सार

चुनाव आयोग ने नियमों में बदलाव कर आम लोगों की CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसी चुनावी सामग्री तक पहुंच रोक दी है। इससे पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। क्या सरकार कुछ छिपा रही है?

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया है। अब आम लोग मतदान के दौरान पोलिंग बूथ के CCTV कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग वीडियो और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं देख पाएंगे। इस बदलाव ने नए विवाद को जन्म दे दिया है। कांग्रेस ने इसे संविधान पर हमला बताया है। आइए जानते हैं पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार आपसे ऐसी जानकारी क्यों छिपाना चाहती है। इसका मकसद क्या है।

पहले नियम 93 के तहत आम लोगों को चुनाव से जुड़े सभी "कागजातों" तक व्यापक पहुंच दी गई थी। अब इसे सिर्फ उन दस्तावेजों तक सीमित कर दिया गया है जिनका नियमों में स्पष्ट उल्लेख है। जैसे नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंट की, नतीजे और उम्मीदवार को चुनाव लड़ने में हुआ खर्च।

CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग डेटा और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का जिक्र नियम 93 की लिस्ट में नहीं है। चुनाव आयोग ने इसका तर्क देकर कहा है कि सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग डेटा और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड आम लोगों की पहुंच से दूर करना गलत नहीं है। नए बदलाव में उम्मीदवारों को इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड देखने से रोका नहीं गया है। उम्मीदवार अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के लिए इलेक्ट्रॉनिक सामग्री सहित सभी चुनाव-संबंधी दस्तावेज प्राप्त कर सकेंगे। यह व्यवस्था चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए की गई है। अगर किसी उम्मीदवार को शक है कि किसी मतदान केंद्र में चुनाव के दौरान गड़बड़ हुई है तो वह उस मतदान केंद्र से जुड़े वीडियो की मांग कर सकता है।

चुनाव आयोग ने क्यों आम लोगों को इलेक्ट्रॉनिक डेटा देखने से रोका?

चुनाव आयोग का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक डेटा के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए आम लोगों की पहुंच ऐसी सामग्री तक रोकी गई है। मतदान केंद्रों से सीसीटीवी फुटेज को अगर सार्वजनिक किया गया तो मतदाता की गोपनीयता से समझौता हो सकता है। जम्मू-कश्मीर या माओवाद प्रभावित क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।

चुनाव आयोग के अनुसार AI का इस्तेमाल कर चुनाव से जुड़े वीडियो से छेड़छाड़ किया जा सकता है। इससे गलत जानकारी फैलाई जा सकती है। यह चुनाव की पारदर्शिता को खत्म करेगा और जनता का भरोसा कम करेगा।

चुनाव आयोग को क्या करना पड़ा बदलाव?

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने महमूद प्राचा बनाम ईसी मामले में विवादास्पद फैसला दिया था। वकील प्राचा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित सीसीटीवी फुटेज और फॉर्म 17-सी सहित व्यापक चुनाव रिकॉर्ड तक पहुंच की मांग की थी। कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने नियम 93 की व्याख्या करते हुए कहा कि ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड तक पहुंच की अनुमति है। कोर्ट के इस फैसले से नियम 93 की भाषा में अस्पष्टता उजागर हुई। इसके बाद चुनाव आयोग और केंद्र सरकार ने तुरंत नियम में बदलाव किए।

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