सार
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में कोर्ट ने चारों आरोपियों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने मामले को लेकर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि धारा 144 के बावजूद आयोजन को रद्द क्यों नहीं किया गया?
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट की ओर से कहा गया कि अगर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी ने किसानों को धमकाने वाला कथित बयान न दिया होता तो शायद लखीमपुर खीरी कांड न होता। इस टिप्पणी के साथ ही न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने चारों आरोपियों अंकित दास, लवकुश, सुमित जायसवाल, शिशुपाल की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
धारा 144 के बावजूद रद्द क्यों नहीं हुआ कार्यक्रम
कोर्ट की ओर से कहा गया कि उच्च पद संभालने वाले राजनीतिक व्यक्तियों को सार्वजनिक बयान सभ्य तरीके से देने चाहिए। एक बार सोच लेना चाहिए कि उसका अंजाम क्या होगा। फिर जब क्षेत्र में धारा 144 लगी हुई थी तो ऐसे में दंगल का आयोजन क्यों किया गया? न्यायालय यह विश्वास नहीं कर सकता कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को यह जानकारी न हो कि क्षेत्र में धारा 144 लागू है। हालांकि इसके बावजूद भी आयोजन को किया गया। यही नहीं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और डिप्टी सीएम ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित होने का निर्णय भी लिया। लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की ओर से कहा गया कि यह काफी दिलचस्प बात है कि इलाके में धारा 144 लागू थी फिर भी कुश्ती प्रतियोगिता को रद्द नहीं किया गया। कानून के निर्माताओं को ही कानून का उल्लंघन करने वाले के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
25 मई को होगी सुनवाई
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से जमानत रद्द होने के बाद आशीष मिश्र मोनू की ओर से हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दोबारा से जमानत याचिका दायर की गई है। इस जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 25 मई को नियत की गयी है।
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