सार

Maha Shivratri Katha: महाशिवरात्रि भगवान शिव का सबसे मुख्य त्योहार है। मान्यता है कि इसी दिन महादेव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। इस दिन जो लोग व्रत करते हैं, उन्हें महाशिवरात्रि की कथा भी जरूर सुननी चाहिए।

 

Maha Shivratri Katha In Hindi: इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 26 मार्च, बुधवार को मनाया जाएगा। इस पर्व से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। शिवपुराण के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। इस दिन अधिकांश लोग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत करते हैं। व्रत का पूरा फल पाने के लिए महाशिवरात्रि की कथा सुननी भी जरूरी है। आगे जानें महाशिवरात्रि व्रत की कथा…

महाशिवरात्रि की कथा (Maha Shivratri Ki Katha)

- शिवपुराण के अनुसार, किसी समय काशी में एक भील रहता था, उसका नाम गुरुद्रुह था। वो जंगली जानवरों का शिकार करके अपना घर चलाता था। एक बार गुरुद्रुह महाशिवरात्रि के दिन शिकार करने जंगल में गया। लेकिन दिन भर उसे कोई शिकार नहीं मिला।

- शिकार की तलाश में वह रात के समय एक बिल्व के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था। कुछ देर बाद गुरुद्रुह को एक हिरनी दिखी। जैसे ही गुरुद्रुह ने हिरणी को मारने धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते शिवलिंग पर गिर गए।

- इस तरह रात के पहले पहर में शिकारी से अनजाने में शिव पूजा हो गई। हिरनी ने शिकारी को देखकर बोला ‘मुझे अभी मत मारो, मेरे बच्चे मेरा रास्ता देख रहे हैं। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर तु लौट आऊंगी।’ गुरुद्रुह ने उस हिरनी को छोड़ दिया।

- थोड़ी देर बाद हिरनी की बहन वहां आई। इस बार भी गुरुद्रुह ने उसे मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो शिवलिंग पर पुन: बिल्व पत्र आ गिरे और शिवजी की पूजा हो गई। हिरनी की बहन भी बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने का कहकर चली गई।

- कुछ देर बाद वहां एक हिरन आया, इस बार भी ऐसा ही हुआ और तीसरे पहर में भी शिवजी की पूजा हो गई। कुछ देर बाद दोनों हिरनी और वह हिरन अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए स्वयं शिकार बनकर गुरुद्रुह के पास आ गए।

- उन्हें मारने के लिए गुरुद्रुह ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया, इस समय चौथे पहर में भी शिवजी की पूजा हो गई। गुरुद्रुह दिन भर से भूखा-प्यासा तो था ही। इस तरह अंजाने में उससे महाशिवरात्रि का व्रत-पूजा भी हो गई, जिससे उसकी बुद्धि निर्मल हो गई।

- ऐसा होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी भगवान शिव भी शिकार पर प्रसन्न होकर वहां प्रकट हो गए। शिवजी ने उसे वरदान दिया कि ‘त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम तुमसे मिलेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता भी करेंगे।’

- वही शिकारी त्रेतायुग में निषादराज बना, जिससे श्रीराम ने मित्रता की। महाशिवरात्रि पर जो ये कथा सुनता है, उसका व्रत पूर्ण हो जाता है और उसकी हर इच्छा भी पूरी हो जाती है। इस कथा को सुनकर व्यक्ति मृत्यु के बाद शिव लोक में वास करता है।


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