सार
Sufism of Tamalhal: कश्मीर का तमालहाल गांव सूफी संतों की जन्मस्थली कही जाती है। इस गांव में कई बड़े सूफी संतों ने जन्म लिया है। गांव में आज भी सूफी परंपराओं को जिंदा रखा गया है। सूफी संस्कृति और त्योहारों पर गांव का सूफियाना अंदाज देखा जा सकता है।
जम्मू एवं कश्मीर। दक्षिण कश्मीर में बसा एक छोटा सा गांव आज भी अपनी सूफी परंपराओं और संस्कृति को सहेजे हुए है। कश्मीर को आध्यात्मिक और ऋषियों की धर्मस्थली भी कहा जाता है। कश्मीरी भाषा में इसे रैश वैर कहते हैं। कश्मीर का यह गांव आज भी अपनी सूफी परंपराओं और संस्कृति को जीवित रखने का दावा करता है।
sufis tradition in kashmir tamalhal village: हम बात कर रहे हैं दक्षिण कश्मीर स्थित पुलवामा जिले के तमालहाल गांव की, जहां करीब 3,000 लोगों की आबादी रहती है। इनमें 200 कश्मीरी पंडित शामिल थे जो पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा से पहले वहां पर रहा करते थे। पुलवामा के जिला मुख्यालय से लगभग 7 किमी दूर स्थित तमालहाल गांव को सूफियों के गांव के नाम से जाना जाता है। यहां रहने वाले महान सूफी संतों की प्रथाओं और शिक्षा को आज भी फॉलो करते हैं। काफी समय से गांव में सूफियों के अलावा दरवेश, मलंग, कलंदर और मज्जूब ही जन्मे हैं।
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तमालहाल में सूफी कवियों के साथ ही दरवेश औऱ मलंग भी
पुलवामा जिला सूफी कवियों, गायकों, मोमिन शाह साहिब, गुलाम अहमद महजूर, हाबा खातून और कादिर साहिब अलुपोरा आदि यहीं जन्मे हैं। पुलवामा जिले के कई गांव सूफियों, दरवेशों और मलंगों के केंद्र रहे हैं। उसी गांव में एक तमालहाल है जो जिला मुख्यालय से 7 किमी की दूरी पर दक्षिण में स्थित है। आस-पास और दूरदराज के दरवेश और कलंदर हमेशा इस गांव में घूमते देखे जा सकते हैं। यहां कबरूया सिलसिला के रहने वाले बुजुर्ग हजरत सैयद मुहम्मद जफर ने मिट्टी के टीले के अंदर 12 साल तक तपस्या की है। उनकी दरगाह श्रीनगर शहर के रावलपुरा इलाके में है।
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सूफी संतों की जन्मस्थली है तमालहाल
गांव के गुलाम मोहिउद्दीन बट बताते हैं कि तमालहाल कश्मीर के सूफियत के केंद्र में है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी समाज के आध्यात्मिक पक्ष को लेकर यहां कई फैसले भी लिए जाते हैं। ये सभाएं हजरत सैयद मोहम्मद जफर कबरवी की मजार पर होती हैं। तमालहाल में हजरत पीर समद शाह कबारी, हजरत पीर मुहम्मद मुस्तफा शाह कबारी, हजरत पीर मुबारक शाह कबारी, हजरत पीर मुहम्मद मकबूल सहित कई संतों, सूफियों, कलंदरों और मज्जूबों ने जन्म लिया है।
तमालहाल में रजब के महीने में होता है उर्स
तमालहाल गांव में हर साल रजब के महीने की 14 तारीख को लोग हजरत सैयद मुहम्मद जफर कबरवी का उर्स काफी धूमधाम से मनाते हैं। हालांकि तमालहाल गांव के लोग खेती और बागवानी के साथ कारोबार से भी जुड़े हुए हैं लेकिन सूफीवाद उनकी बात और व्यवहार में शामिल है। गांव में कई दरवेश, सूफ़ी और मलंग आज भी लोगों की सेवा भाव में लगे रहते हैं। गांव के लोग भी बड़े आदर के साथ उनके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था भी करते हैं। कंटेंट सोर्स - द आवाज वॉइस