सार
फाइटर प्लेन में एक ऐसा सिस्टम होता है, जो क्रैश के दौरान चंद सेकेंड में ही पायलट को बाहर निकलने में मदद करता है लेकिन बावजूद इसके कई बार पायलट की जान चली जाती है। शनिवार को ग्वालियर के पास हुए हादसे में भी एक पायलट की जान चली गई।
ट्रेंडिंग डेस्क : मध्यप्रदेश के मुरैना में शनिवार को एयरफोर्स के दो ताकतवर फाइटर प्लेन सुखोई-30 और मिराज 2000 क्रैश (Morena Fighter Plane Crash) हो गए। अब तक की अनुमान के मुताबिक, दोनों एयरक्राफ्ट की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि टक्कर के बाद दोनों का मलबा एक-दूसरे से 90 किमी दूर मुरैना और राजस्थान के भरतपुर में मिला। भारतीय एयरफोर्स के मुताबिक, सुखोई (Sukhoi-30MKI) के दोनों पायलट सुरक्षित बाहर निकल गए हैं, जबकि मिराज (Mirage-2000) के पायलट की मौत हो गई है। अब सवाल यह कि फाइटर प्लेन में एक ऐसा सिस्टम होता है, जो क्रैश के दौरान चंद सेकेंड में ही पायलट को बाहर निकलने में मदद करता है लेकिन बावजूद इसके कई बार पायलट की जान कैसे चली जाती है। आइए जानते हैं..
पायलट को बाहर निकालने में मदद करता है यह सिस्टम
जब कोई प्लेन क्रैश होता है, तब पायलट के पास चंद सेकेंड का ही वक्त होता है। फाइटर प्लेन के क्रैश होने के दौरान पायलट को बाहर निकालने में 'रॉकेट पावर सिस्टम' मदद करता है। इसे इजेक्शन सीट भी कहते हैं। पायलट की सीट के नीचे रॉकेट पावर सिस्टम लगा होता है। जब प्लेन क्रैश होता है, तब पायलट इसे एक्टिवेट करता है। जैसे ही यह सिस्टम एक्टिवेट होता है, प्लेन का एक छोटा हिस्सा ओपन हो जाता है और पैराशूट की मदद से पायलट जमीन पर सुरक्षित लैंड करता है।
फिर कैसे हो जाती है पायलट की मौत
अब सवाल कि जब पायलट को बचाने के लिए फाइटर प्लेन में यह तकनीकी होती है, तो फिर उनकी मौत कैसे हो जाती है? दरअसल, कई बार जब एयक्रॉफ्ट क्रैश होता है तो पायलट की सीट डैमेज हो जाती है। ऐसी स्थिति में रॉकेट पावर सिस्टम काम नहीं करता है और पायलट के लिए खतरा बढ़ जाता है। इसका मतलब क्रैश के दौरान यह सिस्टम काम नहीं करता और पायलट की मौत हो जाती है।
इसे भी पढ़ें
क्रैश हुए Mirage 2000 और Sukhoi-30 लड़ाकू विमान, ग्वालियर से भरी थी उड़ान, एक पायलट की मौत