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भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा सूर्यास्त के साथ विश्राम के लिए रूकी, सुबह फिर शुरू होगी यात्रा, 55 साल बाद 2 दिन की यात्रा
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सूर्यास्त के साथ ही पहले दिन की यात्रा पूर्ण हुई। प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ, रोक दिए गए हैं। महाप्रभु की पूजा रविवार को रथों पर ही होगी। सोमवार सुबह भी रथों पर ही पूजा होगी। सुबह नियमित पूजा-पाठ के बाद महाप्रभु का रथ आगे यात्रा के लिए बढ़ेगा। रविवार को लाखों भक्तों ने महाप्रभु के रथ को खींचा। इसमें राष्ट्रपति भी शामिल रहीं। लाखों लोग रथ को खींचने के लिए पहुंचे थे इसलिए यह यात्रा रूकरूक कर आगे बढ़ रही थी।
रविवार को दो दिनी रथ यात्रा की शुरूआत भगवान की पूजा-अर्चना के साथ किया गया। रथयात्रा शुरू होने के पहले पुरी के राजा दिव्य सिंह देव ने छोरा पोहरा परंपरा की रस्में अदा की। इस परंपरा के तहत उन्होंने सोने के झाडू से रथों को आगे से बुहारा लगाया और जल छिड़का। फिर रथयात्रा शुरू हुई।
रथयात्रा में सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ चल रहा है। इसके बाद बीच में बहन सुभद्रा का रथ है। सबसे आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ चलेगा। महाप्रभु जगन्नाथ का रथ सबसे ऊंचा है। भगवान बलभद्र अपने रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा पद्मरथ में और जगन्नाथ जी अपने रथ नंदीघोष में विराजित होकर चल रहे। रथों को सूर्यास्त तक ही खिंचे जाने की परंपरा है।
सूर्यास्त होने पर रथ जहां तक पहुंचे वहीं रोक दिए गए। रथों पर ही भगवान का नित्य पूजा किया जाएगा। संध्या आरती होगी, इसके बाद भगवान का भोग लगाया जाएगा। फिर शयन आरती होगी। सोमवार सुबह फिर से रथ खींचे जाएंगे और शाम तक महाप्रभु, गुंडिचा मंदिर पहुंच जाएंगे।
महाप्रभु के रथयात्रा के दौरान पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भगवान जगन्नाथ की पूजा और दर्शन किए। इसके बाद पुरी के गजपति महाराजा ने भगवान की पूजा की। गजपति महाराजा को जगन्नाथ जी का प्रमुख सेवक माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने परिक्रमा की। यात्रा में राष्ट्रपति के अलावा राज्यपाल रघुबर दास, मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित तमाम गणमान्य मौजूद रहे।
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