सार

सोमवार को पाकिस्तान के पेशावर के एक मस्जिद में अचानक से आत्मघाती हमला हुआ। लोग संभल पाते कि तब तक चीख पुकार मच गई थी। इस हमले में 90 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।

ट्रेडिंग डेस्क : पाकिस्तान के पेशावर में सोमवार को हाई सिक्योरिटी जोन में नमाजियों से खचाखच भरी मस्जिद में आत्मघाती हमले (Peshawar Bomb Blast) में 90 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 60 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने ली है। टीटीपी की तरफ से कहा गया है कि यह हमला उमर खालिद खुरासानी (Umar Khalid Khorasani) की मौत का बदला है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर उमर खालिद खुरासानी कौन था, जिसकी मौत का बदला लेने के लिए इतने लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। टीटीपी के लिए कितना मायने रखता था उमर खालित खुरासानी। आइए जानते हैं..

कौन था उमर उमर खालिद खुरासनी

उमर खालिद खुरासनी एक समय टीटीपी का कमांडर हुआ करता था। पिछले साल अगस्त में पाकिस्तानी सेना ने उसे मौत के घाट उतार दिा था। खुरासानी के भाई और टीटीपी के सदस्य मुकर्रम ने ही बताया था कि वे खुरासानी की मौत को अब तक भूल नहीं पाए हैं और पूरी तैयार करने के बाद पेशावर मस्जिद में हमला किया गया। पाकिस्तान की मोहम्मद एजेंसी में जन्मा खुरासानी का असली नाम अब्दुल वली मोहम्मद था। उसके गांव का नाम साफो था और उसकी शुरुआती तालीम वहीं हुई थी। बाद में उसने कराची के कई मदरसों में भी तालीम ली। उसकी उम्र काफी कम थी, जब वह आतंक की दुनिया से जुड़ा। शुरुआत में पाकिस्तान के इस्लामी जिहादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन से खुरासानी जुड़ा, जो कश्मीर में एक्टिव था लेकिन जब वह 18 साल से ज्यादा की उम्र में पहुंचा तो तहरीक-ए-तालिबान का सदस्य बन गया।

कश्मीर में काफी समय तक एक्टिव रहा खुरासनी

खुरासनी काफी समय तक कश्मीर में एक्टिव था। टीटीपी जॉइन करने से पहले वह शायर और पत्रकार हुआ करता था। हालांकि, वह टीटीपी में कब शामिल हुए इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता है। अगस्त, 2014 में टीटीपी से अलग होकर उसने जमात-उल-अहरार की स्थापना की। यह आतंकी संगठन भी टीटीपी से ही जुड़ा था। जमात-उल-अहरार आम नागरिकों, अल्पसंख्यकों और सैन्यकर्मियों को ही अपना निशाना बनाता था।

पाकिस्तान में सबसे ज्यादा  हमला, 30 लाख डॉलर का इनाम

अफगानिस्तान के नांगरहार और कुनार प्रांतों से आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में खुरासनी ही आगे रहता था। जमात-उल-अहरार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का भी सबसे ज्यादा सक्रिय आतंकी संगठन था। यहां उसने कई आतंकी हमले किए थे। सबसे बड़ा हमला मार्च 2016 में गुलशन-ए-इकबाल एम्युजमेंट पार्क में इस आतंकी संगठन ने किया था। लाहौर में ईस्टर के मौके पर एक हमले में इस आतंकी संगठन ने 70 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी थी। अमेरिका की नजर भी खुरासानी की आतंकी गतिविधियों पर रहती थी। यही वजह था कि मार्च 2018 में अमेरिकी विदेश विभाग ने खुरासानी पर 30 लाख डॉलर का इनाम रखा था।

तीन बार ड्रोन हमले से बचा, लेकिन बम विस्फोट में मौत

जमात-उल-अहरार भले ही टीटीपी से जुड़ा था लेकिन आतंकी हमले का तरीका उसका अपना रहता था। मार्च 2015 में यह संगठन टीटीपी का हिस्सा हो गया। खुरासानी कई बार पाकिस्तानी सेना के हमलों से बच गया था। तीन बार तो ड्रोन हमले में ही वह बाल-बाल बचा था। दिसंबर 2021 और फरवरी 2022 में भी उसपर हमले हुए लेकिन बाल भी बांका नहीं हुआ। हालांकि अगस्त 2022 में अफगानिस्तान के पाकटीका इलाके में 45 साल के खुरासानी की गाड़ी को निशाना बनाकर एक बम धमाका किया गया। इस हमले में खुरासनी के साथ टीटीपी के दो और कमांडर की मौत हो गई थी।

टीटीपी क्या है

दरअसल, बात 2007 की है, जब कई आतंकी गुट एक साथ आ गए थे। उसी दौरान सभी ने मिलकर टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का गठन किया था। पाकिस्तान टीटीपी को तालिबान भी बताया करता था। इस संगठन का मकसद पाकिस्तान में इस्लामी शासन लाना है। अगस्त 2008 की बात है, जब पाक सरकार ने टीटीपी पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस संगठन के पांव 2002 में ही जमने शुरू हो गए थे। अक्टूबर, 2001 में अमेरिकी सेना ने जब अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबान को बेदखल किया, तब यह आतंकी संगठन पाकिस्तान आ गया था। इसके बाद 2007 में बैतुल्लाह महसूद ने टीटीपी की घोषणा की। 5 अगस्त, 2009 को महसूद मारा गया और हकीमउल्लाह महसूद के हाथ टीटीपी की कमान आ गई। 1 नवंबर, 2013 में उसकी भी मौत हो गई और फिर मुल्ला फजलुल्लाह इस संगठन का नेता बना। 22 जून, 2018 को अमेरिकी सेना के हमले में उसकी भी मौत हो गई और इस वक्त नूर वली महसूद के हाथ टीटीपी की कमान है।

इसे भी पढ़ें

पाकिस्तान में कयामत के मंजर ! पेशावर की मस्जिद में हमलावर ने खुद को बम से उड़ाया, कागज के टुकड़ों की तरह जिस्म हवा में उड़े

 

दुनिया में पहली बार कब हुआ था आत्मघाती हमला, पहला सुसाइड बॉम्बर कौन था, जानें