कुछ लोगों को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कई लड़ाईयां लड़नी पड़ती हैं और वे अपनी अदम्य शक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प के कारण सभी में सफल होते हैं।
ऐसी ही एक प्रेरक शख्सियत हैं आईएएस किंजल सिंह, जिन्होंने आईएएस की परीक्षा पास की और अपने पिता को न्याय दिलाने में भी सफलता हासिल की।
5 जनवरी, 1982 को उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मी किंजल सिंह केवल 2 साल की थीं, जब उनके पिता, पुलिस उपाधीक्षक, केपी सिंह की उनके सहयोगियों ने ही एक फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी।
तब से किंजल को अपने पिता के लिए न्याय मांगने के लिए नियमित रूप से अपनी मां के साथ अपने गृहनगर से दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट तक की जर्नी करनी पड़ी।
उसके पिता की हत्या तब कर दी गई जब मुख्य साजिशकर्ता-सरोज को एहसास हुआ कि एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के रूप में उसके कुकर्मों को सिंह द्वारा उजागर किया जा सकता है।
पति की मौत के बाद विभा ने एक मजबूत सिंगल मदर के रूप में किंजल और उसकी बहन के एजुकेशन का पूरा भार उठाया और अपने पति को न्याय दिलाने के लिए बहादुरी से लड़ाई भी लड़ी।
पिता को खोने और दिल्ली में कोर्ट सुनवाई के लिए रोजाना आना-जाना मैनेज करने के बावजूद, किंजल ने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्री राम कॉलेज में दाखिला लिया।
जल्द ही उनके जीवन में एक और त्रासदी हुई, जब उनकी मां को कैंसर का पता चला। बीमारी से लड़ाई के बाद 2004 में उनकी मृत्यु हो गई।
मां केे अंतिम क्षणों में बेटियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे आईएएस अधिकारी बनकर और अपने पिता की मृत्यु के लिए न्याय पाकर उनका सपना पूरा करेंगी।
अपने माता-पिता के बारे में बात करते हुए किंजल ने कहा, मुझे अपने पिता पर गर्व है जो ईमानदार अधिकारी थे।मेरी मां मजबूत सिंगल पैरेंट्स साबित हुईं। पति के साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ी।
अपनी मां के निधन के बाद किंजल कॉलेज में अपना फाइनल एग्जाम देने के लिए लौट आईं और दिल्ली विश्वविद्यालय में टॉप किया। इसके बाद उसने अपनी छोटी बहन प्रांजल सिंह को भी दिल्ली बुला लिया।
दोनों ने ईमानदारी से यूपीएससी की तैयारी पर ध्यान केंद्रित किया। अटूट मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ किंजल को 2008 में 25वीं रैंक हासिल करके दूसरे प्रयास में आईएएस के लिए चुना गया।
प्रांजल ने भी 252वीं रैंक के साथ इसे पास किया और अब एक आईआरएस अधिकारी हैं। फिर किंजल ने अपने पिता को न्याय दिलाने और उनकी हत्या के पीछे के दोषियों को गिरफ्तार कराने का फैसला किया।
अंततः उनके पक्ष में फैसला आया। 2013 में 31 साल बाद, लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत ने उनके पिता डीएसपी सिंह की हत्या के सभी 18 आरोपियों को सजा सुनाई।
इस जीत के बारे में बात करते हुए किंजल ने खुशी जताते हुए कहा जब मेरे पिता की हत्या हुई थी तब मैं मुश्किल से ढाई साल की थी। मेरे पास उनकी कोई यादें नहीं हैं।
लेकिन मुझे याद है कि कैसे मेरी मां विभा ने सभी बाधाओं के बावजूद न्याय के लिए अपना संघर्ष जारी रखा, जब तक कि 2004 में कैंसर से उनकी मृत्यु नहीं हो गई।
सेवा में रहते हुए किंजल पहले लखीमपुर खीरी और सीतापुर की डीएम रह चुकी हैं। इसी वर्ष उन्हें उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग का डीजी नियुक्त किया गया।