एक समय भारत आर्थिक महाशक्ति था, जिसकी जीडीपी एशिया और सभी यूरोपीय देशों से सबसे बेहतर थी। भारत की जीडीपी 1700 तक विश्व अर्थव्यवस्था का 24 प्रतिशत तक बढ़ गई थी, जो सबसे बड़ी थी।
आज देश की स्थिति ऐसी नहीं है। आज भारत एक विकासशील देश है, जो विकसित देशों से काफी पीछे है। दुनिया की सबसे बड़ी जीडीपी से वर्तमान की गिरावट भारत के ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण हुआ।
लूट की शुरुआत 23 जून, 1757 को बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत के साथ हुई। उस समय यह सबसे अमीर प्रांतों में से था अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया।
दादाभाई नौरोजी के अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारत के धन का निकास देश की गरीबी का मुख्य कारण था। ब्रिटिश साम्राज्य हर साल भारत के राजस्व से ब्रिटेन को 99 करोड़ से अधिक देता था।
इतिहासकार रोमेश चंदर दत्त के अनुसार भारत के राजस्व का आधा हिस्सा ब्रिटेन भेजा जाता था। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश मुद्रा में यह राशि 20 अरब से अधिक होने का अनुमान था।
समाज सुधारक और विद्वान महादेव गोविंद रानाडे ने कहा कि ब्रिटेन भारत की राष्ट्रीय आय का एक तिहाई से अधिक हिस्सा लेता था। भारत ब्रिटिश साम्राज्य के लिए धन का मुख्य स्रोत था।
ब्रिटिश लेखक और पत्रकार विलियम डिग्बी के अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन हर साल भारत से 30 मिलियन पाउंड यानी करीब 31 अरब से अधिक लेता था। उन्होंने आक्रमण किया और लूटपाट की।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक के शोध में गणना की गई है कि 1765 से 1938 की अवधि के दौरान ब्रिटेन ने भारत से 45 लाख करोड़ डॉलर की निकासी की।
यह गणना 2 शताब्दियों के विस्तृत आंकड़ों के आधार पर की गई है। दिलचस्प बात यह है कि 45 लाख करोड़ डॉलर आज यूके के कुल वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद से 17 गुना अधिक है।
पटनायक ने 1765 से 1938 तक औपनिवेशिक भारत में चार अलग-अलग आर्थिक अवधियों की पहचान की।उन्होंने पाया कि ब्रिटेन ने भारत से कुल मिलाकर 44.6 ट्रिलियन डॉलर यानी 44.6 लाख करोड़ डॉलर लिये।