सार
बसपा मुखिया पहले ही यह साफ कर चुकी हैं कि पार्टी लोकसभा व विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी, किसी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगी। पर उनकी पार्टी के नेता गठबंधन के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर रहे हैं।
लखनऊ। बसपा मुखिया पहले ही यह साफ कर चुकी हैं कि पार्टी लोकसभा व विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी, किसी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगी। पर उनकी पार्टी के नेता गठबंधन के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। अमरोहा से पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली ने इसको लेकर एक ट्वीट भी किया है। जिसमें वह मौजूदा समय में गठबंधन की अहमियत बताते दिख रहे हैं।
बीएसपी सांसद ने किया ये पोस्ट
सांसद दानिश अली ने एक तस्वीर शेयर करते हुए विपक्षी एकता की बात कही है, वह तस्वीर साल 2018 में कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह की है। तस्वीर में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनियां गांधी और राहुल गांधी, यूपी की पूर्व सीएम मायावती, पश्चिमी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमार स्वामी जैसे दिग्गज नेता मंच पर हाथ लहराते हुए दिख रहे हैं। दानिश अली भी तस्वीर मे हैं। तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा है कि कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर 2018 में इसी दिन विपक्षी दलों के दिग्गजों की मेजबानी करना यादगार क्षण था। आज विपक्षी एकता की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है, आओ हम सब एक हो जाएं।
नीतीश कुमार के प्रयास को आशा भरी निगाह से देख रहे नेता
उधर, बसपा मुखिया मायावती ने बीते 15 जनवरी को साफ किया था कि कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत अन्य राज्यो के विधानसभा चुनाव और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव में पार्टी किसी दल से गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेगी। पार्टी अपने बलबूते पर ये सभी चुनाव लड़ेगी। यह भी कहा था कि पसमांदा मुस्लिम समाज के नाम पर बीजेपी की विभाजनकारी गेम प्लान सफल होने वाला नहीं है। उसके उलट पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली ने सार्वजनिक तौर पर अपनी बात खुलकर सामने रखी है। पार्टी के अन्य नेता भी बिहार के सीएम नीतीश कुमार की विपक्ष को एक साथ लाने के प्रयास को आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद यह आवाज और तेज हो रही है।
सपा-बसपा 2019 में मिलकर लड़े चुनाव
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। यह गठबंधन सिर्फ 6 महीने ही चल सका। साल 2019 में 12 जनवरी को दोनों दल साथ आए और 23 जून को अलग भी हो गए। रालोद ने भी तीन सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जबकि सपा ने 37 और बसपा के 38 प्रत्याशी मैदान में थे। उस चुनाव में बसपा फायदे में रही थी। कहा जा रहा है कि इन्हीं समीकरणों को देखते हुए एक बार फिर गठबंधन की आवाज उठ रही हैं।