सार

राजनीतिक नजर से देखें तो मंदिर भले ही उत्तर प्रदेश में है लेकिन कहा जाता है कि पंजाब के राजनीति में सत्ता का रास्ता वाराणसी स्थित रविदास मंदिर से आशीर्वाद के साथ ही होकर जाता हैं । रविदास जी के जन्मदिवस पर बड़ी संख्या में पंजाब से रैदासियों के साथ साथ राजनेता भी पहुंचते हैं। 

अनुज तिवारी
वाराणसी:
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में एक संत रविदास का ऐसा मंदिर है। जिसे काशी के दूसरे गोल्डेन टेंपल के नाम से जाना जाता है। यह इसलिए भी है कि इसके सीर गोवर्धन यानी संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म स्थल हैं। इस बार 16 फरवरी को संत रविदास जयंती है। कोरोना के साये में आयोजन के लिए तैयारियां शुरू हो गईं हैं फरवरी के माह में रविदास जी के जन्मस्थली पर उतर प्रदेश के साथ साथ पंजाब से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं । 


राजनीतिक पहलू से जुड़ा है रविदास मंदिर
राजनीतिक नजर से देखें तो मंदिर भले ही उत्तर प्रदेश में है लेकिन कहा जाता है कि पंजाब के राजनीति में सत्ता का रास्ता वाराणसी स्थित रविदास मंदिर से आशीर्वाद के साथ ही होकर जाता हैं । रविदास जी के जन्मदिवस पर बड़ी संख्या में पंजाब से रैदासियों के साथ साथ राजनेता भी पहुंचते हैं। रविदास मंदिर के आस पास का इलाका बेगमपुरा में तब्दील हो जाता हैं। लोगों के नजर से मिनी पंजाब की झलक यहां देखने को मिलता हैं। क्योंकि पंजाब से बड़ी संख्या में रविदास यहां आते हैं। और पंजाब से स्पेशल ट्रेन भी चलती है जिसमें बड़ी संख्या में पंजाब से भक्त वाराणसी स्थित रविदास मंदिर पहुंचते हैं। और रविदास जयंती को देखते हुए पंजाब में अब 14 फरवरी के बजाय 20 फरवरी को मतदान होगा। 


रविदास मंदिर के बगल में स्थित है इमली का पेड़ 
संत रविदास की जन्म स्थली के ठीक बगल में सैकड़ों वर्ष पुराना इमली का पेड़ है। मान्यता है कि इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर संत रविदास जी सतसंग किया करते थे। संत हरिदास ने जब मंदिर की नींव रखी तब इमली का पेड़ सूखा हुआ था, लेकिन लगातार पानी देने से उसकी जड़ों से कल्ले फूटने लगे। अब ये इमली का पेड़ रैदासियों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। स्थानीय निवासी लाल बहादुर यादव ने बताया कि इमली के पेड़ में लोगों की काफी आस्था है। लोग तबियत खराब होने पर इमली के पत्ते को पीसकर बीमार व्यक्ति को देते हैं। यहां की मिट्टी को लोग भी पूजते हैं।


राजनेताओं के पहुंचने की है पूरी उम्मीद 
वाराणसी का रविदास मंदिर दलित सियासत का केंद्र रहा है। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra modi) पहुंचे थे और विकास योजनाओं की शुरुआत की घोषणा की थी। मंदिर के पुनरुद्धार के जरिए उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक की दलित सियासत को साधने का प्रयास किया है। पीएम मोदी के साथ साथ प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka ghandhi vadra) ने भी रविदास मंदिर में पहुंचकर हाजिरी लगाई थी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी संत रविदास के दर पर मत्था टेक चुके हैं। दलित राजनीति करने वाले भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी यहां संत रविदास जी के आशीर्वाद लेने आते रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Aditiyanath) भी यहां के विकास कार्यों का जायजा लेने के साथ-साथ संत रविदास के दर पर शीश नवाने आते रहते हैं। और भी तमाम नेता संत रविदास मंदिर में दर्शन करने आते रहे हैं। खाना की मंदिर प्रशासन की तरफ से किसी भी राजनेता को इस बार आमंत्रण नहीं भेजा गया है लेकिन उनका कहना यह भी है कि अगर कोई राजनेता यहां दर्शन पूजन करने आता है तो उसको रोका नहीं जाएगा और यही वजह है कि यह कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने के कारण राजनेता संत रविदास के दर पर पहुंच सकते हैं।


श्रद्धालुओं के लिए किया गया है बेहतर इंतजाम
अगले दस दिनों तक वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर रविदास मंदिर देश के विभिन्न प्रांतों से रविदासियों की जमात जुटेगी। पंजाब से सेवादार पहले ही पहुंच चुके हैं। सुरक्षा, सफाई, लंगर, जूता स्टैंड, बर्तन धोने, सब्जी काटने, भोजन पकाने, खिलाने तक की व्यवस्था सेवादार ही संभालते हैं। और वो अपने कार्यों में लग गये हैं। टेंट सिंटी में सुरक्षा की दृष्टि से हर महत्वपूर्ण स्थान पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इसके लिए अलग से कंट्रोल रूम बनाया गया है जहां छह-छह घंटे की पालियों में सेवादार चौबीसों घंटे मौजूद रहेंगे।

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