सार
एंटीलिया केस से शुरू हुई पड़ताल पूर्व पुलिस कमिश्वर परमबीर सिंह की चिट्ठी तक जा पहुंची। चिट्ठी में महाराष्ट्र के गृहमंत्री देशमुख पर वसूली का आरोप लगाया गया। अब शिवसेना ने सामना के जरिए परमबीर सिंह की चिट्ठी पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, परमबीर सिंह भरोसे लायक अधिकारी बिल्कुल नहीं हैं। उन पर विश्वास नहीं रखा जा सकता है, ऐसा मत कल तक भारतीय जनता पार्टी का था परंतु उसी परमबीर सिंह को आज भाजपा सिर पर बैठाकर नाच रही है।
मुंबई. एंटीलिया केस से शुरू हुई पड़ताल पूर्व पुलिस कमिश्वर परमबीर सिंह की चिट्ठी तक जा पहुंची। चिट्ठी में महाराष्ट्र के गृहमंत्री देशमुख पर वसूली का आरोप लगाया गया। अब शिवसेना ने सामना के जरिए परमबीर सिंह की चिट्ठी पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, परमबीर सिंह भरोसे लायक अधिकारी बिल्कुल नहीं हैं। उन पर विश्वास नहीं रखा जा सकता है, ऐसा मत कल तक भारतीय जनता पार्टी का था परंतु उसी परमबीर सिंह को आज भाजपा सिर पर बैठाकर नाच रही है।
"पूरा मामला सही ढंग से संभाल नहीं पाए व पुलिस विभाग की बदनामी हुई"
परमबीर सिंह को राज्य सरकार ने पुलिस आयुक्त पद से हटा दिया है। अंटालिया विस्फोटक मामले में एपीआई सचिन वाझे एनआईए की हिरासत में हैं। ये पूरा मामला सही ढंग से संभाल नहीं पाए व पुलिस विभाग की बदनामी हुई, ऐसा मानकर सरकार ने पुलिस आयुक्त को पद से हटा दिया। सचिन वाझे को हटाकर क्या फायदा? पुलिस आयुक्त को हटाओ, भाजपा की यही मांग थी। अब उसी परमबीर सिंह को भाजपावाले कंधे पर उठाकर बाराती की तरह मस्त होकर नाच रहे हैं। यह राजनैतिक विरोधाभास है।
"कई जिम्मेदारियों का बेहतरीन ढंग से निर्वहन किया"
परमबीर सिंह के खिलाफ सरकार ने कार्रवाई की है इसलिए उनकी भावनाओं का विस्फोट समझ सकते हैं। परंतु सरकारी सेवा में अत्यंत वरिष्ठ पद पर विराजमान व्यक्ति द्वारा ऐसा पत्राचार करना नियमोचित है क्या? गृहमंत्री पर आरोप लगानेवाला पत्र मुख्यमंत्री को लिखा जाए और उसे प्रसार माध्यमों तक पहुंचा दिया जाए, यह अनुशासन के तहत उचित नहीं है। परमबीर सिंह निश्चित तौर पर एक धड़ाकेबाज अधिकारी हैं। उन्होंने कई जिम्मेदारियों का बेहतरीन ढंग से निर्वहन किया।
सुशांत राजपूत प्रकरण में उनके नेतृत्व में पुलिस ने अच्छी जांच की इसलिए सीबीआई को अंत तक हाथ मलते रहना पड़ा। कंगना नामक अभिनेत्री का मामला उन्होंने बेहतरीन ढंग से संभाला परंतु अंटालिया मामले में विरोधियों ने उन पर आरोप लगाया, यह सत्य होगा फिर भी किसी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसा पत्र लिखकर सरकार को आरोपियों के कटघरे में खड़ा करना उचित नहीं है। परमबीर सिंह का कहना ऐसा है कि गृहमंत्री ने सचिन वाझे को हर महीने सौ करोड़ रुपए जुटाकर देने को कहा था।
"परमबीर सिंह को थोड़ा संयम रखना चाहिए था"
परमबीर सिंह को थोड़ा संयम रखना चाहिए था। उस पर सरकार को परेशानी में डालने के लिए परमबीर सिंह का कोई इस्तेमाल कर रहा है क्या? ऐसी शंका भी है। असल में जिस सचिन वाझे के कारण ये पूरा तूफान खड़ा हुआ है, उन्हें इतने असीमित अधिकार दिए किसने? सचिन वाझे ने बहुत ज्यादा उधम मचाया। उसे समय पर रोका गया होता तो मुंबई पुलिस आयुक्त पद की प्रतिष्ठा बच गई होती। परंतु इस पूर्व आयुक्त द्वारा कुछ मामलों में अच्छा काम करने के बावजूद वाझे प्रकरण में उनकी बदनामी हुई। वाझे पर मनसुख हिरेन की हत्या का आरोप लगा है। एनआईए इस पूरे प्रकरण में परमबीर सिंह को जांच के लिए बुला सकती है, ऐसा कहा जा रहा है।
