सार
महाकुंभ नगर, प्रयागराज। (Asianetnews Hindi Exclusive: प्रयागराज महाकुंभ से सूर्या त्रिपार्टी की रिपोर्ट) महाकुंभ 2025 का यह पावन संगम, श्रद्धालुओं और साधु-संतों की भक्ति का केंद्र बन चुका है। अनगिनत संत, अपनी अनूठी साधना और आध्यात्मिक शक्ति के कारण लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं 9 वर्षीय बाल नागा संन्यासी गोपाल गिरी, जिनकी मासूमियत और भक्ति ने हर किसी को प्रभावित किया है।
गोपाल गिरी का बचपन और संन्यासी बनने का सफर
गोपाल गिरी का जन्म हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। तीन साल की आयु में, उनके माता-पिता ने उन्हें धार्मिक परंपरा के अनुसार गुरु दक्षिणा में श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े को सौंप दिया। गुरु दक्षिणा का यह निर्णय उस परिवार के सात जन्मों के पापों को समाप्त करने और सात पीढ़ियों को पुण्य देने का माध्यम माना जाता है।
गुरु के सानिध्य में दीक्षा और शिक्षा
गोपाल गिरी के गुरु श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के नागा संन्यासी थानापति सोमवार गिरी महाराज ने उन्हें नागा संन्यासी बनने के लिए तैयार किया। उनकी दिनचर्या में सुबह 4 बजे से उठकर पूजा-अर्चना, ध्यान और तलवार-बाला जैसे अस्त्र-शस्त्र चलाने का अभ्यास शामिल होता है। उनके गुरु भाई बताते हैं कि इतनी कम उम्र में भी गोपाल गिरी में अद्वितीय अनुशासन और आध्यात्मिक ज्ञान है।
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नागा संन्यासी बनने की कठिन साधना
नागा संन्यासियों का जीवन तप और त्याग की मिसाल है। वे बिना कपड़ों के, केवल शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं। कड़ाके की ठंड हो या तपती धूप, इनकी साधना में कोई बाधा नहीं आती। गोपाल गिरी ने बताया कि साधना और तपस्या के बिना संन्यासी जीवन अधूरा है। यह जीवन कठिन है, लेकिन यही मुझे आनंद और शांति देता है।
महाकुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र
महाकुंभ 2025 में गोपाल गिरी पहली बार शामिल हुए हैं। संगम की रेती पर निर्वस्त्र भस्म धारण किए, वह अपने गुरु भाइयों के साथ तपस्या और ध्यान में लीन रहते हैं। उनके दर्शन के लिए श्रद्धालु घंटों लाइन में खड़े रहते हैं। ये उनका पहला महाकुंभ है।
श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया
प्रयागराज के संगम पर पहुंचे श्रद्धालु गोपाल गिरी को देखकर दंग रह जाते हैं। हर कोई उनकी मासूमियत और भक्ति का कायल हो जाता है। लोग उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने के लिए आतुर रहते हैं।
गुरु को माता-पिता का स्थान
गोपाल गिरी के माता-पिता ने जब उन्हें गुरु दक्षिणा में दान किया, तब से उनका परिवार गुरु और भगवान शिव की भक्ति बन चुका है। वे कहते हैं, मेरे गुरु ही मेरे माता-पिता हैं। उनकी सेवा और महादेव की भक्ति ही मेरा जीवन है।"
आश्रम में कठिन प्रशिक्षण
बाल नागा संन्यासी को अन्य बच्चों की तरह खेलने-कूदने का अवसर नहीं मिलता। उनका समय पूरी तरह से पूजा-पाठ, साधना और अस्त्र-शस्त्र चलाने में व्यतीत होता है। उनके गुरु भाई बताते हैं कि नागा संन्यासी बनने के लिए न केवल मानसिक दृढ़ता चाहिए, बल्कि शारीरिक सहनशक्ति भी जरूरी है।
साधना और भक्ति की प्रेरणा
गोपाल गिरी का जीवन यह संदेश देता है कि भक्ति और साधना किसी भी उम्र में संभव है। उनकी तपस्या और साधना न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा भी है।
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