सार

संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कश्मीर मुद्दे पर कोई बैठक हुई। हालांकि, दूसरी बैठक 1965 की पहली बैठक से कई मायनों में अलग है। 

नई दिल्ली. कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान बौखलाहट दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उसके लिए कश्मीर मुद्दा गले का फांस बन गया है। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह कश्मीर मामले को लेकर क्या करे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को छोड़कर उसका कोई साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ। अब सिर्फ चीन बचा है, जो पाकिस्तान की फरियाद सुन रहा है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र चीन के गिड़गिड़ाने पर कश्मीर मुद्दे पर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की गई थी, जहां पाक का किसी ने भी साथ नहीं दिया। पाक का साथ जहां चीन दे रहा है तो वहीं भारत के पक्ष में रूस ने दिया।

भारत ने पाक को दिया ऐसा जवाब

भारत के प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने कहा कि अनुच्छेद 370 के मामले में भारत की जो स्थिति पहले थी, वही बरकरार है। यह पूरी तरह भारत का आंतरिक मसला है और इसका कोई बाहरी संबंध नहीं है। यह फैसला लोगों के विकास के मकसद से लिया गया है। अगर पाकिस्तान को बातचीत करनी है तो पहले आतंकवाद को रोके। आर्टिकल 370 पर लिया गया फैसले का मकसद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए सुशासन, सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है। 

भारत के समर्थन में रूस

चीन और भारत के प्रतिनिधियों ने भी बैठक के बाद मीडिया से बातचीत की। यूएन में पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी ने कहा- यह पहला कदम है, आखिरी नहीं। बैठक से पहले रूस ने कहा था कि हम भारत के उस नजरिए का समर्थन करते हैं, जिसमें कश्मीर को भारत-पाक का द्विपक्षीय मसला कहा गया है। भारत के फैसले को परिषद के स्थायी सदस्य रूस ने भारत के कदम को संवैधानिक बताया था। उसने कहा था कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसी तरह से सुलझाया जाना चाहिए। संयुक्त अरब अमीरात ने भी इसे भारत का आंतरिक मामला कहा था।

बैठक के लिए पाक ने यूएन को लिखा था पत्र

इससे पहले पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यूएन को एक पत्र लिखा था, जिसमें भारत के द्वारा कश्मीर को लेकर लिए गए फैसले पर तत्काल बैठक बुलाने का अनुरोध किया था। चीन ने पाक का साथ देते हुए इस मामले पर गुप्त बैठक की बात कही थी। चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।

54 साल पहले भी हो चुकी कश्मीर मामले पर बैठक

संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कश्मीर मुद्दे पर कोई बैठक हुई। हालांकि, दूसरी बैठक 1965 की पहली बैठक से कई मायनों में अलग है। 16 जनवरी 1965 के एक पत्र में यूएन में पाक के प्रतिनिधि ने कश्मीर पर तत्काल बैठक बुलाने के लिए कहा था। पहली बैठक न तो बंद दरवाजे के पीछे थी और न ही सुरक्षा परिषद् के अधिकांश सदस्य देशों ने पाकिस्तान का समर्थन करने से मना किया था। पहली बैठक में कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर ही शिकायत की गई थी। 

ये हैं यूएन के सदस्य 

बता दें, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) में कुल 15 सदस्य हैं। इनमें 5 स्थाई और 10 अस्थाई हैं। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल कुछ वर्षों के लिए होता है जबकि स्थाई सदस्य हमेशा के लिए होते हैं। स्थाई सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं। अस्थाई देशों में बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे देश हैं।