भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल वीरांगनाओं की कहानियां सुनकर आज भी सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जानिए 10 बहादुर महिलाओं के बारे में, जिनके बिना भारत की आजादी की गाथा अधूरी है।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से लड़ीं। तलवारबाजी, घुड़सवारी और युद्धनीति में माहिर रानी लक्ष्मीबाई ने कहा था- मैं अपनी झांसी किसी को नहीं दूंगी।
लखनऊ की नवाबी बेगम हजरत महल ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला था। उन्होंने आम जनता को संगठित कर ब्रिटिश शासन को कड़ी चुनौती दी थी।
भारत कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम की अहम नेता थीं। कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली इस पहली भारतीय महिला ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
दलित वीरांगना उदा देवी ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजी सेना के कई सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। पेड़ पर चढ़कर दुश्मनों पर गोलियां बरसाने का उनका साहस आज भी प्रेरक है।
विदेश में रहते हुए भी उन्होंने भारत की आजादी के लिए आवाज उठाई। उन्होंने 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में भारत का झंडा लहराकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा।
अरुणा आसफ अली को भारत की आजादी की ग्रैंड ओल्ड लेडी कहा जाता है। उन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में झंडा फहराने के लिए भी प्रसिद्धी मिली।
महात्मा गांधी की जीवनसंगिनी कस्तूरबा गांधी ने हर आंदोलन में उनका हर कदम पर साथ दिया। उन्होंने महिलाओं को आंदोलन में शामिल करने का काम किया और जेल भी गईं।
गांधी के विचारों से प्रेरित यह वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में तिरंगा लेकर मार्च कर रही थीं, जब अंग्रेजी गोलियों से उनकी जान गई, लेकिन झंडा नहीं छोड़ा।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने रानी झांसी रेजिमेंट का नेतृत्व किया और महिला सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार किया।
भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद के साथ कई गुप्त मिशनों में शामिल रहीं। उन्होंने क्रांतिकारियों की मदद के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाली।