पीएम मोदी के दौरे के बाद लक्षद्वीप चर्चा में आ गया है। आजाद भारत का हिस्सा बनने तक लक्षद्वीप का इतिहास बेहद दिलचस्प है। अंग्रेजोंसे पहले यहां एक राजा का शासन था।
अंग्रेजों से पहले पुर्तगाली लक्षद्वीप को लूटने आए। लक्षद्वीप तब लैकडाइव्स-नाविकों के लिए महत्वपूर्ण जगह था।16वीं शताब्दी की शुरुआत में पुर्तगाली अमिनी द्वीप पर उतरे थे।
कहा जाता है कि अमिनी के निवासियों ने पुर्तगालियों की सेना को चारों खाने चित कर दिया। टापू के लोगों ने आक्रमणकारियों को जहर देकर मार डाला और पुर्तगाली आक्रमण को समाप्त कर दिया।
16वीं शताब्दी में हिंदू चिरक्कल राजा के हाथ से कन्नानोर के अराक्कल शाही मुस्लिम परिवार के पास शासन गया। जिससे परेशान जनता ने टीपू सुल्तान से मदद मांगी और 5 द्वीप टीपू के पास आ गए।
1799 में चौथे आंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मौत हुई। इसके बाद अंग्रेजों का दक्षिणी भारत पर नियंत्रण हो गया। ईस्ट इंडिया का टीपू के लक्षद्वीप के टापुओं पर कब्जा हो गया।
एक भयंकर चक्रवात के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने चालाकी से चिरक्कल के राजा को कर्ज दिया, जो लगातार बढ़ता गया। जब राजा ऋण नहीं चुका पाया तो 1854 में बाकी द्वीप अंग्रेजों के पास आ गए।
ब्रिटिश कंपनी लोगों की भलाई से ज्यादा अपने हित साधती थी। जिसके बाद लक्षद्वीप रेगुलेशन 1912 लाया या। द्वीपों के अमीनों, करणियों की न्यायिक, मजिस्ट्रियल पावर सीमित कर दी गईं।
कई सालों बाद जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो इस आजादी के साथ लक्षद्वीप स्वतंत्र भारत का हिस्सा बना। 1956 में इस केंद्र शासित हिस्से को गठन किया गया।
स्वतंत्र भारत का हिस्सा बनने से पहले लक्षद्वीप को लक्कादीव, मिनिकॉय, अमीनदीवी के नाम से भी जाना जाता था। साल 1973 में इसका नाम लक्षद्वीप रखा गया, जो आज भी है।