डार्क वेब एक अनरेगुलेटेड, अनमोनिटर्ड इंटरनेट का पार्ट है। दरअसल ज्यादातर इंटरनेट अनरेगुलेटेड ही है। ऐसा कहा जाता है कि हम जिस नेट का इस्तेमाल करते हैं वो सिर्फ 5 प्रतिशत है।
बाकी का इंटरनेट आम लोगों ने एक्सप्लोर नहीं किया है क्योंकि वो रिलायबल या ट्रस्टबॉडी का पार्ट ही नहीं है। यानि इंटरनेट का जो अनरेगुलेटेड पार्ट है उसे ही डार्कवेब कहा जाता है।
डार्क वेब अनरेगुलेटेड एरिया है इसलिए इसकी डेप्थ का भी किसी को पता नहीं है। इसलिए अबतक सरकार ने इसके लिए रेगुलेशेंस नहीं बनाये हैं। इसलिए टेररिज्म, ड्रग्स जैसे काम यहां होते हैं।
डार्कनेट वह एरिया है जहां लॉ एंड ऑर्डर नहीं होते हैं। इसलिए वहां गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ जाती हैं।काफी क्रिमिनल्स डार्कवेब का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ऑथॉरिटीज का डर नहीं होता।
डार्कनेट पर यूजीसी नेट का क्वेश्चन पेपर पाया गया। जिसके बारे में सरकार की एक साइबर एजेंसी ने शिक्षा मंत्रालय को सूचित किया और उसके बाद परीक्षा रद्द कर दी गई।
डार्कवेब पर गैरकानूनी तरीके से क्वेश्चन पेपर पहुंचाया भी जा सकता है और खरीद-फरोख्त भी हो सकती है। क्योंकि यहां पर नजर से बचना अक्सर आसान हो जाता है।
देश की ऑथरिटीज की पहुंच डार्कवेब तक है। उसकी मॉनिटिरिंग भी की जा सकती है। वहां जो भी पोस्ट हो रहे हैं उसके बारे में पता लगाना साइबर सिक्योरिटी एजेंसी के लिए मुश्किल नहीं है।
बहुत सारे ऐसे टूल्स हैं जिससे अथॉरिटीज डॉर्कवेब पर हो रही ऐसी इलीगल ट्रेडिंग का पता लगा सकती है। यूजीसी नेट के मामले में भी साइबर एक्सपर्ट इसका आसानी से पता लगा सकते हैं।
यूजीसी नेट क्वेश्चन मामले में क्रिमिनल्स एक्टिविटीज उनके फुटस्टेप्स से आसानी से पता लगाया जा सकता है। क्योंकि इंटरनेट फुटस्टेप्स छिपाया जा सकता है इरेज नहीं किया जा सकता।