सार
योगी कैबिनेट बैठक में लिए गए महत्वपूर्ण फैसले ने राज्य के कमिश्नरेट सिस्टम को बदल दिया है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि अपराध पर रोक लगाई जा सके और लोगों को किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में दोबारा योगी आदित्यनाथ सरकार की आने के बाद राज्य के लिए कई महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगी। इसी क्रम में एक बार फिर गुरुवार को कैबिनेट बैठक में 22 प्रस्तावों पर मुहल लगाई गई। जिसमें से लॉ एंड ऑर्डर और पुलिसिंग के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण निर्णय यह रहा कि अब लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में ग्रामीण जिला व्यवस्था को खत्म करके पूरे जिले को पुलिस कमिश्नरेट में शामिल करने का फैसला लिया गया है। अब तीनों जिलों में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम का दायरा बढ़ा दिया गया है। यह फैसला ग्रामीण थानों के संचालन में आ रही व्यवस्था कव्यवहारिक दिक्कतों को देखते हुए किया गया है।
प्रदेश पुलिस ने फैसला का किया स्वागत
कानपुर, लखनऊ और वाराणसी में ग्रामीण जिला के सभी थाने पुलिस कमिश्नरेट के अधीन होंगे। इससे संबंधित गृह विभाग के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को सीएम योगी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट में मंजूरी दे दी गई है, हालांकि नई व्यवस्था अधिसूचना जारी होने के बाद लागू की जाएगी। इस फैसला का राज्य पुलिस अधिकारियों ने स्वागत किया है। इस अहम मसले को लेकर जब प्रदेश के गृह विभाग के अधिकारियों ने कई बिंदु बताए। उन्हीं के आधार पर सरकार को वन रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट और वन पुलिस डिस्ट्रिक्ट का फॉर्मूला अपनाना पड़ा।
जानिए कमिश्नरेट सिस्टम का क्यों बढ़ा दिया दायरा
1. अधिकारी बदलने से होती है जनता को परेशानी
उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के मुताबिक, एक रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट को दो पुलिस डिस्ट्रिक्ट में बदलने से पब्लिक को तमाम तरीके की दिक्कतें आती हैं। न्यायालय और जेल की व्यवस्था एक ही है। इसके अलावा रेवेन्यू, प्रशासन सहित कई अन्य विभागों के अफसर भी एक ही हैं। बस पुलिस के अधिकारी अलग-अलग हैं तो इस वजह से जनता को दिक्कत होती है। ग्रामीण जगह पर रहने वाले लोगों को काफी समय तक यह समझ ही नहीं आता है कि वह किस अधिकारी के सामने जाकर अपनी समस्या को सुनाए। इस वजह से एक रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट में पुलिस का एक तरह का ही सिस्टम ही सही है।
2. अफरसरों के बीच को-ऑर्डिनेशन में आती हैं दिक्कतें
राज्य के हर शहर में तीज-त्योहारों और वीआईपी ड्यूटी के दौरान लॉ एंड ऑर्डर को ध्यान में रखते हुए को-ऑर्डिनेशन में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ, कानपुर, वाराणसी तीनों ही अति महत्वपूर्ण शहर हैं। इसी वजह से रोजाना वीआईपी ड्यूटी का प्रेशर भी रहता है। इसको ध्यान में रखते हुए बेहतर यही है कि एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही प्रभावी रहे।
3. ग्रामीण पुलिस के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर हो रहा तैयार
योगी कैबिनेट बैठक में लिए गए महत्वपूर्ण फैसले को लेकर लखनऊ, वाराणसी और कानपुर में ग्रामीण पुलिस के लिए अभी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाना है। इसके इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने का काम भी चल ही रहा है। इसके साथ-साथ कमिश्नरेट सिस्टम में अधिकारियों की संख्या भी पर्याप्त है तो इससे बेहतर एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही बेहतर है। नए इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर तगड़ी रकम खर्च होनी।
4. राज्य में अपराध को रोकने में मिलेगी मदद
प्रदेश में अपराध पर अंकुश लगाने के लिए भी शहर में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही अच्छा है। ऐसा इसलिए क्योंकि शहरी क्षेत्र में अपराध करने के बाद बदमाश उससे सटे ग्रामीण इलाकों की ओर रुख करते हुए भागते हैं। इसके बाद ग्रामीण और कमिश्नरेट इलाके की पुलिस के बीच तत्काल अच्छा को-ऑर्डिनेशन न हो पाने से बदमाशों की धरपकड़ में काफी परेशानी आती है। राज्य में पुलिसिंग के एक सिस्टम लागू हो जाने से जिले और शहर के एंट्री प्वाइंट्स की पुलिस प्रभावी तरीके से निगरानी कर सकेगी।
5. यातायात व्यवस्था में भी आएगी समानता
राज्य के सभी जिलों में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रमुख कस्बों तक की यातायात व्यवस्था में समानता आएगी। इतना ही नहीं इसके अलावा यातायात संबंधी नियम-कायदों का प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन भी संभव हो सकेगा।
जानें यूपी में कहां और कब लागू हुआ कमिश्नरेट सिस्टम
उत्तर प्रदेश में इस समय चार जिले हैं जहां पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू है। जिसमें से नोएडा, लखनऊ, कानपुर और वाराणसी शामिल हैं। साल 2020, जनवरी में लखनऊ और नोएडा में कमिश्नरेट लागू हुआ था तो वहीं साल 2021, मार्च में वाराणसी और कानपुर में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ था। इसके अलावा नोएडा को छोड़कर बाकी के तीनों जिलों के ग्रामीण इलाकों की पुलिसिंग के लिए ग्रामीण पुलिस की एक अलग यूनिट बनाई गई थी। ग्रामीण क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया पुलिस अधीक्षक स्तर के अफसर को बनाया और शहरी क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया एडीजी स्तर के पुलिस अफसर को बनाया गया था।