सार

बीजिंग ओलंपिक में शूटिंग की व्यक्तिगत स्पर्धा में गोल्ड जीतने वाले शूटर अभिनव बिंद्रा का पहला प्यार खेल है। रिटायरमेंट के बाद भी भारत में स्पोर्ट्स कल्चर को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास कर रहे हैं। 
 

नई दिल्ली. दुनिया की सबसे कठिन खेल स्पर्धा ओलंपिक में पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। लेकिन कुछ खास लोग ही होते हैं, जिन्हें यह गौरव प्राप्त होता है। शूटिंग की व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत के लिए ओलंपिक गोल्ड जीतने वाले अभिनव बिंद्रा, ऐसे ही खिलाड़ी हैं। अभिनव ने बीजिंग ओलंपिक में शूटिंग में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास बनाया। एशियानेट न्यूज के जाबी जार्ज व आयुष गुप्ता ने ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा से कई टापिक्स पर बात की। इस दौरान ओलंपिक चैंपियन ने सभी सवालों का बेबाक जवाब दिया। पेश है बातचीत के मुख्य अंश...

टाक्सिक कल्चर से कैसे बचें
स्पोर्ट्स में टाक्सिक कल्चर के बारे में पूछे गए सवाल पर ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा ने कहा कि यह बात सही है और इसमें सिर्फ दोस्त या परिवार ही शामिल नहीं बल्कि पूरा इको सिस्टम जुड़ा होता है। पूरी सोसायटी होती है। जो हारने और जीतने पर ओवर रियेक्ट करते हैं। मीडिया भी इसमें शामिल है। जब हम जीतते हैं या हारते हैं तो उसी तरह रियेक्ट किया जाता है। मेरा मानना है कि इन्हें खेलों की समझ होनी चाहिए। फील्ड में जाकर जीतना महत्वपूर्ण है लेकिन हारना गुनाह नहीं है। जब हम टाक्सिक कल्चर की बात करते हैं तो यह सिर्फ जीत पर फोकस करता है लेकिन यह स्थायी नहीं होता।

खिलाड़ी कैसे दूरे करें प्रेशर
युवा खिलाड़ियों को प्रेशर से बचने के लिए क्या करना चाहिए, इस सवाल के जवाब में अभिनव बिंद्रा ने कहा कि यह सही है कि खिलाड़ी अंडर प्रेशर रहते हैं। लेकिन प्रेशर लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। हमने टोक्यो ओलंपिक में शामिल होना है तो हमें इससे आगे भी देखना चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि पिछले एक दशक में स्पोर्ट्स कितना बदला है। हमें उसी हिसाब से ट्रेनिंग लेनी चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान होने वाली गलतियों में सुधार करते रहना चाहिए जिससे कांफिडेंस बिल्डअप होता है। देखिए ओलंपिक किसी अन्य प्रतियोगिता की तरह नहीं होता, ओलंपिक की तैयारी स्पेशल होनी चाहिए। इसलिए एथलीट अंडर प्रेशर होते ही हैं लेकिन हमें इससे सीखना चाहिए। लेकिन हम तैयारियों के दौरान कई चीजों को सुधार सकते हैं जैसे स्किल में सुधार हो, फिजिकल फिटनेस बेहतर हो। यह सब तैयारियों की टैक्टिस होनी चाहिए। जब आप ओलंपिक में हों तो आपकी बैटरी पूरी तरह से चार्ज होनी चाहिए। आपकी ट्रेनिंग ऐसी हो कि आप पूरे फार्म में हों। तैयारियों के लिए साइंटिफिक एप्रोच होनी चाहिए। बाकियों से बेहतर करने के लिए हमें अंतिम 1 प्रतिशत की भी शत-प्रतिशत तैयारी करनी चाहिए। ओलंपिक साधारण प्रतियोगिता नहीं क्योंकि वहां दुनिया भर के ऐसे खिलाड़ी जुटते हैं जिनमें जीतने की पूरी क्षमता होती है। एनालिसिस, मेडिसीन, प्रीपरेशन, टीम सपोर्ट यह सब एथलीट्स के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं।

