सार
प्रयागराज महाकुंभ 2025: गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम की पवित्र धारा के बीच बसे प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इस बार, महाकुंभ में एक खास और प्रेरणादायक शख्सियत की उपस्थिति ने सभी को चौंका दिया है। हम बात कर रहे हैं किन्नर अखाड़े से जुड़ी महात्मा अलीजा राठौर की, जो न केवल पहली ट्रांसजेंडर जर्नलिस्ट हैं, बल्कि डेडलॉक आर्टिस्ट एकेडमी की संस्थापिका भी हैं। अलीजा का जीवन संघर्षों, तानों और अपमान का गवाह रहा है, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास से सभी मुश्किलों का सामना किया और समाज में अपनी पहचान बनाई।
जन्म से संघर्ष की शुरुआत: मुंबई से जौनपुर तक की यात्रा
अलीजा का जन्म मुंबई में हुआ था, जहां वे एक मिडल क्लास व्यापारी परिवार में पली-बढ़ी। हालांकि, उनका नाता उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गांव से था। उनका बचपन किसी आम बच्चे की तरह खुशहाल नहीं था, क्योंकि उन्हें बचपन से ही यह एहसास हुआ कि उनका शारीरिक ढांचा समाज के सामान्य बच्चों से भिन्न था। इस अंतर ने उन्हें घर और स्कूल में मानसिक तनाव और पीड़ा दी।
खुद को संभाला
कभी मां की दुलारी तो कभी समाज के तानों का शिकार, अलीजा ने हमेशा खुद को इन तानों और अपमान से बचाने की कोशिश की, लेकिन कभी-कभी उनका मन टूट जाता था। घर में भी उन्हें कभी प्रेम तो कभी तिरस्कार का सामना करना पड़ता था। उनकी मां, जो खुद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की जानकार और मास कम्युनिकेशन में डिग्री धारक थीं, अलीजा के लिए एक बड़ा सहारा थीं। हालांकि, जैसे-जैसे अलीजा बड़ी होने लगीं, यह अंतर उनके जीवन में और गहरा होने लगा।
किंनरों की टोली में शामिल होने का कठिन कदम
जब अलीजा ने 19 साल की उम्र में घर छोड़ने का निर्णय लिया, तो उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। वह किन्नरों की टोली में शामिल हो गईं और बधाई मांगने लगीं। हालांकि, यह काम उनके लिए अपमानजनक था, और यह स्थिति उन्हें बहुत तकलीफ देती थी। फिर भी, उन्होंने इस काम को किया क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। लेकिन उनके भीतर कुछ ऐसा था जो उन्हें हमेशा कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करता रहा।
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गुरु मां की प्रेरणा से शिक्षा और आत्मविश्वास की राह
अलीजा की गुरु मां, जिन्होंने उन्हें सही दिशा दिखाई, ने उन्हें आगे पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। गुरु मां ने कहा, “तुम्हारे अंदर वो शक्ति है जो तुम चाहो तो किसी भी मुकाम को हासिल कर सकती हो।” इस प्रेरणा से उत्साहित होकर, अलीजा ने शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाया और पढ़ाई पूरी की। इसके बाद, उन्होंने मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर डेवलपर के रूप में काम करना शुरू किया। जहां उनकी सैलरी 58,000 रुपये प्रति माह थी, लेकिन समाज से मिलने वाले ताने और मानसिक तनाव उन्हें अंदर तक तोड़ देते थे। कई बार डिप्रेशन की स्थिति भी आई और कभी खुद को खत्म करने का ख्याल भी आया।
जिंदगी का नया मोड़ और उज्जैन की यात्रा
एक दिन अलीजा की मुलाकात किन्नर समाज की राधिका से हुई, जिन्होंने उन्हें उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन कराए और वहीं पर पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए प्रेरित किया। उज्जैन में आकर, अलीजा ने न केवल पत्रकारिता सीखी, बल्कि किन्नर समाज के लिए एक नई राह भी तैयार की। यहां से उन्होंने अपनी डेडलॉक आर्टिस्ट एकेडमी की स्थापना की, जहां वे न केवल कला की शिक्षा देती हैं, बल्कि समाज में किन्नरों के सम्मान की लड़ाई भी लड़ रही हैं।
किन्नर अखाड़े से जुड़कर एक नई पहचान बनाना
अलीजा राठौर अब किन्नर अखाड़े से जुड़ी हुई हैं, और इस अखाड़े के महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को अपना गुरु मानती हैं। वे मानती हैं कि किन्नरों का जन्म भी मां के गर्भ से ही हुआ है और हमें समाज में समान अधिकार मिलना चाहिए। उनका यह संदेश हर जगह फैल चुका है, और वे समाज में किन्नरों के लिए सम्मान और समानता की लड़ाई लड़ रही हैं।
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अलीजा राठौर का संदेश: समानता की ओर एक कदम
महाकुंभ में पहुंचकर, अलीजा राठौर ने सभी से अपील की कि हमें समाज में समान रूप से जीने का अधिकार मिलना चाहिए। उनका कहना है, "हम भी इंसान हैं, और हम भी किसी से कम नहीं हैं। हमें भी अपने अधिकार मिले, ताकि हम भी अपनी जिंदगी को सम्मान के साथ जी सकें।"
अलीजा का जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा है कि किस तरह से जीवन में आई मुश्किलें, ताने और मानसिक दबाव को एक नई दिशा में बदल सकते हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल हमें हमारी मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।