87 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले मनोज कुमार सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, वो देशभक्ति की आवाज थे, जिन्होंने फिल्मों के जरिए हिंदुस्तान का दिल जीता।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सफर शुरू हुआ था एक छोटे से छात्र हरिकृष्ण गोस्वामी के रूप में?
मनोज कुमार का जन्म 1937 में अबोटाबाद (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उनका असली नाम था हरिकृष्ण गोस्वामी।
भारत-पाक विभाजन के बाद उनका परिवार शरणार्थी बनकर दिल्ली आ गया। संघर्ष के उस दौर में भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी।
मनोज कुमार ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से बीए की डिग्री ली। कॉलेज में रहते हुए उन्हें सिनेमा और देशभक्ति में गहरी रुचि हुई। यहीं से बना उनका नजरियाउनकी फिल्मों में झलका।
एक फिल्म शबनम में दिलीप कुमार के किरदार 'मनोज' से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने यही नाम अपना लिया। यही नाम बाद में देशभक्ति की फिल्मों का पर्याय बन गया।
उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, क्रांति जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने देशभक्ति और समाज के मुद्दों को स्क्रीन पर जिया।
मनोज कुमार को पद्म श्री (1992), दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड और 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका था।
मनोज कुमार की मौत की खबर सुनते ही देशभर से श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गई। पीएम मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और बॉलीवुड के दिग्गजों ने उन्हें "भारत की आत्मा की आवाज" कहा।
मनोज कुमार ने साबित कर दिया कि अच्छी पढ़ाई सिर्फ करियर नहीं बनाती, एक नजरिया देती है। वो नजरिया जो समाज को बेहतर बनाने के काम आता है। उन्होंने देश का मन पढ़ा और परदे पर उतारा।