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Bangladesh War 1971: जब नियाजी सर पकड़कर बोले थे-पिंडी ने मरवा दिया; जानिए 9 महीने 9 दिन चले युद्ध की कहानी
ढाका. बांग्लादेश (Bangladesh) 16 दिसंबर को अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है। भारत की मदद से उसे पाकिस्तान से आजादी मिली थी। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 93 हजार जवानों ने भारतीय सेना के सामने आत्म-समर्पण किया था। करीब 9 महीने 9 दिन चले खून से लथपथ मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर सामने आया था। अवामी लीग के प्रमुख बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान(Sheikh Mujibur Rahman) ने बांग्लादेश की आजादी के लिए 25 मार्च, 1971 की आधी रात को बिगुल फूंका था। इस युद्ध में लोगों पर बड़ा अत्याचार हुआ। करीब 1 करोड़ शरणार्थियों का पलायन हुआ। 3 करोड़ लोगों को यहां से वहां शिफ्ट होना पड़ा। युद्ध के दौरान अंतरराष्ट्रीय मीडिया की भूमिका अहम रखी। खासकर, द लंदन टाइम्स, द संडे टाइम्स, द गार्जियन, द संडे ऑब्जर्वर, द डेली मिरर और द डेली टेलीग्राफ नरसंहार की खबरों को प्रसारित करने और बांग्लादेश का समर्थन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच सहयोग में तेजी लाने में मदद कर रहे थे। पढ़िए पूरी कहानी...
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दिसंबर, 1971 के शुरुआत में ही मुक्तिबाहिनी(Muktibahini) और भारतीय सशस्त्र बलों की संयुक्त कमान के गठन के बाद यह स्पष्ट हो गया कि बांग्लादेश युद्ध में जीत के रास्ते पर था। इसलिए दिसंबर को विजय का महीना माना जाता है।
पहली तस्वीर 1971 के लिबरेशन वॉर पर न्यूज़वीक पत्रिका के कवर पेज की है। दूसरी तस्वीर बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई का पहला झंडा। इसे विद्रोही छात्र लीग ने तैयार किया था। इसे 2 मार्च 1971 को पहली बार ढाका विश्वविद्यालय के कला भवन परिसर में झंडा फहराया गया था।
6 दिसंबर, 1971 को भारत और भूटान ने आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश को एक संप्रभु देश(sovereign country) के रूप में मान्यता दी थी। बांग्लादेश की इस लड़ाई में अमेरिका, रूस, चीन और भारत जैसी अंतरराष्ट्रीय ताकतें साथ या विरोध में खड़ी थीं।
15 दिसंबर को तय हुआ था कि पाकिस्तानी सेना सरेंडर करने वाली है। इसके बाद 16 दिसंबर को रमना रेस कोर्स( Ramna Race Course) में पाकिस्तानी सेना के सरेंडर का आयोजन करना तय हुआ। ये वो ही जगह थी, जहां बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान( Bangabandhu Sheikh Mujibur Rahman) ने 9 महीने और 9 दिन पहले बांग्लादेश की आजादी के लिए ऐतिहासिक आह्वान किया था।
लंदन में 1972 में यूके के तत्कालीन प्रधान मंत्री एडवर्ड हीथ(Edward Heath) के साथ बंगबंधु।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में लड़ाई लड़ने वाले भारतीय सेना के एक पूर्व कैप्टन निर्भय शर्मा ने हाल ही में कुछ लेखों में 16 दिसंबर की घटना के बारे में बताया था। शर्मा के अनुसार उनका सैन्य वाहन 1010 क्षेत्र के लिए भारत के जनरल ऑफिसर कमांडिंग नागरा का संदेश लेकर ढाका छावनी में नियाज़ी(पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी) के मुख्यालय पर पहुंच गया था। शर्मा ने लिखा,"जैसे ही हमने पाकिस्तान के पूर्वी कमान मुख्यालय में प्रवेश किया और जनरल नियाज़ी के कार्यालय के बगल में अपनी जीप खड़ी की, एक साजो-सामान से लैस एक स्मार्ट लंबा सैनिक खड़ा था। कैप्टन के अनुसार नियाज़ी निराशा में अपने सिर पर दोनों हाथ रखकर बड़बड़ाए-"पिंडी में बैठे हरामज़ादों ने मरवा दिया (रावलपिंडी में बैठे लोगों ने हमें निराश किया है)। उन्होंने कहा कि रावलपिंडी उस सुबह तक झूठे वादे करके उन्हें बेवकूफ बना रहा था कि मदद रास्ते में है। आत्मसमर्पण के प्रतीक के रूप में नियाज़ी ने अपनी रिवॉल्वर लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा को सौंप दी। भारतीय सेना द्वारा 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया गया।
कैप्टन शर्मा के अनुसार, उस समय बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान पाकिस्तान में कहीं जेल में थे। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि बाहरी दुनिया में क्या चल रहा है। बांग्लादेश के लिबरेशन वॉर म्यूजियम के मुताबिक शाम करीब 4:45 बजे जनरल नियाज़ी रेसकोर्स पहुंचे। आखिरी बार दोनों पक्षों के सैनिकों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया। शाम करीब 5 बजे जनरल अरोरा और जनरल नियाजी रेस कोर्स में एक टेबल पर बैठे। शाम 5:01 बजे नियाज़ी ने कागज पर हस्ताक्षर किए और आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश को एक स्वतंत्र, स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में स्वीकार किया। हालांकि, समर्पण के सही समय के बारे में कुछ पुस्तकों में शाम 4 बजे से शाम 5 बजे के बीच अलग-अलग समय का उल्लेख है।
बता दें कि कैप्टन शर्मा अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं। यह तस्वीर 7 जून 2014 की है, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी।
बांग्लादेश की आजादी के लिए बड़ी संख्या में लोगों को कीमत चुकानी पड़ी। हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर यहां से वहां पलायन करना पड़ा।
बांग्लादेश की लड़ाई में कम उम्र नौजवानों ने भी हिस्सा लिया। पाकिस्तान 1947 के बाद से ही बांग्लादेश को लेकर खराब रवैया रखे हुए थे। (कंटेंट साभार:dhakatribune)