सार

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के झंडों के लिए तमाम मानक तय किए हैं। यह मानक दो पहिया वाहन के लिए अलग तो तीन पहिया और चार पहिया वाहन के लिए अलग हैं। यही नहीं रैली और रोड शो में भी झंडे से लेकर बैनर तक के अलग-अलग मानक निर्धारित किए गए हैं। गठबंधन की स्थिति में दोनों ही राजनीतिक दलों के झंडों को लगाया जा सकता है लेकिन उसके लिए भी अलग से नियम बनाए गए हैं। 

लखनऊ: निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के बाद राजनीतिक पार्टियों का झंडा भी आचार संहिता की जद में होता है। यूं ही न इसे फहरा सकते हैं, न ही लेकर बाजार निकल सकते हैं। इसको लेकर दिशा निर्देश भी जारी किए गए है। इसमें किसी भी प्रकार की चूक होने पर संहिता के उल्लंघन में फंसना तय माना जाता है। अगर कोई भी व्यक्ति  किसी पार्टी से जुड़ा है या समर्थक, पदाधिकारी हैं वह अपने दो पहिया वाहन पर भी यदि झंडा लगाकर चलना चाहते हैं तो याद रखें कि दो गुणे एक फिट से ज्यादा का बड़ा झंडा नहीं लगा सकते हैं। डंडा भी 3 फिट से अधिक का नहीं हो सकता है। वहीं वाहन पर स्टीकर या बैनर लगाने की भी अनुमति नहीं होती है। 

तीन या चार पहिया के लिए ये हैं नियम
अगर आप तीन पहिया या चार पहिया वाहन पर झंडा लगाना चाहते हैं तो इसकी अधिकतम लंबाई तीन गुणे दो फीट हो सकती है। इससे बड़ा झंडा लगा होना उल्लंघन माना जाता है। वहीं बैनर या स्टीकर लगाने की पूरी मनाही होती है। इसके अलावा चुनावी अभियान में वाहन पर कोई फोकस, चमकती सर्च लाइट या हूटर का प्रयोग भी आप नहीं कर सकते हैं।

छूट मिलने के बाद रोड शो के नियम 
इस प्रकार आयोग ने रोड शो के लिए भी गाइडलाइन जारी की है। हालांकि इस पर अभी रोक है। लेकिन आयोग से छूट मिलने के बाद भी आप रोड शो में एक बैनर से अधिक नहीं ले जा सकते हैं। रोड शो के बैनर की अधिकतम लंबाई छह फीट गुणे चार फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए। वहीं झंडा ले जाने के लिए डंडे की लंबाई भी 3 फीट से अधिक की नहीं होनी चाहिए। 

गठबंधन को लेकर क्या है गाइडलाइन 
आयोग का निर्देश है कि चुनाव पूर्व किसी पार्टी का दूसरे दल के साथ गठबंधन है, या दूसरे दल के साथ सीट साझा करने की व्यवस्था है तो ऐसी परिस्थितियों में चुनाव अभियान वाहन पर दोनों दल के झंडे को लगाया जा सकता है। लेकिन इसकी लंबाई भी तीन गुणे दो से अधिक नहीं होगी। 

चुनावी खर्च में शामिल होंगी ये चीजें 
राजनीतिक पार्टियों के जुलूस-रैली में टोपी, मुखौटा, स्कार्फ आदि की आपूर्ति राजनीतिक दल या प्रत्याशी की ओर से ही होनी चाहिए। चुनावी खर्च में इसे शामिल करना अति आवश्यक होता है। अन्यथा आचार संहिता के उल्लंघन पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत धाराओं में कार्रवाई हो सकती है।