सार
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय दंड प्रकिया संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023 बिल पेश किया। इस बिल के तहत पुराने कानूनों को खत्म किया गया है और नए अपराधों को शामिल किया गया है।
Bhartiya Nyay Sanhita 2023. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय दंड प्रकिया संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023 बिल पेश किया। इस बिल के तहत पुराने कानून जैसे देशद्रोह को खत्म किया गया है। इसकी जगह पर अब अलगाव के कृत्य जैसे अपराधों को शामिल किया गया है। इसका सीधा मतलब है कि अब देशद्रोह का नाम नहीं लिया जाएगा बल्कि देश से अलगाव वाले अपराधों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है।
राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त किया गया
केंद्र ने देश के आपराधिक कानूनों में बदलाव के लिए संसद में तीन नए विधेयक पेश किए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को निरस्त करने और बदलने का प्रस्ताव रखा। अमित शाह ने कहा कि विधेयकों में विवादास्पद राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त करने का प्रावधान है। साथ ही अपराध की गंभीरता के आधार पर मॉब लिंचिंग के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया जाएगा।
क्या होती है मॉब लिंचिंग
कानून के अनुसार जब 5 या अधिक व्यक्तियों का समूह एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर किसी की हत्या करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मौत की सजा दी जाएगी। भारतीय न्याय संहिता जो अब भारतीय दंड संहिता का स्थान लेगी, वह कहती है कि आजीवन कारावास या 7 साल से कम समय के कारावास और जुर्माना भी लगाया जाएगा। नए कानून के तहत चुनाव के दौरान वोटर्स को रिश्वत देने पर 1 साल की सजा दी जाएगी। गैंपरेप जैसे अपराध के लिए 20 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास की सजा है। जबकि नाबालिग से रेप के अपराध के लिए मौत की सजा भी दी जा सकती है।
क्या होगी कानूनी प्रक्रिया
इन अपराधों के लिए तलाशी और चालान प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाएगी। ई-एफआईआर कहीं से भी दर्ज कराई जा सकती है। जो लोग फरार हैं उन पर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है। एफआईआर पर 90 दिनों में अपडेट अनिवार्य होगा। जीरो एफआईआर को कानून में संहिताबद्ध किया जाएगा। सिविल में मुकदमा चलाने के लिए टाइम बाउंड मंजूरी दी जाएगी। इन बिलों को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है।
गुलामी खत्म करने का वादा पूरा कर रही सरकार
अमित शाह ने कहा कि 16 अगस्त से आजादी के 75वें से 100वें साल की यात्रा शुरू होगी। पीएम मोदी ने गुलामी की मानसिकता को खत्म करने की कसम खाई है। नए कानून के तहत आईपीसी (1857), सीआरपीसी (1858), इंडियन एविडेंस एक्ट (1872) को खत्म किया जाएगा। यह सब अंग्रेजों द्वारा बनाए गए थे। भारतीय नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उनकी जगह पर तीन नए कानून लाए गए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य सजा देना नहीं बल्कि न्याय देना है। अमित शाह ने कहा कि लोग कोर्ट कचहरी जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वहां जाना ही सजा है।
यह दो विधेयक भी पेश किए गए
इसके अलावा दो अन्य विधेयक यानि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य पेश किया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता अब भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की जगह लेगा। जबकि भारतीय साक्ष्य, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेगा। गृहमंत्री ने कहा कि इस बिल के तहत हमने लक्ष्य रखा है कि सजा का अनुपात 90 प्रतिशत से ऊपर हो। इसीलिए हम महत्वपूर्ण प्रावधान लेकर आए हैं। अमित शाह ने कहा इन सभी मामले की फॉरेंसिक टीम का क्राइम स्पॉट पर जाना अनिवार्य होगा।
इन पुराने कानूनों की जगह लेंगे नए कानून
- भारतीय दंड संहिता (1857) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता (2023) होगा
- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1852) की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (2023) होगा
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) की जगह अब भारतीय साक्ष्य (2023) होगा
खत्म हुआ विवादास्पद राजद्रोह कानून
केंद्र सरकार ने आईपीसी की धारा 124ए को निरस्त करके राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया है। इसकी जगह अब नए अपराधों को जोडा गया है। संशोधित कानून में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले अपराधों को जोड़ा गया है। वहीं मॉब लिंचिंग के मामलों में त्वरित न्याय के साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
कैसे लाए गए यह कानून
केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को संशोधित करने और सुझाव देने के लिए आपराधिक कानून सुधार समिति का गठन किया था। समिति की अध्यक्षता नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर डॉ रणबीर सिंह ने की। इसमें तत्कालीन रजिस्ट्रार डॉ. जीएस बाजपेयी, डीएनएलयू के वीसी प्रोफेसर डॉ. बलराज चौहान, वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी और दिल्ली के पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश जीपी थरेजा शामिल थे। फरवरी 2022 में कमेटी ने जनता से सुझाव लेकर सरकार को रिपोर्ट सौंपी।
यह भी पढ़ें