सार
1971 की जंग में थल सेना, वायु सेना और नौ सेना ने मिलकर अभूतपूर्व पराक्रम दिखाया था। नौ सेना के वीर योद्धाओं ने ऐसे सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसका लोहा रूस ने भी माना था।
नई दिल्ली। आज बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने पर विजय दिवस (Vijay Diwas 2021) मनाया जा रहा है। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिन तक हुए युद्ध (India Pakistan War) में भारत को जीत मिली थी। इसके चलते पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजादी मिली। यह लड़ाई कई मायनों में निर्णायक थी। पाकिस्तान को अपना आधा हिस्सा खोना पड़ा। दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश नाम का एक नया देश अस्तित्व में आया। लड़ाई में भारत की सेना से पाकिस्तान को ऐसी पराजय मिली कि उसने फिर कभी आमने-सामने की खुली जंग लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई।
1971 की जंग में थल सेना, वायु सेना और नौ सेना ने मिलकर अभूतपूर्व पराक्रम दिखाया था। नौ सेना के वीर योद्धाओं ने ऐसे सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसका लोहा रूस ने भी माना था। पाकिस्तान का कराची बंदरगाह जल उठा था। लड़ाई के दौरान पाकिस्तान की नौ सेना कोई हरकत न कर पाए इसके लिए भारतीय नौ सेना के अधिकारियों ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह पर हमला करने का फैसला किया था। इसके लिए रूस से खरीदे गए मिसाइल बोट का इस्तेमाल किया गया था। रूस ने मिसाइल बोट को तट की रक्षा के लिए बनाया था। इसे खुले समुद्र में दूर तक जाकर हमला करने लायक नहीं बनाया गया था।
कम थी मिसाइल बोट की रेंज
भारतीय नौ सेना ने इन मिसाइल बोटों का इस्तेमाल रक्षा की बजाए आक्रमण करने में किया था। ये बोट तेज रफ्तार से समुद्र में आगे बढ़ सकते थे, लेकिन इनकी रेंज कम थी। ये नौकाएं 500 नौटिकल मील (804 km) से आगे नहीं जा सकतीं थी। समुद्र की ऊंची लहरों से भी इन्हें खतरा था। मिसाइल बोटों से हमले के संबंध में नौसेना के चुनिंदा अधिकारियों के बीच बातचीत हुई। कमांडर विजय जयरथ को पेपर पर प्लान लिखने को कहा गया और उसे दिल्ली स्थित नौसेना मुख्यालय में नेवेल ऑप्स एंड प्लान्स को भेजा गया।
जनवरी 1971 में रूस से ये नौकाएं भारत आईं थी। 180 टन वजनी नौका को मुंबई बंदरगाह पर बड़े जहाज से उतारा जा सके इसके लिए जरूर क्रेन नहीं थे। नौका उतारने के लिए जहाज को कोलकाता भेजा गया था। तब कोलकाता बंदरगाह पर 180 टन वजन उठाने वाले क्रेन थे। नौकाओं को जहाज से उतारने के बाद परेशानी यह थी कि इसे मुंबई कैसे ले जाया जाए। इसके लिए अधिकारियों एक युक्ति अपनाई और नौसैनिक पोतों द्वारा टो करके आठों नौकाओं को मुंबई ले जाया गया।
रात में किया हमला
रूस से खरीद गए मिसाइल बोट का रेंज भले कम था, लेकिन इसके राडार और मिसाइलों की क्षमता बेहतरीन थी। इसके चलते इन मिसाइल बोटों का इस्तेमाल कराची पर हमला करने के लिए किया गया। 4 दिसंबर 1971 की रात तीन मिसाइल बोट निपात, निर्घट और वीर को दो फ्रिगेट किल्टन और कछाल के पीछे टो कर कराची के लिए रवाना किया गया। हवाई हमले के खतरे से बचने के लिए रात में हमला करना तय किया गया था।
कराची पर हमला करने वाले टास्क ग्रुप के कमांडर केपी गोपाल राव ने अपने एक लेख में इस हमले की जानकारी दी है। पाकिस्तानी नौसेना का पोत पीएनएस खैबर कराची से दक्षिण में गश्त लगा रहा था। खैबर को रात 10:15 बजे पता चल गया कि भारत के पोत कराची की ओर बढ़ रहे हैं। उसने पकड़ने के लिए रास्ता बदला और गति तेज कर दी। 10:40 बजे खैबर भारत के मिसाइल बोट के रेंज में आ गया था। निर्घट ने उसपर पहली मिसाइल दागी। इसके बाद खैबर ने भी तोपों से गोले चलाने शुरू कर दिए। इसी दौरान एक और मिसाइल दागी गई। दूसरी मिसाइल लगते ही खैबर में आग लग गई। वह कराची से 35 मील दक्षिण पश्चिम में डूब गया।
करीब रात 11 बजे निपात का सामना पाकिस्तानी सेना और वायुसेना के लिए अमेरिकी हथियार ले जा रहे पोत एमवी वीनस चैलेंजर से हुआ। दो मिसाइल लगते ही पोत दो टुकड़े होकर पानी में डूब गया। तीसरी मिसाइल बोट वीर ने एक दूसरे पाकिस्तानी पोत पीएनएस मुहाफिज पर हमला किया। मिसाइल लगती ही पोत पर आग लग गई और 70 मिनट बाद यह समुद्र में डूब गया।
कराची बंदरगाह के करीब पहुंचने पर आईएनएस निपट को राडार पर कीमारी तेल टैंकर्स दिखाई दिए। मौका मिलते ही कीमारी तेल टैंकरों को निशाना बनाने के लिए मिसाइल फायर कर दिया गया। मिसाइल लगते ही तेल के टैंकरों में आग लग गई। यह आग ऐसी फैली मानों कराची धधक उठा। तेल डिपो में लगी आग को सात दिन तक नहीं बुझाया जा सका। रूस की नौसेना के प्रमुख एडमिरल गोर्शकॉव ने भारतीय नौसेना के कमांडरों से कहा था कि जिस तरह आप लोगों ने हमारी बोटों का इस्तेमाल किया, उसकी हम सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते थे। आपको बहुत बधाई।
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