पाठ्यक्रम में शामिल हुआ ओवीईपी
हाल ही में भारत के स्पोर्ट्स एजूकेशन सिस्टम में ओवीईपी (Olympic values education programme) को शामिल किया गया है। इससे जुड़े अभिनव बिंद्रा ने कहा कि खेलों की ताकत सिर्फ जीतने या हारने में ही नहीं बल्कि यह लाइफ में हमेशा काम आता है। स्पोर्ट्स की पावर बड़े पैमाने पर है। स्पोट्स आपको थोड़ा बहुत जीतना सीखाता है, स्पोर्ट्स आपको हारना सीखाता है। स्पोट्स आपको एक रहना सीखाता है, ईमानदारी सीखाता है, लक्ष्य पाने की कला सीखाता है। खेल से टीम वर्क, रिलेशनशिप मेंटेंन करना सीखते हैं। स्पोर्ट्स आपको सबसे महत्वपूर्ण सुनना सीखाता है। कई तरह के प्वाइंट्स आप व्यू के बारे में बताता है। स्पोट्स हमारी यंग जनरेशन की योग्यता को निखार सकता है। यह जरूरी नहीं कि देश का हर नागरिक ओलंपिक चैंपियन बने लेकिन यह प्रासेस आपको ओलंपकि की फिलासफ से अवगत कराएगा।

स्पोर्ट्स से मजबूत होती है सोसायटी
अभिनव बिंद्रा ने कहा कि हम हमेशा मजबूत इकोनामी की बात करते हैं लेकिन आप दुनिया के देशों को देखेंगे तो पता चलेगा कि जो देश मजबूत हैं, वे स्पोर्ट्स में भी सुपर पावर हैं। स्पोर्ट्स मजबूत समाज का आधार है। इसलिए हमने यह शुरूआत की है। हमने यह पायलट प्रोजेक्ट ओडिशा से शुरू किया जिसे बहुत अच्छा रिस्पांस मिला है। मूल बात यह है कि हम किसी तरह का तनावपूर्ण माहौल खेलों में नहीं बनाना चाहते, जहां जीतने का ही दबाव होता है। आप ये समझिए कि ओलंपिक में भी दुनिया भर के 10 हजार से ज्यादा एथलीट भाग लेते हैं लेकिन उनमें से 300 होते हैं, जो गोल्ड लेकर वापस लौटते हैं। लेकिन बाकियों को आप लूजर नहीं कह सकते हैं। उन्होंने खेल को आगे बढ़ाने का काम किया है। दरअसल, स्पोर्ट्स हमारी सोसायटी को आकार देने का काम करता है। 

क्या ओवीईपी प्रोग्राम का होगा विस्तार
ओवीइपी प्रोग्राम ओडिशा से शुरू किया गया है और आगे क्या प्लान है। इस पर अभिनव ने कहा कि यह सिर्फ मेरे उपर ही निर्भर नहीं है। पूरी टीम है और हमने अभी स्टार्ट किया है। जुलाई सेमेस्टर से हम इसे स्टार्ट कर रहे हैं। यह एक-दो महीने का प्रासेस नहीं है, इसमें समय लगेगा। हम राज्यों का इंट्रेस्ट भी देखेंगे। इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी व अभिनव बिंद्र फाउंडेशन इसमें मदद कर रहा है। राज्यों की अथारिटी से बातचीत और सभी संभावनाओं पर गौर करने के बाद इसे बढ़ाया जा सकता है। यह सरकारों पर भी निर्भर है कि वे किस तरह से प्रो-एक्टिव फैसले लेते हैं। कई जगह जल्दी निर्णय होते हैं तो कई जगह देरी होती है। यह पूरी तरह से सरकारों पर है कि वे राज्य का विजन कैसे रखते हैं। फिर आईओसी भी यह डिसाइड करेगा कि किस तरह से पार्टनरशिप करनी है। 

