सार

इसरो का स्पेडेक्स मिशन अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन करेगा। यह मिशन भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन और रोबोटिक मिशन के लिए महत्वपूर्ण है, और भारत को अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर बनाएगा।

SpaDeX mission: इसरो के ऐतिहासिक स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडेक्स) मिशन को 30 दिसंबर 2024 को रात 10 बजे लांच किया गया। स्पेडेक्स मिशन का उद्देश्य दो छोटे स्पेसक्रॉफ्ट का उपयोग करके स्पेस में डॉकिंग टेक्निक का प्रदर्शन करना है। इसमें अंतरिक्ष में बुलेट की स्पीड से दस गुना ज्यादा तेजी से ट्रैवल कर रहे दो स्पेसक्राफ्ट को कनेक्ट किया जाएगा। यह प्रक्रिया 7 जनवरी को पूरी होगी। मिशन की सफलता के बाद भारतीय स्पेस मिशन में  कई उत्साहजनक उपलब्धि को पाने में सफलता मिलेगी। यह मिशन भारत के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी और रिसर्च के क्षेत्र में कई बदलाव लेकर आएंगे। यह मिशन भारत की कक्षीय डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

स्पेडेक्स मिशन के प्रमुख उद्देश्य

डॉकिंग टेक्निक का प्रदर्शन: स्पेडेक्स मिशन में दो छोटे उपग्रह, एसडीएक्स01 (चेज़र) और एसडीएक्स02 (टार्गेट), शामिल हैं। इनका कुल भार लगभग 220 किलोग्राम है। ये उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में डॉकिंग और अनडॉकिंग का प्रदर्शन करेंगे।

बिजली ट्रांसफर: मिशन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य डॉकिंग के बाद सैटेलाइट्स के बीच बिजली का ट्रांसफर करना है। यह भविष्य की रोबोटिक मिशन और भारत के प्रस्तावित स्पेस स्टेशन, 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' (BAS) के लिए इंपॉर्टेंट टेक्निक है।

इंडिपेंडटेंट टेस्टिंग : यह मिशन इंडिपेंडेंट टेक्निक्स की टेस्टिंग करेगा। इससे सैटेलाइट्स के बीच मिलने (रेंडीवू) और डॉकिंग के बाद की गतिविधियां शामिल हैं। यह भारत को कठिन स्पेस मिशन्स के लिए तैयार करेगा।

स्पेडेक्स मिशन के लाभ

टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट: यह मिशन सैटेलाइट डॉकिंग और रेंडीवू टेक्निक में भारत की महारत को मजबूत करेगा जो मानव स्पेसक्रॉफ्ट और सैटेलाइट सर्विसेस जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए आवश्यक है।

भविष्य की परियोजनाओं की नींव: स्पेडेक्स मिशन लूनर सैंपल रिटर्न मिशन और भारत के राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की आधारशिला रखता है। यह गगनयान कार्यक्रम के लिए भी महत्वपूर्ण है जिसके तहत 2025 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने का लक्ष्य है।

स्वदेशी: इस मिशन के माध्यम से इसरो स्वदेशी डॉकिंग टेक्निक्स विकसित कर सकता है जिससे विदेशी टेक्निक्स पर निर्भरता कम होगी। इससे हमारे स्पेस मिशन्स की लागत और खर्च कम की जा सकेगी।

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