सार

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादास्पद फैसले पर रोक लगाई, जिसमें नाबालिग लड़की से जुड़े अपराध को गंभीर यौन उत्पीड़न माना गया था, बलात्कार का प्रयास नहीं। कोर्ट ने फैसले को 'चौंकाने वाला' बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि एक नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार का प्रयास नहीं होगा।

हाई कोर्ट ने इसके बजाय फैसला सुनाया था कि ये हरकतें प्रथम दृष्टया यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आती हैं, जिसमें कम सजा का प्रावधान है। इस फैसले से जनता में आक्रोश फैल गया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को 'चौंकाने वाला' और 'संवेदनहीन' बताया
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट के तर्क की कड़ी आलोचना करते हुए फैसले को "चौंकाने वाला" और "संवेदनहीनता की पराकाष्ठा" बताया। कोर्ट ने विशेष रूप से फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 का उल्लेख करते हुए कहा कि वे "पूरी तरह से असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण" दर्शाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि फैसला जल्दबाजी में नहीं सुनाया गया, बल्कि इसे सुरक्षित रखने के लगभग चार महीने बाद जारी किया गया, जिसका मतलब है कि यह जानबूझकर विचार करने के बाद किया गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए, बेंच ने कहा कि उसके पास फैसले पर रोक लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

कानूनी समुदाय और सरकार की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने भारत संघ, उत्तर प्रदेश राज्य और मामले में शामिल पक्षों को नोटिस जारी किए हैं। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो अदालत में पेश हुए, ने फैसले की निंदा करते हुए इसे "चौंकाने वाला" बताया।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में तब पहुंचा जब वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने एनजीओ 'वी द वीमेन ऑफ इंडिया' की ओर से एक पत्र भेजा, जिसमें यौन उत्पीड़न कानूनों की हाई कोर्ट की व्याख्या पर चिंता जताई गई थी।

आरोपी के खिलाफ मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार, दो आरोपियों, पवन और आकाश ने 11 साल की एक लड़की के ब्रेस्ट पकड़े, जिसके बाद आकाश ने उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। ट्रायल कोर्ट ने शुरू में इसे बलात्कार का प्रयास माना और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ धारा 376 (बलात्कार) लागू की और समन जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने अब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को जांच के दायरे में ला दिया है, जिससे नाबालिगों के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों को संभालने में पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता मजबूत हुई है।