सार

वर्ष 2015 में स्टेट जेवलिन थ्रो प्रतियोगिता में नीरज चोपड़ा 5वें स्थान पर रहे थे। लेकिन इसी टूर्नामेंट में उन्होंने अपने कोच गैरी कालवर्ट को इतना प्रभावित किया कि फिर आगे की कहानी इतिहास बन गई।

 

Neeraj Chopra Success. जेवेलिन थ्रो के स्टार खिलाड़ी नीरज चोपड़ा को पहली बार 2015 में पहचान मिली। स्टेट मीट टूर्नामेंट में यंग नीरज भले ही 5वें नंबर पर रहे लेकिन इस खिलाड़ी ने कोच गैर कालवर्ट को बहुत प्रभावित किया। इसके ठीक एक साल बाद जब नीरज ने अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लिया तो उन्हें सफलता की हवा लग गई और वे ऊंची उड़ान पर निकलने के लिए बेताब हो गए। 2015 में ही नीरज को कोच गैरी ने पहचान लिया था और इसके बाद उनकी सफलता की कहानी सबके सामने है।

कैसे हुई नीरज चोपड़ा की शुरूआत

ओलंपिक गोल्ड, वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब, दो बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट, कॉमनवेल्थ गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट इन दिनों नीरज चोपड़ा एक भी खिताब छोड़ नहीं रहे हैं। हर जगह उन्हें जीत ही मिल रही है। ऐसा लग रहा है मानों जेवेलिन थ्रो का खेल और नीरज चोपड़ा एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। लेकिन यह कहानी 2015 में शुरू होती है जब हरियाणा स्टेट मीट के दौरान कोच गैरी कालवर्ट जेवेलिन थ्रोअर्स का हौसला बढ़ा रहे थे। तब जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स के साथ मिलकर कालवर्ट को हरियाणा में नए टैलेंट को खोजने की जिम्मेदारी दी गई थी। तब नीरज चोपड़ा टीनएजर के तौर पर इस टूर्नामेंट का हिस्सा थे। कोई अनुभव नहीं था और वे मस्ती के साथ थ्रो कर रहे थे, तभी गैरी कालवर्ट की नजरों में नीरज आ गए। इस टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलियन कोच ने नए जेवेलिन स्टार को पहचान लिया था और स्पोर्ट्स मैनजेमेंट कंपनी जेएसडब्ल्यू को भी इसके बारे में जानकारी दी।

ऐसे नीरज चोपड़ा बनते गए स्टार

जेएसडब्ल्यू इंस्पायर इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स के फाउंडर और डायरेक्टर पार्थ जिंदल उस समय को याद करते हुए कहते हैं कि टूर्नामेंट के बाद हेड ऑफ स्पोर्ट्स एक्सिलेंस मनीषा का कॉल आया और उन्होंने बताया कि इस टूर्नामेंट में नीरज मोस्ट प्रॉमिसिंग थ्रोअर के तौर पर पहचाने गए हैं। तो मैंने कहा कि क्या वह जीत गया। तब जवाब मिला कि नहीं, वह 5वें नंबर पर रहा है, तब मैंने सोचा कि ये लोग पहले, दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले खिलाड़ी की जगह 5वें नंबर के खिलाड़ी की जानकारी दे रहे है। फिर बताया गया कि कोच गैरी ने इस खिलाड़ी के टैलेंट को पहचाना है क्योंकि 16 या 17 साल की उम्र में हार-जीत उतना मायने नहीं रखती है। पार्थ जिंदल बताते हैं कि तब उन्होंने कहा कि बहुत अच्छी बात है, हम उन्हें साइन करते हैं। यहीं से नीरज की स्टार बनने की शुरूआत हो गई।

नीरज चोपड़ा की सफलता की कहानी

इसके ठीक 1 साल के बाद नीरज चोपड़ा ने अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत ली और जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड 86.48 मीटर का बनाया। इस थ्रो ने नीरज को आत्मविश्वास से भर दिया। इसके बाद 19 साल की उम्र में नीरज ने रियो ओलंपिक में मेडल जीता। लेकिन 2016 के ओलंपिक गेम्स को वे मिस कर गए क्योंकि तय डेडलाइन में वे क्वालीफाई नहीं कर पाए। कोच गैरी ने नीरज के साथ काम किया और उन्हें लगातार 85 मीटर भाला फेंकने का अभ्यस्त बना दिया। कई बार वे बिना मेडल के ही लौटे, कई बार टॉप 8 में शामिल रहे। नीरज कहते हैं कि उन टूर्नामेंट में भी मैं अपने प्रदर्शन से संतुष्ट था।

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