आज भारत की महिला क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप जीतकर देश का नाम रोशन कर रही है, लेकिन एक वक्त था जब टीम के पास खेलने के लिए पैसे तक नहीं थे।
उसी वक्त एक चेहरा आगे आया, मंदिरा बेदी, जिसने बिना किसी शोहरत की चाहत के टीम की मदद की।
साल 2003-2005 के बीच महिला क्रिकेट टीम के पास न कोई स्पॉन्सर था, न कोई मदद। मंदिरा ने अपने एक ज्वेलरी ऐड की फीस पूरी तरह छोड़ दी और वो रकम टीम की इंग्लैंड यात्रा के लिए दान कर दी।
जरा सोचिए, उस दौर में जब भरतीय महिला क्रिकेट टीम को खुद टिकट खरीदने पड़ते थे, मंदिरा की मदद कितनी बड़ी थी।
महिला क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की पूर्व सचिव नूतन गावस्कर के अनुसार, मंदिरा ने जो पैसा दान किया, उसी से हमारी टीम इंग्लैंड खेलने जा सकी।
मंदिरा ने सिर्फ पैसा ही नहीं दिया, बल्कि कई कंपनियों से खुद संपर्क किया ताकि टीम को स्पॉन्सर मिल सके।
पूर्व क्रिकेटर शुभांगी कुलकर्णी के अनुसार, मंदिरा की वजह से कॉरपोरेट्स का नजरिया बदला। लोगों को लगा कि ये टीम भी सपोर्ट डिजर्व करती है।
एक इंटरव्यू में मंदिरा ने कहा था, जो पैसा मैं विज्ञापन से कमाती, वही मैं महिला क्रिकेट की मदद के लिए दे रही हूं। वो सिर्फ बोल नहीं रहीं थीं, सच में कर दिखाया था।
जब भारतीय महिला टीम ने 2025 में पहली बार वर्ल्ड कप जीता, मंदिरा ने इंस्टाग्राम पर लिखा, You didn’t play for a nation, you moved it और यही था उनका तरीका, चुपचाप, लेकिन दिल से जुड़ा।
आज जब हर कोई महिला क्रिकेट की जीत पर गर्व कर रहा है, तो यह याद रखना जरूरी है कि मंदिरा बेदी ने अपनी मेहनत, कमाई और नाम का इस्तेमाल महिलाओं को खेल की असली उड़ान देने के लिए किया था।
मंदिरा बेदी ने दिखा दिया कि सपनों को ताकत देने के लिए मशहूर होना जरूरी नहीं, सच्चा दिल काफी है। उनकी ये कहानी हर उस लड़की के लिए है जो बिना डर अपने सपने पूरे करना चाहती है।