सार

पुलिस के सामने ही बंदियों को अपराधियों ने गोली मार दी। ऐसे में जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि अदालतों की सुरक्षा के क्या नियम हैं? आइए उसके बारे में जानते हैं।

लखनऊ। लखनऊ कोर्ट परिसर में कुख्यात संजीव जीवा की हत्या के बाद न्यायालयों की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। इस तरह की खबरें अक्सर सामने आती हैं। माफिया मुख्तार अंसारी के करीबी संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की वकील के वेश में आए हमलावर ने दनादन 6 गोलियां दाग कर हत्या कर दी। घटना में एक बच्ची और दो सिपाही भी घायल हुए। बीते 16 मई को जौनपुर कोर्ट परिसर में पेशी पर आए हत्या के आरोपी मिथिलेश गिरी और सूर्यप्रकाश राय पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गई। पुलिस के सामने ही दोनों बंदियों को अपराधियों ने गोली मार दी। हालाकि इस घटना में कैदी बाल बाल बच गए। ऐसे में जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि अदालतों की सुरक्षा के क्या नियम हैं? आइए उसके बारे में जानते हैं।

क्‍या है अदालतों में जांच का सिस्‍टम

न्यायालय एक ऐसी जगह है, जहां न्यायधीशों के अलावा वकील, अभियुक्त की पैरवी करने वाले लोग आते हैं। अभियुक्तों को पेशी के लिए भी लाया जाता है। आए दिन जघन्य वारदातों में शामिल आरोपी कोर्ट में आत्मसमर्पण भी करने पहुंचते हैं। ऐसे में न्याय का मंदिर कहे जाने वाले कोर्ट परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए। ताकि यह जगह सभी के लिए भयमुक्त रहे। वैसे देखा जाता है ज्यादातर कोर्ट परिसर में जांच की समुचित व्यवस्था नहीं होती है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसी का फायदा उठाते है।

किसकी जिम्मेदारी होती है अदालतों की सुरक्षा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के ​अधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा कहते हैं कि अदालतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित राज्य और जिला प्रशासन की होती है। इसकी समय समय पर समीक्षा भी होती है। पर यह सिर्फ रस्म अदायगी भर बन कर रह गई है। वह सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि कितने अदालतों के मेन गेट पर मेटल डिटेक्टर एक्टिव हैं। वकील और मुवक्किल के अदालत में जाने की व्यवस्था भी एक ही गेट से होगी तो ऐसे में अदालत में जरुरी काम से जाने वाले गैरजरुरी शख्स की पहचान करना मुश्किल होगा। इसके लिए फूल प्रूफ व्यवस्था होनी चाहिए।

हथियारों को लेकर अदालत में जाने का क्या है नियम?

अजय कुमार मिश्रा कहते हैं कि इसके लिए कोई सॉलिड योजना अब तक सामने नहीं आई है। गैरजरुरी लोग पहले ही अदालत में पहुंच जाते हैं। एक शख्स के साथ दस—दस लोग कोर्ट में प्रवेश पा जाते हैं। न्यायधीशों या कोर्ट के सुरक्षाकर्मियों के अलावा कोई भी हथियार लेकर नहीं जा सकता है। पर इसके उलट ही सारे चीजें देखने को मिलती हैं। कोर्ट में लोगों के प्रवेश का ऐसा कोई खास नियम नहीं है कि जिसके तहत अनाधिकृत लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगाई जा सके। तमाम गैर जरुरी लोगों का जत्थ अक्सर कोर्ट परिसरों में देखा जाता है।

कुछ साल पहले ये बात भी आई थी सामने

कुछ साल पहले रेलवे की तर्ज पर अदालतों की सुरक्षा के लिए स्पेशल यूनिट बनाने की मांग उठी थी। पर यह सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रह गई। इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। हालांकि निचली अदालतों की तुलना में उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहते हैं। हर शख्स को उन नियमों का पालन भी करना होता है। चाहे वह आम आदमी हो, राज्य सरकार का मंत्री हो या कोई अफसर।

सुप्रीम कोर्ट के मेन गेट पर सबकी जांच होती है। एडवोकेट, जज और स्टाफ के लिए कार्ड जारी होते हैं। परिसर में में सुरक्षा गार्ड मौजूद रहते हैं। चीफ जस्टिस की सिक्योरिटी भी कोर्ट रूम के बाहर तक ही रहती है और कोर्ट रूम में घुसने से पहले सबकी जांच होती है। सुरक्षा के दो लेयर सुनियोजित तरीके से होते हैं कि कोई हथियार लेकर परिसर में नहीं जा सकता।

  • हाईकोर्ट में एंट्री के लिए विजिटर पास बनवाना पड़ता है।
  • साल 2013 में बम ब्लास्ट की घटना के बाद यह हुआ।
  • संजीव जीवा हत्याकांड के बाद अब देश की बाकि अदालतों में सुरक्षा के लिए एक मजबूत सिस्टम की कमी महसूस की जा रही है।
  • निचली अदालतों के डिस्ट्रिक्ट जज को एक्स कैटैगरी के साथ घरों पर सुरक्षा मिलती हैं।
  • सीजेएम के भी घर की सुरक्षा में जवान लगाए जाते हैं।