इंडिया शूटिंग में क्या है चैलेंज
भारतीय शूटिंग के क्षेत्र में आज सबसे बड़ा चैलेंज क्या है। इस सवाल के जवाब में अभिनव बिंद्रा ने कहा कि इसके बारे में मैं बहुत ज्यादा नहीं कह सकता क्योंकि वर्तमान में ट्रेनिंग प्रासेस, कोचिंग आदि से मैं जुड़ा हुआ नहीं हूं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं तो यही कहना चाहूंगा कि हमें अपनी पालिसी बेहतर करनी होगी। मेरा मानना है कि सेलेक्शन प्रासेस सबसे ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए ताकि हम अच्छे एथलीट का चयन कर सकें। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि हमें तय करना चाहिए कि चुने गये एथलीट का निरंतर विकास हो। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि 17 साल का एथलीट है तो ऐसा नहीं है कि आप ट्रेंड कर देंगे और वह विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में परफार्म करने लगेंगे। 17 साल की उम्र में ट्रेनिंग शुरू करने वाला एथलीट अगले 3-4 साल तक सीखते हैं, तब भी वे पूरी तरह से ट्रेंड नहीं होते। वे सीखने की प्रक्रिया में होते हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ प्रतियोगिता में पार्टिसिपेट करने के लिए ही एथलीट न तैयार करें बल्कि वे लगातार डेवलप होते रहें तभी बड़ी प्रतियोगिताओं में बेहतर परफार्मेंस दे सकते हैं। 

वर्ल्ड चैंपियनशिप में कैसे चांसेस
वर्ल्ड चैंपियनशिप में टीम के कैसे चांसेस हैं। इस सवाल के जवाब में बिंद्रा ने कहा कि हमारी यंग टीम है और वे मेहनत भी कर रहे हैं। ओलंपिक गेम्स है, कोटा प्रीपरेशन की बात होती है। सह सही रहता है तो चांसेस काफी ब्राइट हैं। उन्होंने पिछले कुछ सालों में जिस तरह के परफार्मेंस दिए हैं, उससे लगता है कि वे कामयाब होंगे। हम भी यही आशा कर रहे हैं। यह सही है ओलंपिक एसोसिएशन से जुड़ा हूं और कोशिश करता हूं कि एथलीट्स को बेहतर माहौल दिया जा सके। एथलीट्स की मेंटल हेल्थ को लेकर भी काम करता हूं। अपने अनुभव के अनुसार हम बेस्ट देने की कोशिश कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि पर्सनल कोशिशों से पूरे स्पोट्स का अच्छा हो।

स्पोर्ट्स में डोपिंग की समस्या 
स्पोर्ट्स में तमाम अचीवमेंट्स के बावजूद यह भी खबरें आती हैं कि एथलीट्स डोपिंग केस में भी फंस रहे हैं। इस सवाल पर अभिनव ने कहा कि मेरा मानना है कि हमें बेहतर स्पोर्ट्स कल्चर बनाने की आवश्यकता है। आप देख रहे हैं कि इतने टाक्सिक कल्चर के बावजूह हम मेडल्स जीत रहे हैं। बेहतर परफार्मेंस कर रहे हैं। कुल मिलाकर बेहतर माहौल बनाने की जरूरत है। यह देखने की भी जरूरत है कि ऐसा माहौल बने जिसमें एथलीट सही वैल्यूज को लेकर आगे बढ़ें। यह जरूरी है कि एथलीट्स को प्रापर अवेयर किया जाए, एजुकेट किया जाए ताकि वे सिर्फ खेल की तरफ ही ध्यान दें। जहां तक मैं समझता हूं कि यह माहौल पर डिपेंड करता है।

