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ऐसे थे सुभाष चंद्र बोस? 10 प्वाइंट में जानें नेता जी की लाइफ जर्नी

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जन्म 23 जनवरी 1897 को जन्म

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा, बंगाल संभाग में हुआ था। भारत के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और आजाद हिंद फौज की स्थापना के पीछे के मास्टरमाइंड थे।

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मेधावी छात्र

सुभाष चंद्र बोस मेधावी छात्र थे। स्कूल से विश्वविद्यालय तक पूरे अध्ययन के दौरान टॉप रैंक हासिल की। उन्होंने 1918 में दर्शनशास्त्र से प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

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भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में चौथा स्थान

1919 में प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में उन्हें चौथा स्थान मिला। बाद में उन्होंने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

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अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष

सुभाष चंद्र बोस दो बार अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।

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एमिली शेंकल से विवाह

सुभाष चंद्र बोस का विवाह एमिली शेंकल नामक ऑस्ट्रियाई मूल की महिला से हुआ था। उनकी एक बेटी अनीता बोस भी हैं जो एक प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री हैं।

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जय हिंद का नारा दिया

भारत के सबसे लोकप्रिय नारों में से एक "जय हिंद", बोस द्वारा गढ़ा गया था और उन्होंने ही रवींद्रनाथ टैगोर के 'जन गण मन' को अपने पसंदीदा राष्ट्रगान के रूप में चुना था।

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ग्यारह बार गये जेल

पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े रहने के कारण 1921 से 1941 तक सुभाष को ग्यारह बार अलग-अलग जेलों में कैद किया गया।

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हिंसक प्रतिरोध की वकालत

उनका मानना ​​था कि गांधीजी की अहिंसा की रणनीति स्वतंत्रता पाने के लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होगी और हिंसक प्रतिरोध की वकालत करते थे।

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गांधी जी को कहते थे देशभक्तों के देशभक्त

सुभाष चंद्र बोस गांधी जी के दर्शन के विरोधी थे, फिर भी वे उन्हें 'देशभक्तों का देशभक्त' कहते थे। यह सम्मान सराहनीय था क्योंकि बोस भारत की आजादी के लिए पूरी तरह समर्पित थे।

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आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की स्थापना

उन्होंने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की स्थापना की थी और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन का नेतृत्व किया था।

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विमान दुर्घटना में हुई मृत्यु

सुभाष चंद्र की मौत सबसे बड़े भारतीय रहस्यों में से एक रही है। ऐसा कहा जाता है कि ताइवान के पास जापानी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद थर्ड-डिग्री जलने से उनकी मृत्यु हो गई थी। 

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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा

उनका प्रसिद्ध नारा, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, ने आजादी की लड़ाई के दौरान भारतीयों में देशभक्ति जगाई।

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ऊर्जा और उत्साह से भरे शब्द

उनके शब्द आज भी हमें प्रेरणा देते हैं, उसी ऊर्जा और उत्साह से भर देते हैं। हालांकि, अज्ञात कारणों से उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई बताई जाती है।

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