सार
कई दशकों से मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित प्राचीन भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही दावा करते रहे हैं। भोजशाला-कमल मौला मस्जिद ASI द्वारा संरक्षित है।
मध्य प्रदेश भोजशाला परिसर। कई दशकों से मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित प्राचीन भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही दावा करते रहे हैं। भोजशाला-कमल मौला मस्जिद ASI द्वारा संरक्षित है। हालांकि, 7 अप्रैल, 2003 को जारी ASI के आदेश के अनुसार, इस मंदिर में हिंदुओं को मंगलवार और बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति दी जाती है,जबकि मुसलमानों को शुक्रवार को साइट पर नमाज अदा करने की अनुमति है।
इस भोजशाला में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने विवादास्पद भोजशाला/कमल मौला मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कर रही है। ASI के द्वार किया जा रहा सर्वेक्षण आज रविवार (24 मार्च) को भी जारी रहा। इस पर कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान कमाल मौला मस्जिद वेलफेयर सोसाइटी के पक्षकार अध्यक्ष अब्दुल समद ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने शनिवार को ई-मेल के माध्यम से ASI को अपनी कुछ आपत्तियों से अवगत कराया है।
उन्होंने कहा कि हमारी आपत्ति यह है कि ASI को इसमें शामिल नहीं करना चाहिए। 2003 के बाद भोजशाला के अंदर रखी गई वस्तुओं का सर्वेक्षण करें। मैंने अपनी सारी दिक्कतें ई-मेल के माध्यम से भेज दी हैं।
कमाल मौला मस्जिद वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अब्दुल समद ने कहा कि ASI की तीन टीमें परिसर के अंदर काम कर रही थीं। मैं मस्जिद सोसायटी का एकमात्र व्यक्ति हूं जो सर्वेक्षण के दौरान अंदर था। मेरी आपत्ति यह है कि ASI टीम को एक जगह पर काम करना चाहिए, तीन जगहों पर नहीं।रविवार सुबह ASI की एक टीम वरिष्ठ पुलिस और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के साथ इस आदिवासी बहुल जिले में विवादित परिसर में पहुंची।
हिंदू पक्ष की ओर से याचिकाकर्ता आशीष गोयल और गोपाल शर्मा भी भोजशाला परिसर पहुंचे। घटनास्थल पर भारी पुलिस सुरक्षा तैनात की गई है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार को सर्वे शुरू हुआ।
11 मार्च को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ASI को 6 सप्ताह के भीतर मध्यकालीन युग के स्मारक भोजशाला परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण' करने का निर्देश दिया, जो कि हिंदू इसे देवी वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर मानते हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता है।
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक संगठन ने दायर की याचिका
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक संगठन ने 2 मई, 2022 को ASI के आदेश के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें हिंदुओं को मंगलवार और बसंत पंचमी पर प्रार्थना करने और मुसलमानों को शुक्रवार को नमाज अदा करने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, यह व्यवस्था तब गलत साबित हो गई जब 2006, 2013 और 2016 में बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ी।
अपनी जनहित याचिका में, हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने दावा किया, "केवल हिंदू समुदाय के सदस्यों को परिसर के भीतर देवी वाग्देवी/सरस्वती के स्थान पर पूजा (प्रार्थना) और अनुष्ठान करने का भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार है।" धार में स्थित सरस्वती सदन, जिसे आमतौर पर भोजशाला के नाम से जाना जाता है। मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को किसी भी धार्मिक उद्देश्य के लिए उपरोक्त संपत्ति के किसी भी हिस्से का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है।''
वहीं, बीते साल सितंबर में प्राचीन इमारत के अंदर वाघदेवी (देवी सरस्वती) की मूर्ति स्थापित किए जाने के बाद क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ानी पड़ी थी। घटनाक्रम की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की। बाद में पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने मूर्ति को धार्मिक स्थल से सुरक्षित बाहर निकाला गया था।
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