गृहमंत्री अनिल देशमुख ने अब स्पष्ट कर दिया है कि अंबानी के घर के बाहर मिले विस्फोटकों के मामले में, साथ ही मनसुख हिरेन हत्या मामले में सचिन वाझे की भूमिका स्पष्ट हो रही है। इस प्रकरण के तार परमबीर सिंह तक पहुंचेंगे ऐसी आशंका जांच में सामने आने से परमबीर सिंह ने खुद को बचाने के लिए इस तरह के आरोप लगाए हैं, यह सत्य होगा तो इस पूरे प्रकरण में भाजपा, सरकार को बदनाम करने के लिए परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रही है। सरकार को सिर्फ बदनाम ही करना है, ऐसा नहीं है बल्कि सरकार को मुश्किल में डालना है, ऐसी उनकी नीति है।
"देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जाकर मोदी-शाह को मिलते हैं"
देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जाकर मोदी-शाह को मिलते हैं और दो दिन में परमबीर सिंह ऐसा पत्र लिखकर खलबली मचाते हैं। उस पत्र का आधार लेकर विपक्ष जो हंगामा करता है, यह एक साजिश का ही हिस्सा नजर आता है। महाराष्ट्र में विपक्ष ने केंद्रीय जांच एजेंसियों का निरंकुश इस्तेमाल शुरू किया है, महाराष्ट्र जैसे राज्य के लिए ये उचित नहीं है। एक तरफ राज्यपाल राजभवन में बैठकर अलग ही शरारत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से दबाव का खेल खेल रही है। कहीं किसी हिस्से में चार मुर्गियां और दो कौवे बिजली के तार से करंट लगने से मर गए तब भी केंद्र सरकार महाराष्ट्र में सीबीआई अथवा एनआईए को भेज सकती है, ऐसा कुल मिलाकर नजर आ रहा है।
महाराष्ट्र के संदर्भ में कानून व व्यवस्था आदि ठीक न होने का ठीकरा फोड़ा जाए और राष्ट्रपति शासन का हथौड़ा चलाया जाए, यही महाराष्ट्र के विपक्ष का अंतिम ध्येय नजर आता है और इसके लिए नए प्यादे तैयार किए जा रहे हैं। परमबीर सिंह का इस्तेमाल इसी तरह से किया जा रहा है, यह अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अर्थात पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने जो आरोपों की धूल उड़ाई है, उसके कारण गृह विभाग की छवि निश्चित ही मलीन हुई है। यह सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है और विपक्ष को बैठे-बैठाए मौका मिल गया है।
पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार होता ही है, ऐसा लोग मान चुके हैं परंतु पुलिस से ज्यादा भ्रष्टाचार इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई जैसे विभागों में है परंतु इन विभागों का जनता से पाला नहीं पड़ता है जबकि पुलिस का रोज का संबंध है इसलिए पुलिस की छवि ही कई बार सरकार की छवि सिद्ध होती है। उसी प्रतिष्ठा पर विपक्ष ने कीचड़ उछाला है। इसमें महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा मलीन हुई, यह विपक्ष भूल गया होगा तो इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहना होगा। परमबीर सिंह के निलंबन की मांग कल तक महाराष्ट्र का विपक्ष कर रहा था। आज परमबीर सिंह विरोधियों की डार्लिंग बन गए हैं और परमबीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। महाविकास आघाड़ी सरकार के पास आज भी अच्छा बहुमत है। बहुमत पर हावी होने की कोशिश करोगे तो आग लगेगी, यह चेतावनी न होकर वास्तविकता है। किसी अधिकारी के कारण सरकार बनती नहीं और गिरती भी नहीं है, यह विपक्ष को भूलना नहीं चाहिए!