ATM का पिन पहली बार 1967 में इंग्लैंड में शुरू हुआ था। इसके पीछे थे John Adrian Shepherd-Barron, जिन्होंने पहला एटीएम बनाया था।
Barron ने पहले सोचा कि ATM पिन 6 अंकों का होना चाहिए। जब उन्होंने अपनी पत्नी से 6 Digit Number याद रखने को कहा तो पत्नी ने मना कर दिया और कहा कि सिर्फ 4 डिजिट ही याद रख सकती।
John Shepherd Barron की पत्नी के 6 अंक याद रखने से मना करने के बाद ही तय हो गया था कि ATM का पिन 4 डिजिट का ही होगा, ताकि याद रखने में आसानी हो।
लोगों को पासवर्ड याद रखने में परेशानी होती है। 4 डिजिट पिन छोटा, सिंपल और आसानी से याद किया जा सकता है।
लिमिटेशन और प्रोटेक्शन भी इसकी एक वजह है। मशीन में 3 बार गलत पासवर्ड से कार्ड ब्लॉक हो जाता है। इसलिए Brute Force Attack की कोशिश भी फेल हो जाती है।
Fast Input मतलब Faster Transactions, बड़े पिन टाइप करने में समय लगता है। बैंक को स्पीड और सिक्योरिटी चाहिए। ऐसे में 4 डिजिट पिन परफेक्ट बैलेंस देता है।
यूजर फ्रेंडली और यूनिवर्सल की वजह से 4 डिजिट पिन अच्छा माना जाता है। पूरी दुनिया में एक ही स्टैंडर्ड फॉलो करना आसान होता है। ऐसे में 4-digit PIN एक ग्लोबल नॉर्म बन चुका है।