सार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केसों की लिस्टिंग में पक्षपात का आरोप लगाने वाली याचिका खारिज कर दी। इतना ही नहीं बेंच ने ऐसी याचिका दाखिल करने के लिए वकील पर 100 रुपए का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा, इस तरह की याचिकाओं का ट्रेंड बना गया है।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केसों की लिस्टिंग में पक्षपात का आरोप लगाने वाली याचिका खारिज कर दी। इतना ही नहीं बेंच ने ऐसी याचिका दाखिल करने के लिए वकील पर 100 रुपए का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा, इस तरह की याचिकाओं का ट्रेंड बना गया है।
वकील रीपल कंसल ने अपनी याचिका में कहा गया था कि कोर्ट रजिस्ट्री विभाग के अधिकारियों को आदेश दे कि कोरोना के मुश्किल वक्त में जब वर्चुअल कोर्ट चलाई जा रही है तो सिर्फ प्रभावशाली वकीलों के मामलों की लिस्टिंग ना की जाए। इसके अलावा प्रभावशाली वकीलों और याचिकाकर्ताओं से भेदभाव भी खत्म किया जाए।
दिन रात काम करते हैं रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एसए नजीर की बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ऐसी याचिकाओं का ट्रेंड बन गया है। रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी दिन रात काम करते हैं, ताकि याचिकाकर्ताओं और वकीलों को लाभ पहुंचे। कोर्ट ने कहा, बार के किसी सदस्य को रजिस्ट्री पर इस तरह का आरोप नहीं लगाना चाहिए।
'आप वकील होकर ऐसी तुलना कैसे कर सकते हैं?'
इस मामले में 19 जून को जस्टिस अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नजीर और एम आर शाह ने सुनवाई की थी। उस वक्त जज ने पूछा था कि याचिकाकर्ता ने ये आरोप किस आधार पर लगाए हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसने एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड के लिए जनहित याचिका लगाई थी। इस पर कोर्ट की रजिस्ट्री ने तकनीकी खामियां बताई थीं। लेकिन इसके बाद वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी की याचिका दाखिल हुई थी। इसे सुनवाई के लिए तुरंत लगा दिया गया। इसमें इसलिए कमी नहीं निकाली गईं, क्यों कि इसे बड़ी फर्म ने दाखिल किया था।
इस पर कोर्ट ने कहा, दोनों मामलों की तुलना नहीं कर सकते। अगर कोई बिना कारण गिरफ्तार किए जाने का अंदेशा जताता है तो उसकी याचिका पर तुरंत सुनवाई जरूरी है। वहीं, आपने जनहित याचिका दाखिल की थी। इस पर तुरंत सुनवाई करना जरूरी नहीं था। आप एक वकील होकर ऐसी तुलना कैसे कर सकते हैं।
कैसे होती है याचिकाओं पर सुनवाई?
कोई याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं, इसकी जांच के लिए यह रजिस्ट्री में जाती है। यहां मुख्य तौर पर याचिका में तकनीकी कमियां देखी जाती हैं। तकनीकी कमियां मिलने पर रजिस्ट्री वकील को दोबारा उसे सही करने को कहती है। इसके बाद इसे कोर्ट में सुनवाई के लिए लगा दिया जाता है।