दिव्या देशमुख ने 24 दिन तक चली जबरदस्त शतरंज प्रतियोगिता में FIDE Womens World Cup का खिताब जीत लिया है। उन्होंने फाइनल में भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर कोनेरु हम्पी को हराया।
इसी के साथ दिव्या देशमुख न सिर्फ वर्ल्ड कप जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं, बल्कि देश की चौथी महिला ग्रैंडमास्टर का खिताब भी अपने नाम किया।
दिव्या की कामयाबी सिर्फ शतरंज की दुनिया में ही नहीं, बल्कि उनके पूरे सफर में झलकती है। बचपन से ही वो पढ़ाई और खेल दोनों में अव्वल रहीं। वह पढ़ाई और शतरंज के बीच बैलेंस बनाकर चलीं।
दिव्या देशमुख ने नागपुर के भवन्स भगवानदास पुरोहित विद्यालय से पढ़ाई की। 10th-12th में शानदार नंबर से पास हुई। इंटरनेशनल टूर्नामेंट के कारण कई बार होटल में बैठकर परीक्षा की तैयारी।
दिव्या का जन्म 9 दिसंबर 2005 को नागपुर में हुआ। उनके माता-पिता डॉ जितेंद्र और डॉ नम्रता देशमुख, दोनों मेडिकल फील्ड से हैं। लेकिन दिव्या का मन शुरू से ही शतरंज की बिसात पर रम गया।
10 साल की उम्र तक आते-आते दिव्या देशमुख नेशनल लेवल की खिलाड़ी बन चुकी थीं और भारत का नाम विदेशों में रोशन कर रही थीं।
12वीं के बाद जहां बाकी बच्चे कॉलेज की तैयारी में लग जाते हैं, दिव्या देशमुख ने फैसला किया कि वो इस वक्त पूरी तरह शतरंज पर फोकस करेंगी। हालांकि उन्होंने पढ़ाई से रिश्ता नहीं तोड़ा।
फिलहाल वह डिस्टेंस एजुकेशन के जरिए स्पोर्ट्स साइकोलॉजी, परफॉर्मेंस साइंस और डेटा एनालिटिक्स जैसे विषयों में ऑनलाइन सर्टिफिकेशन कोर्स कर रही हैं।
दिव्या देशमुख को 2021 में वूमेन ग्रैंडमास्टर (WGM) का खिताब मिला और जल्द ही वो भारत की दूसरी सबसे रैंक्ड महिला खिलाड़ी बन गईं।
2023 में दिव्या ने एशियन वूमेन चैंपियनशिप जीती, 2024 में वर्ल्ड अंडर-20 गर्ल्स चैंपियन बनीं और 45वीं चेस ओलंपियाड (बुडापेस्ट) में टीम इंडिया को गोल्ड दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
2025 में उन्होंने इतिहास रच दिया। टूर्नामेंट में झू जिनेर, हरिका द्रोणावल्ली और टैन झोंगयी जैसी टॉप खिलाड़ियों को हराया। फाइनल में कोनेरु हम्पी को मात देकर खिताब अपने नाम किया।