सार
गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद (Atiq Ahmad) और उसके भाई अशरफ (Ashraf) की 16 अप्रैल को गोली मारकर हत्या कर दी गई। यूपी के प्रयागराज में मेडिकल के लिए ले जाते वक्त तीन हमलावरों ने उन्हें नजदीक से गोली मार दी।
Atiq-Ashraf Murder. गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद (Atiq Ahmad) और उसके भाई अशरफ (Ashraf) की 16 अप्रैल को गोली मारकर हत्या कर दी गई। यूपी के प्रयागराज में मेडिकल के लिए ले जाते वक्त तीन हमलावरों ने उन्हें नजदीक से गोली मार दी। अतीक अहमद 2005 में हुए बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का मुख्य आरोपी था। साथ ही इसी साल फरवरी में हुए उमेश पास हत्याकांड का मुख्य षड़ंयत्रकारी भी था।
मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में हत्या
यह हत्याकांड इसलिए भी सनसनीखेज बन गया क्योंकि मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में लाइव टेलीकास्ट के दौरान अतीक और अशरफ को गोली मार दी गई। इससे यूपी में रहने वाले मुसलमानों की भावनाएं आहत हुईं। सोशल मीडिया पर ज्यादातर लोगों ने कहा कि यह प्रदेश में कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने वाला है और न्यायपालिका से इतर हत्या है। यह कहना मुश्किल है कि मुसलमानों की यह भावनाएं सही हैं या गलत। इससे यह भी दिखा कि भारत में मुसलमानों की क्या स्थिति है। लेकिन इस घटना को बिना किसी धार्मिक चश्मे और पूर्वाग्रह से देखने की जरूरत है। इसे किसी धर्म से जोड़ने की भी जरूरत नहीं है।
कौन था अतीक अहमद
अतीक अहमद की कहानी काफी उतार-चढ़ाव भरी है। 17 साल की उम्र में उसने पहला मर्डर किया था। इसके बाद से जुर्म की दुनिया में उसका नाम आगे बढ़ता चला गया। अतीक पर 100 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे। इनमें हत्या, लूट, अपहरण, जबरन वसूली जैसे गंभीर मामले शामिल थे। माफिया लिंक और मनी पावर के दम पर वह बाद में सांसद भी बन गया। पहले वह इलाहाबाद उत्तरी सीट से विधायक बना फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर फूलपुर से सांसद बना।
राजू पाल हत्याकांड
अतीक अहमद जब सांसद बना तो उसकी खाली हुई विधायक की सीट से राजू पाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। राजू पाल ने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया जिसके बाद यह दुश्मनी शुरू हो गई। विधायक बनने के कुछ ही महीने बाद 2005 में राजू पाल की हत्या कर दी गई। इस मामले में पुलिस ने अतीक अहमद पर एफआईआर दर्ज की। इसके बाद फिर इसी सीट पर हुए उपचुनाव में अशरफ की जीत हुई और राजू पाल की पत्नी पूजा पाल हार गईं।
अपराध से जुड़े रहे अतीक के तार
अतीक अहमद मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ लेकिन उसने खुद ही अपराध का रास्ता चुना। अपराध की दुनिया में अतीक का खौफ रहा और उसने ऐसे-ऐसे क्राइम किए जिसे सुनकर किसी के भी होश उड़ सकते हैं। इसलिए अतीक को किसी धर्म के साथ जोड़ना गलत होगा क्योंकि उसने धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जघन्य अपराध किए। भारत का कानून कहता है कि किसी अपराधी को उसके धर्म, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। यह सच है कि कई समुदाय खुद को हाशिए पर पाते हैं लेकिन उनके लिए भी एक ही तरह का कानून काम करता है।
विकास दूबे का एनकाउंटर
यूपी एसटीएफ ने साल 2021 में गैंगस्टर विकास दूबे का एनकाउंटर किया, तब शायद किसी ने भी उसे धर्म से जोड़कर नहीं देखा। यूपी सरकार माफिया के खिलाफ कार्रवाई की योजना बनाई है और उसी के तहत यह काम किया जा रहा है। यदि हम ऐसे मामलों को धर्म से जोड़ेंगे तो यह एकता के खतरा होगा और इससे समुदायों के बीच की दूरियां ही बढ़ेंगी। यूपी की इस घटना का प्रदेश सरकार ने गंभीरता के लिया है और जांच के न्यायिक आयोग का गठन किया है। इस मामले की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटार्ड जज अरविंद कुमार त्रिपाठी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया है। इसमें रिटायर्ड आईपीएस सुबेश कुमार सिंह, पूर्व जिला जज बृजेश सोनी शामिल हैं। यह कमेटी को दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।
पीड़ितों के बारे में भी सोचे मुस्लिम समाज
मुस्लिम समुदाय को याद रखना चाहिए कि अतीक अहमद के जुल्मों के शिकार परिवारों लोग भी इंसान थे। उनमें से कई मुसलमान भी रहे होंगे। एक ऐसे शख्स की मौत का शोक मनाने की बजाय अतीक के अपराध का शिकार हुए लोगों को मिले न्याय पर विचार करना चाहिए। भारतीय मुसलमानों को यह भी महसूस करना चाहिए कि अतीक अहमद का काम इस्लाम के मूल्यों और शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। मुस्लिम समुदाय के लिए अतीक अहमद जैसे अपराधियों के कार्यों से खुद को दूर करना और शांति, समझ और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अन्य समुदायों के साथ मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है।
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लेखक- (डॉ. शोमेला वारसी, पीएचडी- दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पढ़ाती हैं। यह विचार व्यक्तिगत हैं।)
साभार- आवाज द वॉयस