कामनवेल्थ 2026 में शूटिंग नहीं
2026 के कामनवेल्थ गेम्स से शूटिंग व रेसलिंग को बाहर कर दिया गया है। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने इसके खिलाफ आपत्ति भी दर्ज कराई। इस पर बिंद्रा ने कहा कि यह सही है कि हमने इन गेम्स में खासकर कामनवेल्थ गेम्स में बेहतर प्रदर्शन किया है। हालांकि यह कोई एक-दो दिन का काम नहीं है। ऐसा नहीं है कि आपने एक लेटर ड्राफ्ट किया या मेल भेज दिया और काम हो गया। इसके लिए लाबिंग करनी होती है, वर्ल्ड बाडीज हैं, जिनके साथ काम करना होता है। यह एक- दो साल का प्रासेस होता है। यह भी आपको तय करना होगा कि आपका खेल लगातार बेहतर होता रहे। हमारा स्पोर्ट्स मजबूत रहेगा तो बाकी चीजें भी सही दिशा में काम करेंगी। 

मेंटल हेल्थ ज्यादा जरूरी 
खिलाड़ियों के मेंटल हेल्थ के बारे में बात करते हुए अभिनव ने कहा कि बात सही है एथलीट्स की लाइफ में ज्यादा तनाव होते हैं। उन्हें नार्मल लोगों से ज्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पिछले 2 सालों में भी बहुत कुछ बदला है। हमें फेलियर से डील करने की जरूरत है। फिजिकल ट्रेनिंग न सिर्फ हमें शारीरिक तौर पर मजबूत बनाता है बल्कि यह हमारे मेंटल हेल्थ के लिए भी फायदेमंद होता है। एथलीट्स को अक्सर इंजरी से भी गुजरना होता है। कई बार फिजिकल इंजरी होती है, मेंटल इंजरी होती है। हमें यह समझना चाहिए कि एथलीट भी सामान्य इंसान होते हैं। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां जीतने के लिए मानवीय संवदेनाओं को भी नजरअंदाज किया जाता है। कई बार एथलीट्स से अमानवीय व्यवहार भी होता है। हमें एथलीट्स को पाजिटिव माहौल देना चाहिए और मानवीय व्यवहार करना चाहिए ताकि वे बिना किसी मानसिक दबाव के बेहतर कर सकें। 

नीरज चोपड़ा के बारे में क्या कहा
ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा के बारे में बात करते हुए बिंद्रा ने कहा कि मैं चाहता हूं कि वे बेहतर से बेहतर करते हैं। कई बार हमारी बात हुई है। वे बहुत फोकस्ड यंग पर्सन हैं और स्पोर्ट्स के लिए डेडिकेटेड भी हैं। सब कुछ अच्छी तैयारी पर निर्भर करता है। आप कैसे तैयारी कर रहे हैं, कैसे चीजों को स्वीकार कर रहे हैं, यह जरूरी है। बाहरी एक्सपेक्टेश के साथ ही इंटरनल एक्पेक्टेशन बहुत जरूरी है। मैं जानता हूं कि नीरज कमिटेड पर्सन हैं, वे एक एथलीट के तौर पर लगातार डेवलप कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इसी तरह आगे बढ़ते रहेंगे और जल्द ही 90 मीटर का रिकार्ड भी तोड़ देंगे। हमें उम्मीद है कि वे वर्ल्ड लेवल पर लगातार अच्छा करेंगे। 

देश में कैसे मिले खेलों को बढ़ावा
अभिनव बिंद्रा ने कहा कि मैं उदाहरण देना चाहूंगा कि हमने कुछ ओलंपिक में मेडल नहीं जीते हैं लेकिन खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। टीनएजर्स भी अलग-अलग डिसिप्लीन्स में आगे आ रहे हैं। यह संकेत हैं कि खेलों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है। हमारे इस प्रोग्राम में इसे बढ़ावा मिलेगा। आप यह नहीं सोच सकते हैं हजारों-लाखों लोग किसी स्पोर्ट्स में अपनी लाइफ के बेशकीमती 20 साल दें लेकिन हमें यह संख्या बढ़ानी होगी। जो भी संख्या हमारे पास है, उन्हें आगे बढ़ाना होगा। खेलों में ज्यादा से ज्यादा पार्टिशिपेट करने से स्पोर्ट्स के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी। हम यही देखना चाहते हैं कि युवा स्पोर्ट्स को अपनाएं।

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