सार
Supreme Court ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को विवादित बिल सुप्रीम कोर्ट को भेजना चाहिए। Tamil Nadu के मामले में राज्यपाल द्वारा बिल अटकाना अवैध ठहराया गया। जानिए पूरा मामला।
Supreme Court Judgment: तमिलनाडु में 10 पेंडिंग बिलों को बिना राष्ट्रपति या राज्यपाल की मंजूरी के ही कानून के रूप में अस्तित्व में आ जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जहां गैर-बीजेपी शासित राज्यों को एक राह दिखायी है तो वहीं, केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने न केवल पेंडिंग बिलों को तत्काल प्रभाव से मंजूर कर दिया बल्कि किसी भी बिल की संवैधानिकता पर राय देने के अधिकार क्षेत्र के बारे में भी टिप्पणी की है। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सरकार का मानना है कि कोर्ट ने मंत्रिपरिषद और राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती की है। ऐसे में सरकार एक रिव्यू पेटीशन दाखिल करने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी भी बिल की संवैधानिकता (Constitutionality of a Bill) पर राय देने का अधिकार केवल न्यायालयों (Courts) का है, कार्यपालिका (Executive) को इस पर रोक लगानी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी विधेयक में संवैधानिक सवाल उठते हैं तो राष्ट्रपति को उसे अनुच्छेद 143 (Article 143) के तहत सुप्रीम कोर्ट में भेजना चाहिए।
यह अहम टिप्पणी उस फैसले का हिस्सा है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि (Governor RN Ravi) द्वारा 10 विधेयकों को रोकने को अवैध और मनमाना (Illegal and Arbitrary) करार दिया।
बिल पर निर्णय में देरी अब नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के अनुसार, यदि कोई विधेयक दोबारा विधानसभा द्वारा पारित होता है तो राष्ट्रपति या राज्यपाल को तीन महीने के भीतर निर्णय देना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के निर्णय को न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के तहत परखा जा सकता है।
संवैधानिक संकट और न्यायालय की भूमिका
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है क्योंकि उसमें रिप्रेजेंटेटिव लोकतंत्र (Representative Democracy) के सिद्धांतों को खतरा है तो राष्ट्रपति को उसे अनुच्छेद 143 के तहत कोर्ट में भेजने की सलाह दी जानी चाहिए।
नीति नहीं, कानून की बात पर राष्ट्रपति की भूमिका सीमित
फैसले में कहा गया कि यदि मुद्दा केवल नीति का हो तो सुप्रीम कोर्ट सलाह देने से इनकार कर सकता है। लेकिन अगर मामला पूरी तरह संवैधानिक सवालों से जुड़ा हो तो कार्यपालिका को कोर्ट का मार्गदर्शन लेना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय बाध्यकारी नहीं होती लेकिन उसका प्रेरक मूल्य (High Persuasive Value) होता है और कार्यपालिका व विधायिका को इसे मानना चाहिए।
फैसले में चेतावनी दी गई कि यदि राष्ट्रपति बिना पर्याप्त कारणों के कोई विधेयक रोकता है तो यह सीमित सरकार (Limited Government) के सिद्धांत को नुकसान पहुंचा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रपति के फैसले में कारण स्पष्ट नहीं हैं तो वह न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगा।