सार
ओम बिरला के स्पीकर बनने के साथ आज इमरजेंसी को लेकर लोकसभा में प्रस्ताव पारित किया गया। ऐसा इसलिए किया गया कि आपातकाल की ये 50वीं वर्षगांठ है और युवा पीढ़ी में संविधान को लेकर जागरूकता तभी आएगी जब वह लोकतंत्र के बारे में जानेगी।
नेशनल डेस्क। ये आपात काल की 50वीं वर्षगांठ का दिन है। ये दिन देश के काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। ओम बिरला के स्पीकर बनने के साथ आज इमरजेंसी को लेकर लोकसभा में प्रस्ताव पारित किया गया। इस दौरान कहा गया कि सदन वर्ष 1975 में देश में इमरजेंसी लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। हम उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं जिन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया।
भारत के इतिहास का काला अध्याय
भारत के इतिहास में आज का दिन हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर के बनाए संविधान पर प्रहार किया। भारत की पहचान पूरी दुनिया में ‘लोकतंत्र की जननी’ के तौर पर है। भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई। ऐसे देश पर जबरन तानाशाही थोपी गई। लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने के साथ अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा गया।
लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए
इमरजेंसी के दौरान भारत के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए। ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया जाता था। पूरा देश जेलखाना बना दिया गया था। तानाशाही सरकार ने मीडिया पर पाबंदियां लगा दी थीं और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश था। उस समय की कांग्रेस सरकार की ओर से लाए मेंटेनेन्स ऑफ इंटरनल सेक्योरिटी एक्ट (मीसा) में बदलाव कर ये सुनिश्चित किया कि हमारी अदालतें मीसा के तहत गिरफ्तार लोगों को न्याय न दे पाएं।
मीडिया पर भी लगा दी पाबंदियां
इमरजेंसी के दौर में मीडिया को सच लिखने से रोकने के लिए पार्लियामेंट्री प्रोसिडिंग्स (प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिकेशन) रिपील एक्ट, प्रेस काउंसिल (रिपील) एक्ट और प्रिवेन्शन ऑफ पब्लिकेशन ऑफ ऑब्जेक्शनेबल मैटर एक्ट लाए गए। इस कालखंड में ही संविधान में 38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन किया गया। कांग्रेस सरकार के इस निर्णय का उद्देश्य सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाए और न्यायपालिका पर उसी का कंट्रोल हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किजा जा सकें।
इमरजेंसी के विरोध में दो मिनट का मौन
सदन में कहा गया कि हम आपातकाल के 50वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। ये 18वीं लोकसभा, बाबा साहब आंबेडकर के बनाए संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने और संरक्षित रखने की प्रतिबद्धता को दोहराती है। हम भारत में लोकतंत्र के सिद्धांत, देश में कानून का शासन के लिए प्रतिबद्ध हैं। आज ही इस तानाशाही और असंवैधानिक निर्णय पर मुहर लगाई थी। इस दूसरी आजादी के प्रति आज ये प्रस्ताव पास किया जाना आवश्यक है। हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए। इमरजेंसी के उस काले कालखंड में अपनी जान गंवाने वाले भारतीयों की याद में हम दो मिनट का मौन रखते हैं।