारों को अनिवार्य रूप से लागू करना होगा।